“रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख़ नहीं बताएंगे” का नारा लगाकर विपक्ष बीजेपी पर निशाना साधता रहा है. लेकिन अब भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है और उद्घाटन की तारीख भी तय हो गई है. 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहेंगे. आपको उस आंदोलन के बारे में बताते हैं, जिसने 70 सालों में न जाने कितने उतार चढ़ाव देखे. और उस आंदोलन का ही नतीजा है कि आज अयोध्या में भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण तेज़ी से चल रहा है और भगवान राम अपने घर में विराजने वाले हैं.
पीएम नेहरू ने दिया था रामलला की मूर्ति हटाने का आदेश
राम मंदिर आंदोलनकारी और पूर्व सांसद राम विलास वेदांती ने कहा,” उस समय जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. उन्होंने यूपी के सीएम गोविंद बल्लभ पंत को रामलला की मूर्ति को हटाने का आदेश दिया.सीएम पंत ने वहां के सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह को मूर्ति हटाने का आदेश दिया. लेकिन उन्होंने इस काम को करने से इनकार कर दिया. तब तक ये बात गोरखनाठ के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ के पास पहुच गया. उन्होंने लाखों लोगों को ले जाकर अयोध्या को घेर लिया. उन्होंने साफ कर दिया कि अपने जिंदा रहते रामलला की मूर्ति को नहीं हटने देंगे.”
23 दिसंबर की सुबह जैसे ही कथित तौर पर रामलला के प्रकट होने की बात लोगों में फैली, हजारों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस को समझ ही नहीं आया कि ऐसा क्यो हो गया कि लोगों का हुजूम उमड़ गया. जिस जगह पर कथित तौर पर रामलला प्रकट हुए, वो वही इमारत थी जिसे बाबरी कहते थे. 1949 में भगवान राम का प्रकटीकरण होने के साथ आंदोलन की नींव पड़ गई. फिर 1950 में जन्मभूमि-बाबरी विवाद को लेकर फैज़ाबाद की अदालत में गोपाल सिंह विशारद ने पहला मुक़दमा दर्ज किया. इस मुक़दमे में दावा किया गया कि बाबरी जिस जगह पर है, वो दरअसल हिन्दू मंदिर की जगह है.
राम मंदिर पर 14 जनवरी 1950 दर्ज हुआ पहला मुकदमा
हिन्दू पक्ष के वक़ील तुरुण जीत वर्मा ने कहा,” राम जन्मभूमि को लेकर आज़ादी के बाद पहला मुक़दमा 14 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने दर्ज कराया. अपनी याचिका में गोपाल सिंह विशारद ने कोर्ट में कहा कि वो हिन्दू सनातनी हैं और उन्हें पूजा करने से न रोके. 16 जनवरी 1950 को कोर्ट ने उन्हें पूजा का अधिकार दे दिया. रामचन्द्र परमहंस दास ने भी एक मुकदमा दर्ज कराया लेकिन 1989 में उन्होंने ये कहते हुए मुकदमा वापस ले लिया कि अब उन्हें कोर्ट से फैसले की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए वो अपना फैसला वापस ले रहे हैं. टाइटलशिप यानी ज़मीन के मालिकाना हक के लिए पहला मुक़दमा 1959 को निर्मोही अखाड़े की तरफ से याचिका दायर किया गया. 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने अपना वाद दायर किया.”
दशकों बीत गए और ऐसा लगने लगा जैसे राम जन्मभूमि आंदोलन अब मध्यम हो गया है. साल 1980 में जनसंघ बदलकर बीजेपी बन गई. लेकिन 1984 के आम चुनवा में बीजेपी महज दो सीटों पर सिमट गई वहीं कांग्रेस 414 सीटें जीतकर सत्ता में आ गई.ऐसे में विश्व हिदू परिषद, बीजपी और आरएसएस ने रामजन्मभूमि आंदोलन को नए सिरे से आगे बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी. सीनियर पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि दरअसल 1984 में कांग्रेस को काम के नाम पर वोट नहीं मिले थे. इंदिरा गाँधी की हत्या की बात के सहानभूमि वोट भी उसमें शामिल थे. इसीलिए जब राजीव गांधी को लगा कि बाद के चुनाव में वह नीचे जा रहे हैं तो उन्होंने शिलान्यास करवा दिया. जैसे ही वह बैकफुट पर गए तो तुरंत बीजेपी ने इसे अपान एजेंडा बना लिया. एजेंडे में वोट था तो वह लगातार सरकार बनाते चले गए.
BJP,VHP,RSS ने शुरू किया नई रणनीति पर काम
हिंदुत्व के एजेंडे को चुन कर बीजेपी ने विहिप और संघ के साथ नई रणनीति पर काम शुरू किया. 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया गया. इसी के साथ रामजन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन किया गया जिसमें यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ के उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ को अध्यक्ष, दाऊदयाल खन्ना को महामंत्री और महंत रामचंद्र परमहंस दास व महंत नृत्यगोपाल दास को उपाध्यक्ष बनाया गया.
बीजेपी, संघ और विहिप की रणनीति का असर केंद्र की राजीव गांधी सरकार पर भी पड़ रहा था, इस बीच 1 फरवरी 1986 को फैज़ाबाद की जिला अदालत ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया तो केंद्र की राजीव गांधी सरकार ने कोर्ट के फ़ैसले के कुछ ही मिनटों बाद विवादित परिसर का ताला ज़िला प्रशासन से खुलवा दिया. इसके बाद 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने शिला पूजन करके राम मंदिर आंदोलन को देश के हर कोने में पहुंचा दिया. अयोध्या में इकट्ठा हुए हज़ारों राम भक्तों ने शिलापूजन कर दिया और विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण की तैयारी के लिए एक कार्यशाला भी शुरू कर दी, जहां मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम 1989 से लेकर अबतक चल रहा है.
‘बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’ के लगे नारे
गुजरात से बीजेपी के सीनियर नेता लाल कृष्ण आड़वाणी ने एक रथ यात्रा शुरू की तो यूपी का माहौल देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि विवादित परिसर में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता. 30 अक्टूबर को जब राम भक्त परिसर की तरफ जाने लगे तो सरकार ने उन पर गोलियां चलवा दीं. 1990 में सड़कों पर ‘बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’ के नारे लगते थे. लाल कृष्ण आड़वाणी रथयात्रा लेकर गुजरात से निकले और 30 अक्टूबर को अयोध्या में कारसेवा की तारीख़ तय कर दी गई. बीजेपी और संघ के तमाम बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी होने लगी. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा कि विवादित स्थल पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लाखों की संख्या में अयोध्या में इकट्ठे हुए. कारसेवक जब जन्मभूमि तक पहुंच गए तब पुलिस ने सरकार के आदेश पर रामभक्तों पर गोली चलवा दी.
,…और जमींदोज हो गया विवादित ढांचा
साल 1992 में यूपी में सत्ता परिवर्तन हो चुका था और कट्टर हिंदूवादी नेता कल्याण सिंह सीएम बने. वहीं देश में रामजन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था. ऐसे में एक बार फिर से कारसेवा की नई तारीख पड़ी, जो कि 6 दिसंबर 1992 थी. देशभर से कारसेवर जब अयोध्या पहुंचेन लगे तो मामला कोर्ट पहुंचा, वहां हलफनामा देकर सीएम ने कहा कि कारसेवा भी होगी और विवादित परिसर को कुछ होने भी नहीं दिया जाएगा. इस बीच कारसेवा तो हुई लेकिन हलफनामा धरा का धरा रह गया. बाबरी का विवादित ढांचा जमींदोज कर दिया गया.
राम जन्मभूमिऔर बाबरी का विवाद सालों तक कोर्ट में चलता रहा. साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने विवादित परिसर को तीन हिस्सों में बांचने का आदेश दिया. उसमें एक हिस्सा राम जन्मभमि को और दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल लक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया गया. हालांकि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. यह मामला 9 सालों तक सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरा परिसर हिंदुओं को देने का आदेश दिया. साथ ही केंद्र सरकार को मुस्लिमों को मंदिर बनाने के लिए जमीन देने का आदेश दिया.अदालत के इसी फैसले के आधार पर अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है साथ ही भगवान राम अपने स्थायी घर में विराजने वाले हैं.