राम मंदिर आंदोलन के दौरान 45 दिन रहे जेल में, विवादित ढांचा ढहा तो साथ ले आए ईंट

कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल. उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और 22 जनवरी को श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है, लेकिन राम मंदिर (Ram Temple Ayodhya) बनने का सफर आसान नहीं था. इसके लिए कई आंदोलन हुए. राम भक्तों को जेल जाना पड़ा. राम मंदिर आंदोलन में कई ऐसे लोग थे, जिन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में राम मंदिर आंदोलन को धार देने वालों में राकेश ध्यानी का नाम भी शामिल है. राकेश उन दिनों अपनी युवावस्था में थे. तब वह आंखों में राम मंदिर का सपना लिए जय श्रीराम के नारे लगाते और लोगों को एकजुट करते. आंदोलन की यादों को ताजा करते हुए राकेश ध्यानी बताते हैं कि उस दौरान वह बजरंग दल के गढ़वाल संयोजक थे. 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन के तहत राम ज्योति यात्रा शुरू की गई थी. श्रीनगर गढ़वाल से इस आंदोलन में वह और वर्तमान के गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत और हरक सिंह रावत शामिल थे.

उन्होंने बताया कि उस दौरान अशोक सिंघल के साथ उन्होंने स्वर्गाश्रम से लेकर बद्रीनाथ तक यात्राएं कीं. राम जन्मभूमि का आंदोलन चरम पर था. इस दौरान पुलिस ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया और देहरादून जेल भेज दिया. 6 दिन यहां रखने के बाद जगह कम होने पर कांसखेत जेल शिफ्ट कर दिया गया. 39 दिनों तक कांसखेत जेल में रहने के बाद उनकी रिहाई हो गई. पहाड़ों में राम मंदिर आंदोलन को धार देने के लिए उन्होंने साइकिल यात्रा भी निकाली थी.

बच-बचाकर पहुंचे श्रीनगर गढ़वाल

राकेश ध्यानी ने बताया कि 1992 में कार सेवा में भी उन्होंने प्रतिभाग किया. वह भी उस दौरान अयोध्या पहुंचे हुए थे. इस दौरान एक ही नारा सब जगह गूंज रहा था ‘बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का.’ आंदोलन के दौरान उन्हें भी यह अंदाजा नहीं था कि ढांचा ढहा दिया जाएगा, लेकिन देखते ही देखते आधे घंटे में ढांचा तोड़ दिया गया. वह कहते हैं कि उसके तुरंत बाद कर्फ्यू लगा दिया गया. पार्टी नेताओं द्वारा उन्हें वापस अपने-अपने घर लौटने के निर्देश दिए गए. रात को रेलवे स्टेशन पर रहकर किसी तरह बच-बचाकर वह अपने साथियों के साथ श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे.

ईंट लेकर आए श्रीनगर गढ़वाल

राकेश बताते हैं कि 1992 में जब ढांचा विध्वंस होने के बाद भगदड़ मची, तो वह भी वहां से भाग निकले. सुरक्षित स्थान के लिए निकलने के दौरान उन्हें विवादित ढांचे की ईंट मिली. उन्होंने उस ईंट को बैग में डाला और अपने साथ श्रीनगर गढ़वाल लेकर आए. यहां उन्होंने आरएसएस कार्यालय में वो ईंट रख दी. वह कहते हैं कि ईंट को वह भगवान राम का प्रसाद मानकर अपने साथ श्रीनगर लाए थे.

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