बीते कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल का संदेशखाली सुर्खियों में बना हुआ है। संदेशखाली से जो खबरें छन-छनकर बाहर आ रही हैं, वो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को व्यथित कर सकती हैं। संदेशखाली पर जितनी रपटें और विश्लेषण सामने आए हैं, उनके मद्देनजर आश्चर्य होता है कि 2011 से वहां ‘दरिंदों’ के अत्याचार, यौन उत्पीड़न और भूमि पर जबरन कब्जों के सिलसिले जारी रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री उन्हें झूठ करार दे रही हैं। जो जानकारी आई उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि संदेशखाली में मध्ययुगीन गुलाम प्रथा जिंदा है।
संदेशखाली का पूरा मामला प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की कार्रवाई के बाद लोगों के सामने आया है। बीती 5 जनवरी, 2024 को ईडी के अधिकारियों ने राशन भ्रष्टाचार मामले में संदेशखाली के सरबेड़िया में तृणमूल नेता शेख शाहजहां से पूछताछ करने पहुंचे हुए थे। तृणमूल के गुंडों की मदद से न सिर्फ नेता शाहजहां शेख फरार हो जाने में कामयाब रहा, बल्कि इस दौरान सरकारी अधिकारियों पर भी हमले भी किए गए थे। इसके बाद से ही स्थानीय लोगों ने अपनी आवाज तेज कर दी और खुलकर सामने आ गए। जो कुछ भी उनके द्वारा बताया गया, वह 21वीं सदी में अकल्पनीय है।
शाहजहां शेख और उसके गुर्गे महिलाओं को अपनी निजी संपत्ति मानकर उठा ले जाते रहे और तृणमूल कार्यालय में रखकर उनका यौन शोषण कर छोड़ देते थे। विवाहित महिला के पति को भी ये कहा जाता कि उसकी पत्नी पर पहला अधिकार शेख का है। किसी भी सुंदर महिला को जबरन उठाकर ले जाना और उसका यौन शोषण करना संदेशखाली में आम बात थी। जब महिलाओं से पूछा गया कि वे इस अत्याचार के विरुद्ध अब तक खामोश क्यों रहीं तो उनका उत्तर था कि शाहजहां जब ईडी के डर से फरार हुआ तब जाकर उनमें साहस आया। वह लोगों की जमीनों पर जबरन कब्जा करने और उनकी मजदूरी छीनकर आतंकित करने का काम करता रहा किंतु तृणमूल कांग्रेस से जुड़ा होने की वजह से उसका हौसला बुलंद था।
ईडी की छापेमारी के बाद संदेशखाली महिला सशक्तीकरण का जीवंत उदाहरण बन गया है। लेकिन महिला होने के बावजूद ममता बनर्जी अभी तक अपनी पार्टी के कुख्यात नेता पर लग रहे आरोपों पर ध्यान देने के बजाय ये शिगूफा छोड़ रही हैं कि संदेशखाली आरएसएस का प्रभावक्षेत्र है। महिलाओं पर उनके साथ हुए बलात्कार को साबित करने का दबाव भी बनाया जा रहा है। विवाद बढ़ने के बाद 12 फरवरी को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने संदेशखाली का दौरा किया। यहां की महिलाओं से मुलाकात के बाद राज्यपाल ने मीडिया से कहा, ‘‘मैंने संदेशखाली की माताओं और बहनों की बातें सुनी. मुझे विश्वास नहीं हुआ कि रबिन्द्र नाथ टैगोर की धरती पर ऐसा भी हो सकता है।’’ राज्यपाल के बयान से स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की फैक्ट-फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट से भी संदेशखाली के हालात की भयानकता उजागर हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘गांव की महिलाओं से जुटाई गई गवाहियां परेशान करने वाली हैं, जो वहां व्यापक भय और व्यवस्थित दुर्व्यवहार की एक भयावह तस्वीर सामने लाती हैं।’ इसके मुताबिक, ‘पीड़िताओं ने पुलिस अधिकारियों और तृणमूल कांग्रेस के लोगों की ओर से की गई शारीरिक और यौन हिंसा की वारदातों का जिक्र किया।’ इससे लगता है कि शाहजहां शेख ने संदेशखाली में अपने गुनाहों का जो साम्राज्य कायम किया था, उसमें पुलिस भी सक्रिय तौर पर शामिल थी। राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गांव की जिस महिला ने भी अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, उन्हें उसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
चारों ओर से दबाव पड़ने पर दिखावे के लिए कुछ छुटभैये किस्म के तृणमूल नेताओं को पुलिस ने जरूर पकड़ा है किंतु जो लोग संदेशखाली के हालात का जायजा लेने जा रहे हैं उनको भी रोकने की करवाई पुलिस और प्रशासन द्वारा किए जाने से साफ है कि ममता सरकार को महिलाओं के मान-सम्मान से अधिक अपनी पार्टी के नेताओं की चिंता है। पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण की सारी हदें पार कर दी हैं। बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। ममता बनर्जी इनके तुष्टिकरण से ही सत्ता में बनी हुई हैं और इस्लामी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं। ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है।
वस्तुस्थिति ये है कि वामपंथी सरकार के राज में जो गुंडे आतंक का पर्याय थे वे सभी सत्ता परिवर्तित होते ही तृणमूल कांग्रेस में आ गए। परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल की स्थिति आसमान से टपके खजूर पर अटके वाली होकर रह गई। पहले जो लूटपाट वामपंथी पार्टी का कैडर करता था, वही अब तृणमूल कार्यकर्ता बन चुके असामाजिक तत्व धड़ल्ले से करते हैं। चूंकि पुलिस उनके क्रियाकलापों पर रोक नहीं लगाती लिहाजा जनता भी भयग्रस्त है। संदेशखाली की घटना पहली नहीं है। बीते कुछ सालों में यह राज्य अराजकता के शिकंजे में फंस गया है। चूंकि कांग्रेस और वामपंथी पूरे तौर पर हाशिए पर आ चुके हैं इसलिए भाजपा ही पश्चिम बंगाल में विकल्प के रूप में उभर रही है। संदेशखाली की लड़ाई में भी वही पीड़ित महिलाओं के साथ खड़ी हुई है। हालांकि लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ममता सरकार के विरुद्ध आवाज उठाया करते हैं किंतु जिस इंडिया गठबंधन में तृणमूल भी शामिल है, उसकी ओर से संदेशखाली में हुए अत्याचार के विरुद्ध कुछ न कहा जाना चौंकाता है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से भी ममता बनर्जी की सरकार का वैसा विरोध नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा है कि संदेशखाली में आरएसएस का अड्डा है और वही औरतों को उकसा और बरगला रहा है। यदि संघ किन्हीं आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त है, तो मुख्यमंत्री और राज्य पुलिस ने उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? लेकिन ममता बनर्जी ने इस कांड पर अब तक जिस प्रकार का गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया वह शर्मनाक है। क्या यह संभव हो सकता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जानकारी ही न हो कि उनका ‘सिंडिकेट’ कहां है? ममता-राज के दौरान तृणमूल के भीतर ही ऐसा सिंडिकेट बना दिया गया है, जो ज्यादातर हिंदू आबादी पर ही दरिंदगी दिखाते हैं। पुरुषों को जान से मार देने की धमकियां भी देते हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान इसी सिंडिकेट ने भाजपा के खिलाफ 273 घटनाएं की थीं। कई कार्यकर्ताओं को भी मार दिया गया था। यह गुंडई पंचायत चुनावों में सरेआम कहर ढहाती रही है। क्या एक महिला मुख्यमंत्री का शासन ऐसा भी हो सकता है कि दरिंदे खुलेआम हत्याएं और अत्याचार कर सकें? इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का रवैया भी निराशाजनक है।
जब किसी स्थान की दर्जनों महिलाएं उन पर हुए अमानुषिक अत्याचार की जानकारी सार्वजनिक रूप से दे रही हों तब तो मुख्यमंत्री को खुद उनसे मिलकर अपराधियों को सजा दिलवाने की पहल करनी चाहिए थी। लेकिन इसके विपरीत वे इसे राजनीतिक मोड़ देकर अपनी पार्टी के साथ जुड़े समाज विरोधी तत्वों को बचाने में जुटी हुई हैं। बेहतर होता कि कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन में शामिल अन्य दलों का संयुक्त प्रतिधिमंडल संदेशखाली में पीड़ित महिलाओं की बात सुनकर ममता बनर्जी को कठघरे में खड़ा करता किंतु वोटों की राजनीति के कारण महिलाओं के अपमान पर भी अधिकतर पार्टियां मौन साधे बैठी हैं। चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए देखना ये होगा कि इतना गंभीर मुद्दा कहीं राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और शोर—शराबे में दबकर न रह जाए। आरोपियों का कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जो नजीर बनें।
-आशीष वशिष्ठ
(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं)