रायसेन के इस चावल को मिला जीआई टैग, क्या होता है जीआई टैग?कैसे मिलता है

विनय अग्रिहोत्री/भोपाल. मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बासमती चावल को जीआई टैग दिया गया है. अब यहां का बासमती चावल भी देश-विदेश में जिले की शान बढ़ाएगा. प्रधानमंत्री की एक जिला, एक उत्पाद योजना में रायसेन की बासमती चावल को जीआई टैग दिया गया है. इससे किसानों को धान के बेहतर दाम मिल सकेंगे.

रायसेन जिले के बासमती धान को दावत जैसी नामचीन कंपनी खरीदकर देश-दुनिया में बिक्री करती है. यहां के बासमती धान का दाना सुगंधित, लंबा और पतला होता है. यहां के किसान रसायनिक का कम और जैविक खाद का अधिक उपयोग करते हैं.

जिले में करीब ढाई लाख हेक्टेयर में धान की बोवनी की जाती है. इसमें से करीब 80 फीसदी क्षेत्र में बासमती धान बोई है. यहां की बासमती धान पूसा-1 गुणवत्ता की है. इसका दाना लंबा, पतला और सुगंधित होता है. पूसा-1 धान के बीज का अविष्कार राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र दिल्ली में किया गया था. जलवायु, मिट्टी और पानी की उपलब्धता के चलते रायसेन जिले में इस धान की पैदावार काफी अच्छी है.

किसानों की आय भी बढ़ेगी
रायसेन जिले में लंबे समय से बासमती धान की खेती की जा रही है. बीते कुछ साल से लगातार धान का रकबा बढ़ रहा है. यह जिले के लिए अच्छी बात है, यहां का बासमती चावल विदेशों तक जाता है. इस बार बासमती के साथ क्रांति धान की पैदावार भी अच्छी हुई है. जिले में धान प्रमुख फसल बन गई है. अब किसान सोयाबीन की जगह धान की खेती ज्यादा कर रहे हैं. बासमती को जीआई टैग मिला तो इसका रकबा और बढ़ेगा. साथ ही किसानों की आय भी बढ़ेगी.

क्या है जी आई टैग और कैसे मिलता है ?
जीआई टेगिंग, किसी भी वस्तु को जीआई टेग देने से पहले उसकी गुणवत्ता क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है. इसके साथ ही यह भी तय किया जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति की उस वस्तु की पैदावार में कितनी बड़ी भूमिका है. कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव होती है.

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