ये 2 अफसर नहीं होते तो आज पाकिस्तान के कब्जे में होता जम्मू-कश्मीर, कैसे जिन्ना का प्लान कर दिया था फेल?

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और विभाजन के बाद पाकिस्तान के रूप में एक नए मुल्क का जन्म हुआ. मोहम्मद अली जिन्ना की दिली ख्वाहिश थी कि जम्मू-कश्मीर रियासत पाकिस्तान में मिल जाए, लेकिन महाराजा हरि सिंह किसी कीमत पर तैयार नहीं हुआ. आखिरकार जिन्ना और पाकिस्तान सरकार ने एक खौफनाक साजिश रची. कबायली पठानों को पैसा और हथियार देकर जम्मू-कश्मीर पर हमला करवा दिया. पाकिस्तान की तरफ से अचानक हुए इस हमले से महाराजा हक्का-बक्का रह गए, क्योंकि उन्हें ऐसा अंदेशा नहीं था.

कश्मीर पर हमले का समाचार, दिल्ली करीब 48 घंटे बाद पहुंचा और यह खबर महाराजा हरि सिंह या उनके किसी कर्मचारी ने नहीं बल्कि एक अंग्रेज अफसर ने पहुंचाई. इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ”फ्रीडम एट मिडनाइट” में लिखते हैं कि बंटवारे के बाद सारी चीजें तहस-नहस हो गई थीं. लोगों ने तमाम सरकारी संपत्तियों को उखाड़ फेंका. पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान को जोड़ने वाला टेलीफोन का तार संयोगवश बच गया. इस लाइन की बदौलत अब भी रावलपिंडी के 1704 नं. से नई दिल्ली के 3017 नं. को टेलीफोन कर सकना संभव था.

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मेजर-जनरल डगलस ग्रेसी (बाएं) और लेफ्टिनेंट जनरल सर राब लाकहार्ट (दाएं). फाइल फोटो

ये दोनों प्राइवेट नंबर थे. एक नंबर पाकिस्तानी सेना के कमांडर-इन-चीफ का था तो दूसरा भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ का. दोनों ही अंग्रेज अफसर थे और घनिष्ठ मित्र थे. वे पुरानी भारतीय सेना में एक-दूसरे के साथी रह चुके थे. 24 अक्तूबर को शाम करीब 5 बजे पाकिस्तान के मेजर-जनरल डगलस ग्रेसी को गुप्तचर विभाग की एक रिपोर्ट से पता चला कि कश्मीर में क्या हो रहा है. इससे पहले उन्हें कुछ खबर ही नहीं थी. जो खुफिया रिपोर्ट मिली उसमें हमलावरों की संख्या, उनके हथियारों, उनके ठिकानों का पूरा ब्यौरा था.

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इसके बाद उन्होंने बिना किसी झिझक के अपना निजी टेलीफोन उठाया और तुरंत भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ का नंबर मिला दिया. डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि जिन्ना यह नहीं चाहते थे कि भारतीय कमांडर-इन-चीफ को कश्मीर पर हमले का समाचार मिले, क्योंकि वही ऐसे शख़्स थे जो जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में जाने से बचा सकते थे. भारत के लेफ्टिनेंट जनरल सर राब लाकहार्ट स्काटलैंड के रहने वाले थे और सैंडहर्स्ट में ग्रेसी के साथ फौजी शिक्षा पा चुके थे. उन्होंने जब अपने पुराने मित्र से जम्मू-कश्मीर पर हमले की खबर सुनी तो हक्का-बक्का रह गये.

सर राब लाकहार्ट ने फौरन यह खबर दो और आदमियों तक पहुंचाया. दोनों ही अंग्रेज़ थे- गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और फील्ड मार्शल आकिनलेक. जिस वक्त माउंटबेटन को यह खबर मिली, उस वक्त वह थाईलैंड के विदेश मंत्री के सम्मान में दिए गए भोज में थे. इस भोज में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे. माउंटबेटन ने मेहमानों के जाने के बाद नेहरू से यह खबर साझा की. पंडित नेहरू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. अगले ही दिन सुबह-सुबह रक्षा समिति की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग खत्म होते ही वीपी मेनन, भारतीय सेना के कर्नल सैम मानेकशॉ और वायु सेना के एक अफसर को एयरफोर्स के डीसी3 विमान से श्रीनगर रवाना कर दिया गया.

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वीपी मेनन से मुलाकात में महाराजा हरि सिंह भारत में विलय को तैयार हो गए. तीनों अफसर फौरन दिल्ली वापस लौटे. यहां कश्मीर के खौफनाक हालात का ब्यौरा दिया. उस वक्त, कबायली श्रीनगर से बस 35 किमी दूर रह गए थे और तेजी से आगे बढ़ रहे थे. अगर भारत, सड़क के रास्ते फौज भेजती तो तब तक देर हो जाती. श्रीनगर एयरपोर्ट भी कबायलियों के कब्जे में आ जाता. सरकार ने हवाई मार्ग से सैनिकों को भेजने का फैसला लिया. 27 अक्टूबर की सुबह हवाई जहाज से भारतीय सैनिक श्रीनगर पहुंचने लगे और कबायलियों को पीछे धकेलना शुरू किया. पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.

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