रामायण जो बिस्मिल्‍लाह से होती है शुरू, किसने लिखी, कहां रखा है ये महाकाव्‍य

देश में आजादी के पहले से ही हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच टकराव के हालात बन गए थे. आजादी के बाद लगातार दोनों समुदायों में भाईचारा बनाए रखने के प्रयास होते रहे हैं. बार-बार कहा जाता रहा है कि भारत गंगा-जमुनी तहजीब वाला देश है. इस बात की गवाही उत्‍तर प्रदेश के जिला रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी में रखी खास रामायण भी देती है. ये वाल्‍मीकि रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद है. संस्‍कृत से फारसी भाषा में अनुवाद की गई ये रामायण ऊं के बजाय ‘बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम’ से शुरू होती है. इसके मायने हैं, ‘शुरू करता हूं अल्‍लाह के नाम से, जो बेहद रहम वाला है. उस वहदूद लाशरीक यानी अद्वितीय ईश्‍वर के उपकार के बाद मैं यह रामायण लिख रहा हूं.’

रज़ा लाइब्रेरी में बेहद सहेज कर रखी गई इस रामायण का फारसी में अनुवाद सुमेर चंद ने 1713 में किया था. सुमेर चंद ने मुगल शासक फर्रुखसियर के शासनकाल में पारसी वाल्‍मीकि रामायण लिखी थी. इस रामायण के हर पन्‍ने को खालिस सोने और कीमती पत्‍थरों से सजाया गया है. इसमें मुगल शैली में 258 चित्र भी बनाए गए हैं. तस्वीरों में राम, सीता और रावण बिल्कुल अलग दिखते हैं. चित्रों में दिखाए गए पात्रों के आभूषणों, कला, वास्तुकला, वेशभूषा मध्ययुगीन काल में भारत की संस्कृति पर रोशनी डालते हैं.

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दिखाए हैं रावण के दस के बजाय 11 सिर
पारसी रामायण के रावण के 10 के बजाय 11 सिर दिखाए गए हैं. इसमें 11वां सिर गधे का है, जो सबसे ऊपर दिखाया गया है. रामायण की शुरुआत में लिखा है कि 4,000 रुपये में इस किताब को खरीदा जा सकता है. फारसी रामायण के राम-लक्ष्मण और सीता मुगल शैली के राजसी परिधानों में दिखाए गए हैं. पात्रों के सिर पर सजी पगड़ी और टोपी मुगलिया दौर की याद दिला देती हैं कुछ तस्वीरों में पात्रों के हाथों में धनुष की जगह तलवारें दिखाई गई हैं. ऋषियों के बीच दिखाए गए राम धोती और जनेऊ धारण किए हुए हैं. एक चित्र में विश्‍वामित्र, राम और राजा दशरथ के सामने रखे बर्तनों में हीरे जड़े हुए दिखाए हैं.

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फारसी रामायण में रावण के 10 के बजाय 11 सिर दिखाए गए हैं.

फारसी रामायण का हिंदी में किया अनुवाद
रज़ा लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन अबु साद इस्‍लाही के मुताबिक, बाद में फारसी रामायण का हिंदी में अनुवाद भी किया गया. ये काम प्रो. शाह अब्दुस्सलाम और डॉ. वकारुल हसल सिद्दीकी ने किया. फारसी रामायण का हिंदी अनुवाद भी रज़ा लाइब्रेरी में रखा हुआ है. उनके मुताबिक, ये बड़ी मिसाल है कि वाल्‍मीकि रामायण का संस्कृत से परसी में अनुवाद एक हिंदू सुमेर चंद ने किया और फिर पारसी से हिंदी में अनुवाद दो मुस्लिमों ने किया है. उन्‍होंने बताया कि डॉ. वक़ारुल हसन तो अपने अनुवाद को पुस्तक के तौर पर देख भी नहीं सके. उससे पहले ही उनका निधन हो गया था.

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रखी है मक्‍का से लाई कुरान की पांडुलिपि भी
रज़ा लाइब्रेरी के रिसर्च इंचार्ज इस्‍बाह खान के मुताबिक, यहां कई भाषाओं और लिपियों की 60,000 से ज्‍यादा किताबें हैं. इनमें 17,000 पांडुलिपियां हैं. उन्‍होंने बताया कि लाइब्रेरी में मक्का से लाई गई कुरान की पांडुलिपि भी रखी है. इसके अलावा 17वीं सदी की रामायण की पांडुलिपि भी है. लाइब्रेरी में 7वीं सदी का हाथ से लिखा हुआ क़ुरान भी है. लाइब्रेरी में रखी इन धरोहरों को सहेजने के लिए 6-7 विशेषज्ञ लाइब्रेरी की लैब में दिन-रात मेहनत करते हैं. रामपुर के नवाब फैज़ उल्ला खान ने 1774 में रज़ा लाइब्रेरी बनवाई थी. उन्होंने रामपुर रियासत पर 1794 तक शासन किया. रामपुर के किले में मौजूद जामा मस्जिद के पीछे हामिद मंजिल में मौजूद रज़ा लाइब्रेरी को एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी माना जाता है.

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नवाबों की शायरी में होता था राधा-कृष्‍ण का जिक्र
रामपुर के नवाबों की शायरी में राधा और कृष्‍ण का जिक्र होता था, जो यहां की शानदार संस्‍कृति और गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है. केंद्रीय अल्‍पसंख्‍यक मंत्रालय में सलाहकार और कवि डॉ. चंद्र प्रकाश शर्मा ने बताया कि कांग्रेस से सांसद रहीं बेगम नूरबानो निकाह के वक्‍त 4,000 किताबें अपने साथ लाई थीं. इनमें लोहारू साहित्‍य की काफी किताबें थीं. उनके मुताबिक, नवाब परिवार के लोगों को पढ़ने-पढ़ाने का काफी शौक था. उन्‍होंने बताया कि रामपुर को दिल्ली और लखनऊ के बाद कविता-शायरी के तीसरे स्कूल के तौर पर माना जाता है. रामपुर के नवाब कविता और शायरी के बहुत शौकीन थे. वह बताते हैं कि दुनिया भर में प्रसिद्ध शायर मिर्जा असद उल्ला खां गालिब का रामपुर से गहरा नाता रहा है. वह रामपुर के दो नवाबों के उस्ताद रहे. उन्हें रामपुर रियासत से हर महीने 100 रुपये वजीफा मिलता था.

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फारसी रामायण में सभी पात्रों की वेशभूषा पर मुस्लिम संस्‍कृति का पूरा असर दिखता है.

मिर्जा ग़ालिब रहे रामपुर के नवाबों के उस्‍ताद
डॉ. चंद्र प्रकाश शर्मा बताते हैं क‍ि 1857 की क्रांति के बाद बने हालात में मिर्जा गालिब रामपुर पहुंच गए. फिर 1860 में रामपुर रियासत के नवाब यूसुफ अली खां के उस्‍ताद बने. बाद में नवाब कल्बे अली के भी उस्‍ताद रहे. उन्हें वजीफा के अलावा रामपुर में रहने के लिए मकान भी दिया गया था. रामपुर आने पर वह शाही महल कोठी खासबाग के मेहमान होते थे. वह कुछ साल बाद दिल्ली चले गए, लेकिन रामपुर के नवाबों से चिट्ठियों का सिलसिला जारी रहा. गालिब के नवाबों को लिखे 150 पत्र आज भी रज़ा लाइब्रेरी में हैं. वह कहते हैं कि रामपुर की संस्‍कृति आज के युवाओं के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है.

Tags: Hindi poetry, Maharishi Valmiki, Ram Mandir ayodhya, Ramayana, Rampur news

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