ग्वालियर. ‘ये आपके तीरंदाज अफसरों की बैठक नहीं चल रही है. ये हाई कोर्ट है. जानकारी न होने पर भी आप बिना फुलस्टॉप के बोली जा रही हो.’ ये सख्त टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 5 मार्च को की. मौका था स्वर्ण रेखा नदी के सौंदर्यीकरण-संरक्षण मामले से जुड़ी याचिका पर सुनवाई का. हाई कोर्ट की डबल बैंच में हुई सुनवाई के दौरान मंगलवार को शासन ने एफिडेविट पेश किया. अर्बन एडमिनिस्ट्रेशन, भोपाल की जॉइंट डायरेक्टर सविता प्रधान ने यह एफिडेविट पेश किया. कोर्ट ने अंतिम सुनवाई के दौरान मांगी गई जानकारी न दे पाने और एक बार फिर पेश किए गए एफिडेविट में खामियां मिलने पर यह सख्त नाराजगी जाहिर की है.
दरअसल, इतिहास के पन्नों में स्वर्ण रेखा नदी को ग्वालियर की जीवनदायानी कहा जाता है. वर्तमान में स्वर्ण रेखा नदी नाले में तब्दील हो चुकी है. इसके सौंदर्यीकरण-संरक्षण और पुनुरुद्धार के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में जनहित याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता वकील विश्वजीत रतोनिया ने बताया कि मामले पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने निगम कमिश्नर और जॉइंट डायरेक्टर को फटकार लगाते हुए सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि, ‘यह आपके तीरंदाज अधिकारियों की बैठक नहीं चल रही है. यह हाई कोर्ट है. जॉइंट डायरेक्ट मैडम आपको हमने नहीं बुलाया है, आपको जानकारी नहीं है फिर भी बिना फुलस्टॉप के बोले जा रही हो, थोड़ा पढ़ कर आया करो. हम जनता का पैसा बर्बाद नहीं होने देंगे.
इस बात पर लगाई जोरदार फटकार
हाई कोर्ट ने कहा, हर बार सर्वे के लिए समय मांगते हो, कोर्ट मे एफिडेविट पेश करते हो कि सर्वे करा लिया है,आखिर यह चल क्या रहा है?’ हाई कोर्ट ने कहा, स्टेट टाइम की डाली गई सीवरेज लाइन 50 साल तक चली, लेकिन आपकी सीवरेज लाइन 10 साल भी नहीं चल रही है, फिर भी आप दावा कर रहे हो कि 83 फीसदी जगह शहर में सीवरेज लाइन है, सर्वे रिपोर्ट कहाँ है? कितनी सीवरेज चालू हैं? कितना लोड वे ले पा रही हैं? ये जानकारी है नहीं और दावा कर रहे हो कि सर्वे कराया है, हकीकत है कि कहीं भी टेक्नीकल एसेसमेंट नहीं हुआ है. हम चाहते हैं कि ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी में साफ पानी बहे. लोग उसका पानी पीएं, यह तब तक संभव नहीं है जब तक स्वर्णरेखा में नालों का गंदा पानी और सॉलिड गार्बेज मिलने से नहीं रोका जाता.
कोर्ट ने साबरमती नदी का दिया उदाहरण
हाई कोर्ट ने कहा एक समय था जब साबरमती नदी भी पूरी तरह से सूख गई थी. लेकिन, वहां के लोगों और जन प्रतिनिधियों ने प्रशासन के साथ संयुक्त रूप से काम किया. आज वहां तस्वीर बदल गई है. लेकिन, आप लोग बस सर्वे और एफिडेविट तक ही सीमित हो. जस्टिस रोहित आर्या ने कहा कि आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं अगले महीने रिटायर हो जाऊंगा. मामला कोर्ट में चलता रहेगा. इस भूल में मत रहना. इस मामले की सख्त नोट शीट तैयार करके जाऊंगा, ताकि आने वाले न्यायमूर्ति आप लोगों के दिए गए एफिडेविट को पढ़ें और मेरी बनाई नोट शीट के आधार पर आप लोगों के खिलाफ क्रिमिनल केस चलाएं. अब हम आपके पेपर के आंकड़ों पर नहीं जाएंगे, अब हम फिजिकल ग्राउंड पर जाएंगे. जरूरत पड़ने पर अपनी तरफ से एजेंसी डेप्लॉय करेंगे.
एजेंसी को कोर्ट में खड़ा करने की बात
हाई कोर्ट ने कहा, शासन को सर्वे के लिए वक्त चाहिए हम सर्वे के लिए वक्त देने के लिए तैयार हैं. लेकिन, उससे पहले अब आपकी सर्वे करने वाली एजेंसी को कोर्ट के सामने खड़ा होना होगा और हमारे सवालों के जवाब देने होंगे. उसके बाद ही हम सर्वे की परमिशन देंगे. गौरतलब है कि कोर्ट ने बीती सुनवाई में शासन को एफिडेविट के साथ प्रॉपर डिटेल रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था. साथ ही 2017 से अब तक स्वर्ण रेखा प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों को भी तलब किया था, लेकिन प्रॉपर रिपोर्ट पेश न होने पर कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी की. फिलहाल कोर्ट ने 14 मार्च को मामले की सुनवाई तय की है. इस दिन कोर्ट ने निगम के लिए सर्वे का काम करने वाली एजेंसी को तलब करते हुए प्रॉपर स्टेटस रिपोर्ट और डीपीआर की जानकारी पेश करने के निर्देश दिए हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 6, 2024, 07:08 IST