कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल.अगर आप लीवर या पेट संबंधी बीमारी से जूझ रहे हैं और कई दवाइयों का सेवन कर परेशान हो चुके हैं, तो हिमालय की गोद में पाया जाने वाला यह पौधा आपकी परेशानी को दूर कर सकता है. कई असाध्य बीमारियों में रामबाण चिरायता का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है. यह 1500 से लेकर 2200 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जा सकता है.
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में हाई एल्टिट्यूड प्लांट फिजियोलॉजी रिसर्च सेंटर (HAPPRC) केडॉ राजीव रंजन कुमार चिरायता पर बीते 10 सालों से काम कर रहेहैं. वह बताते हैं कि चिरायता मलेरियल फीवर, ब्लड प्यूरीफायर समेत कई बीमारियों में लाभकारी है. इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी, हेपटोप्रोटेक्टीवे, एंटीऑक्सीडेंट, हाइपोग्लाइसेमिक, एंटी एसिडिक गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद कर सकते हैं. अगर इसकी काश्तकारी बड़े पैमाने पर की जाए, तो यह रोजगार की दृष्टि से भी बेहतर है क्योंकि इसकी मांग काफी ज्यादा है.
फार्मा कंपनियों में भारी डिमांड
व्यावसायिक रूप से उत्तराखंड के चमोली जिले और हिमाचल प्रदेश के चंबा में मुख्य रूप से चिरायता उगाया जाता है. उत्तराखंड के अन्य हिमालयी इलाकों में भी इसकी खेती के प्रयास किए जा रहे हैं. डॉ राजीव बताते हैं कि यहां कम उत्पादन होने के चलते नेपाल से बड़ी मात्रा में इसका आयात किया जाता है. चिरायता के औषधीय गुणों के कारण फार्मा कंपनियों में इसकी भारी डिमांड रहती है.
इन रोगों में कारगर
हिमालयी औषधि चिरायता का प्रयोग कई बीमारियों में किया जाता है. डॉ राजीव रंजन बताते हैं कि चिरायता में मौजूद मेथेनॉल मनुष्य का उपापचय बढ़ाकर वजन कम करता है. इसके अलावा इम्युनिटी बढ़ाने और ब्लड प्यूरीफायर के रूप में भी यह काम करता है. यह करेला और नीम की तरह की कड़वा होता है. चिरायता शुगर समेत त्वचा रोगों और लीवर कैंसर में भी लाभकारी है.
काढ़े के रूप में करें प्रयोग
उन्होंने आगे बताया कि इसका काढ़ा बनाकर भी सेवन किया जाता है. चिरायता को एक अच्छा लीवर डिटॉक्सीफायर माना जाता है, कब्ज, पेट से जुड़ी अन्य बीमारियों में चिरायता बेहतर विकल्प है. इसके लिए चिरायता के पौधे से बना काढ़ा बनाकर तब तक पीना चाहिए, जब तक की कब्ज ठीक न हो जाए.
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Tags: Health
FIRST PUBLISHED : January 6, 2024, 15:42 IST