जेएनयू ने संशोधित ‘चीफ प्रॉक्टर ऑफिस’ नियमावली में कहा है कि संस्थान के अकादमिक भवन के 100 मीटर के दायरे में पोस्टर लगाने या धरना देने पर 20,000 रुपये तक का जुर्माना लग सकता है या (संस्थान से) निष्कासन किया जा सकता है. जबकि किसी भी ‘राष्ट्र विरोधी’ गतिविधि पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगेगा.
अधिकारी ने अपनी पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि परिसर के प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रदर्शन करने पर 20000 रुपये का जुर्माना कोई नया नहीं, बल्कि पुराना नियम है और उसे पिछले ही महीने विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (ईसी) ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी.
अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हमने कुछ भी नहीं बदला है. ये नियम पहले से थे. हम यह सुनिश्चित करने के लिए कि अकादमिक प्रक्रिया बाधित न हो, कुछ नये नियम लाए हैं. विद्यार्थियों को अब भी निर्धारित स्थानों पर प्रदर्शन करने का लोकतांत्रिक हक है.”
जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने नवंबर में जारी की गयी ‘चीफ प्रॉक्टर ऑफिस’ नियमावली को सोमवार को साझा किया था. उसमें 28 तरह के खराब आचरणों का जिक्र है जिनमें राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के लिए 10000 रुपये जुर्माना,दीवारों पर पोस्टर, अकादमिक भवन के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर पाबंदी एवं अन्य दंडनीय गतिविधियों का जिक्र है. ऐसी हरकतों के लिए 20,000 रुपये तक के जुर्माने या विश्वविद्यालय से निष्कासन तक के प्रावधान हैं.
छात्र संघ ने कहा था, ‘‘ नियमावली में बताये गये कठोर कदमों का लक्ष्य उस जीवंत परिसर संस्कृति का गला घोंटना है जिसने दशकों से जेएनयू को परिभाषित किया है. जेएनयूएसयू मांग करता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन आफिस आफ चीफ प्रॉक्टर मैन्युअल की नयी नियमावली को वापस ले.”
कुलपति शांतिश्री पंडित ने कहा कि बुरे आचरणों के विरूद्ध नियम एवं विनियम विश्वविद्यालय में काफी पहले से ही थे और उस नियमावली को बस ईसी द्वारा मंजूरी प्रदान कर कानूनी रूप से मजबूत बनाया गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘ यह कोई नयी नहीं, बल्कि पुरानी नियमावली है. पिछले महीने ईसी द्वारा सर्वसम्मति से पारित इस नियमावली को कानूनी रूप से सशक्त बनाया गया था. मद्यपान, मादक पदार्थ के सेवन , छात्रावास में दुर्व्यवहार तथा महिलाओं से अभद्रता जैसी अनुशासनहीनता के लिए जुर्माने हैं. सन 1969 से प्रॉक्टर कार्यालय कार्रवाई करता व जुर्माना लगाता रहा है और निष्कासन करता रहा है.”
छात्र संगठनों ने यह कहते हुए इस कदम की निंदा की है कि यह असंतोष दर्ज कराने के विद्यार्थियों के लोकतांत्रिक हक को छीनता है.
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