राजमा-फ्रेंच बीन के लिए खतरनाक है सफेद तना सड़न रोग? जानिए नुकसान-बचाव के उपाय

अभिनव कुमार/दरभंगा. ठंड में भी फसलों को कई रोगों से बचाने की जरूरत है. स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम के कारण होने वाली फ्रेंच बीन्स का सफेद तना सड़न, वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है. ऐसा कृषि वैज्ञानिकों का मानना है. इसके रोक थाम के लिए लक्षण, कारण, जीवनचक्र और इसके प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों को समझना महत्वपूर्ण है. चल रहे अनुसंधान और तकनीकी प्रगति सफेद तना सड़न के प्रभाव को कम करने और फ्रेंच बीन फसलों की निरंतर उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए स्थायी समाधान विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

जानिए क्या होती है यह बीमारी
इस पर विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ.राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिक प्रो. (डॉ ) एसके सिंह बताते हैं कि स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम कवक के कारण होने वाला सफेद तना सड़न, फ्रेंच बीन्स ,राजमा सहित विभिन्न फसलों को प्रभावित करने वाली एक विनाशकारी बीमारी है. यह मृदा-जनित रोगज़नक़ कृषि उत्पादकता के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है.

यह एक कवक रोग है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को प्रभावित करता है. जिसमें फ्रेंच बीन्स एवं राजमा विशेष रूप से अतिसंवेदनशील होते हैं. रोगज़नक़, स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम, एक नेक्रोट्रॉफ़िक कवक है जो सेम, सूरजमुखी और सलाद सहित कई मेजबान पौधों को संक्रमित करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने और कृषि उत्पादन पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए इस बीमारी की विशेषताओं को जानना समझना महत्वपूर्ण है.

क्या है इसका लक्षण
फ्रेंच बीन्स में सफेद तना सड़न की पहचान करने के लिए विशिष्ट लक्षणों पर गहरी नजर रखने की आवश्यकता होती है. प्रारंभ में, प्रभावित पौधे तनों पर, अक्सर मिट्टी की सतह के पास, पानी से लथपथ घाव दिखाई देते हैं. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, ये घाव नरम, सफेद, कपास जैसी मायसेलियल वृद्धि में विकसित होते हैं. कवक स्क्लेरोटिया, छोटी काली संरचनाएँ पैदा करता है, जो मिट्टी में रोग के बने रहने में योगदान देता है. संक्रमित पौधे मुरझा जाते हैं, जिससे कुल उपज में भारी गिरावट आती है.

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सफेद तना सड़न रोग को कैसे करें प्रबंधित?
फसल चक्र, घने पौधों से बचना और मिट्टी की उचित जल निकासी बनाए रखना सांस्कृतिक प्रथाएं हैं, जो बीमारी की घटनाओं को कम करती हैं. रोगज़नक़ को दबाने के लिए जैविक नियंत्रण एजेंटों, जैसे कि विरोधी कवक,का प्रयोग किया जा सकता है. फफूंदनाशकों से युक्त रासायनिक नियंत्रण प्रभावी हो सकता है. जब इसे रोकथाम के लिए या संक्रमण के प्रारंभिक चरण के दौरान लागू किया जाए.

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हालांकि, प्रतिरोध विकास को रोकने के लिए रसायनों का विवेकपूर्ण उपयोग महत्वपूर्ण है. फूल के दौरान एक कवकनाशी जैसे साफ या कार्बेन्डाजिम @2ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. घनी फसल लगाने से बचें.संक्रमित फसल में जुताई गहरी करनी चाहिए. रोग की उग्र अवस्था में बीन्स के बीच में कम से कम 8 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए.

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