यूपी का गढ़देवी मंदिर…हल्दी के राजा से जुड़ी है रोचक कहानी, जानें कैसे हुआ नामकरण

सनंदन उपाध्याय/बलिया: जनपद बलिया के छाता में स्थित गढ़देवी का उच्च स्थान जिले के लिए आज भी धरोहर के रूप में स्थापित है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन काल में हल्दी के राजा ने इस मंदिर पर जलने वाले दीपक को लेकर पूरे गांव पर आक्रमण कर दिया था. यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर बना था कि इस पर जलने वाला दीपक सीधे हल्दी राजा को दिखाई देता था. उनको लगता था कि मैं हल्दी का राजा हूं और छाता में हमारे राज्य से ऊपर दीप प्रज्वलित हो रहा है. क्यों न इस दीपक को ही समाप्त कर दिया जाए. राजा ने इस गांव पर आक्रमण तो कर दिया, लेकिन सफल नहीं हो पाए. आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक और पौराणिक गढ़देवी की रोचक कहानी क्या है?

स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि देवी का इतिहास काफी प्राचीन और पारम्परिक होने के साथ ही रोचक भी है. इनकी कहानी हल्दी के राजा हर्ष नारायण देव से जुड़ी है. इस गढ़देवी मंदिर का पेड़ हजारों वर्ष पुराना है. इस नीम के पेड़ से कई विभिन्न प्रकार के पेड़ों की उत्पत्ति हुई है. बुजुर्गों ने कहा कि हम लोग अपने जन्म से इस पेड़ को देखते आ रहे हैं. इस पेड़ का वर्णन हमारे बुजुर्ग किया करते थे.

ये है गढ़देवी की रोचक कहानी
गांव के बुजुर्ग वशिष्ठ नारायण सिंह बताते हैं कि यह गढ़देवी का मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है. यह मंदिर काफी ऊंचाई पर बना हुआ है. जब यहां पर यह दीपक जलता था तो हल्दी के राजा को सीधे दिखाई देता था. इस मंदिर पर जलने वाले दीपक को लेकर हल्दी के राजा हर्ष नारायण देव ने एक बार आक्रमण कर दिया. इसी गांव के रहने वाले पहलवान हेलारा और बघेलारा आक्रमण को रोकने के लिए लाठी लेकर आगे बढ़े. बीच में आए पेड़ पर पहलवानों ने गांव के रक्षा को लेकर गढ़देवी का नाम लेते हुए पेड़ पर लाठी से प्रहार किया. एक ही प्रहार में पेड़ दो हिस्सा में फटकर बट गया. इस स्थिति को देख राजा के सभी सैनिक वापस लौट गए.

ऐसे हुआ नामकरण
स्थानीय लोगों (सुनील कुमार सिंह और संतोष कुमार सिंह अध्यापक) की माने तो बुजुर्गों के मुताबिक यह पूरा गांव किनवार वंशज का गढ़ था. यह पूरा गांव गढ़ होने के चलते इस स्थान का ही नाम गढ़देवी पड़ गया. यह देवी किनवार वंशज की देवी हैं, जिनका स्थान इतना ऊंचा है कि इस पर जलने वाला दीपक हल्दी तक दिखाई देता था.

हजारों वर्ष पुराना है गढ़देवी स्थान का पेड़
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह नीम का पेड़ हजारों वर्ष पुराना है. इसे हम लोग अपने जन्म से देखते आ रहे हैं. इस पेड़ का वर्णन हमारे बुजुर्ग किया करते थे. इस पेड़ से अलग-अलग तरह के पेड़ों की उत्पत्ति हुई है. यह किनवार वंशज की देवी हैं. आज भी किनवार वंशज के लोग इस देवी का भव्य पूजा अर्चना करते हैं. इस गांव के लोग गढ़देवी की पूजा करते हैं. किसी भी घर में कोई शुभ कार्य हो तो गढ़देवी की पूजा करने का प्रावधान प्राचीन काल से चलता आ है, जो अभी भी पूरी तरह से कायम है. मान्यता है कि गढ़देवी पूरे गांव की देखभाल करती हैं. किसी प्रकार की कोई अनहोनी इस गांव में नहीं होती है.

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