राममंदिर आंदोलन याद करते छलके महिला के आंसू, सुनाई रोंगटे खड़े करने वाली कहानी

अनुज गौतम/सागर. 22 जनवरी 2024 को भगवान राम लला सरकार श्री राम जन्मभूमि अयोध्या जी के भव्य मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं. इस दिन के लिए लोगों ने त्याग तपस्या बलिदान दिया है. ऐसे ही 90 के दशक में श्री राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन किया गया, जिसमें देश भर से कार सेवक अयोध्या पहुंचे थे. इन्हें रोकने के लिय पुलिस की ओर से गोलियों की बौछार की गई और सैकड़ों राम भक्तों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा. चारों तरफ लाशें बिछी हुई थी. गंगा के किनारे लाशें जलाई जा रही थी. लाशों के ढेर में लोग कहीं अपनों को ढूंढ रहे थे तो कहीं किसी लाश के पास बैठकर चीख रहे थे चीत्कार रहे थे. यह वाकया सुनाते सुनाते राम आंदोलन में शामिल हुई सागर की मीनाक्षी अनिल सिंह ठाकुर की आंखें नम हो गई.

रुंधे हुए गले से उन्होंने बताया कि 33 साल पहले राम भक्तों ने जो बलिदान दिया था हम लोगों ने अयोध्या तक पहुंचने के लिए जो संघर्ष किया था. अब वह संकल्प पूरा होने जा रहा है. हम लोग बहुत खुश हैं लेकिन उम्र ज्यादा होने की वजह से वह इस कार्यक्रम में शामिल होने नहीं जा रही हैं. लेकिन विश्व हिंदू परिषद या अन्य कोई संगठन वहां तक लाने ले जाने की व्यवस्था करता है तो जरूर जाएंगी. इसको लेकर उत्सुकता भी है.

12 लोगों की टोली के साथ हुई थी रवाना
दरअसल, सागर मधुरकर शाह वार्ड में रहने वाली 68 वर्षीय मीनाक्षी अनिल सिंह ठाकुर का परिवार आरएसएस से जुड़ा हुआ है. मायके पक्ष में उनके पिता जबलपुर नगर निगम के संघ चालक थे तो वहीं शादी होने के बाद सागर में भी उनके परिवार आरएसएस से जुड़ा हुआ था. इसी वजह से मीनाक्षी विद्यार्थी परिषद और विश्व हिंदू परिषद में काम करती थी. 1990 में जब राम के काम की बारी आई तो वे पीछे नहीं हटी. सागर से करीब 12 लोगों के ग्रुप के साथ वह प्रयागराज के लिए रवाना हो गई और वहां पर 27 अक्टूबर को जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के आश्रम में पहुंची. जहां सभी लोग एकत्रित हुए थे.

रास्ते में जगतगुरु को पुलिस ने गिरफ्तार किया
28 अक्टूबर को यह सभी पैदल अयोध्या जी के लिए निकल पड़े. कुछ किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में पुलिस ने शंकराचार्य को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इसके बाद राम भक्त आगे बढ़ते गए. फिर गंगा नदी के पुल के पास पुलिस लगी हुई थी. उन्होंने राम भक्तों को रोकने की कोशिश की, जब वह नहीं माने तो लाठी चार्ज किया, मुझ पर भी लाठियां भांजी गई जिसमें हाथ फैक्चर हो गया था. लेकिन हम रुकने वाले नहीं थे

100 किलोमीटर चलकर अयोध्या पहुंची
पुलिस से बचते हुए अयोध्या की तरफ बढ़ते गए वहां से करीब 100 किलोमीटर पैदल चलने के बाद अयोध्या तक पहुंचे, 2 नवंबर 1990 का दिन था वहां का नजारा देखकर होश उड़ गए, अयोध्या में लोगों पर पुलिस गोलियां चला रही थी, लोग मरते जा रहे थे. सड़क, मकान दुकान से ज्यादा लाशें पड़ी हुई थी. कहीं लाशें नदी में बहाई जा रही थी. तो कहीं पर नदी के किनारे जलाई जा रही थी. 2 दिन तक हम लोग वहीं पर रुके और 5 नवंबर को वापस सागर लौटे थे. वहीं जब साल 2020 में राम मंदिर के लिए चंदा किया गया था तो उसमें भी हम लोगों ने अपने समर्थ के अनुसार 111111 रुपए का दान किया है. मंदिर में भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद जैसे ही वहां पर माहौल थोड़ा ठीक हो जाएगा तो हम लोग जल्द से जल्द वहां पहुंचने की कोशिश करेंगे.

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