नई दिल्ली: कहते हैं कि अगर किसी बात को ठान लो तो असंभव कुछ नहीं है। कोशिश सच्चे मन से की जाए जो प्रकृति भी आपका साथ देती है। राजस्थान के टांकला गांव के रहने वाले किसान लिखमाराम मेघवाल ने हार नहीं मानी और सूखे रेगिस्तान में ‘पैसों वाला पेड़’ महोगनी लगा दिया। बंजर जमीन में खेती कर पाना, पेड़ लगाना मुश्किल होता है। जहां पेड़ों के नामोनिशान नहीं था, वहां मेघवाल ने असंभव को न केवल संभव कर दिखाया बल्कि आज उन पेड़ों से मोटी कमाई कर रहे हैं।
रेगिस्तान में उगाया ‘पैसों वाला पेड़’
लॉकडाउन के समय मेघवाल घर में बेरोजगार बैठे थे। उस खाली वक्त में उन्हें जैविक खेती का शौक चढ़ा। उन्होंने जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उन्होंने महोगनी के पेड़ लगाने का फैसला किया। ये काम मुश्किल था, क्योंकि रेगिस्तान में पानी नहीं होता। जमीन बंजर होती है, तेज धूप और कड़ाके की ठंड होती है, लेकिन उन्होंने कोशिश नहीं छोड़ी। जब तक महोगनी के पेड़ लग नहीं गए, उन्होंने कोशिश जारी रखी।
यूट्यूब से सीखा तरीका
मेघवाल ने यूट्यूब से महोगनी की खेती का तरीका सीखा। उसे लगाने, उसकी देखभाल करने, सिंचाई का तरीका जानने के लिए यूट्यूब का सहारा लिया। उन्होंने अपने खेत में 100 महोगनी के पेड़ लगाए, लेकिन उसमें से 90 पेड़ खराब हो गए। निराशा तो हुई, लेकिन मेघवाल ने हार नहीं मानी। उन्होंने बाकी के बचे 10 पेड़ों का अच्छे से ख्याल रखना शुरू किया। पेड़ों की देखभाल के लिए रिसर्च और कृषि विशेषज्ञों से जानकारी इक्ट्ठा की। आज उनके पेड़ तीन साल के हो चुके हैं। हालांकि महोगनी के पेड़ों को पूरी तरह से बड़े होने में 12 साल लगते हैं।
क्यों खास होते हैं महोगनी के पेड़
महोगनी के पेड़ों को ‘पैसों वाला पेड़’ कहकर बुलाते हैं। इस पेड़ से महंगी वस्तुएं बनाई जाती है। खासतौर पर हथियारों को बनाने में महोगनी की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। राइफल बनाने में इस लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा इससे नाव, फर्नीचर, प्लाईवुड, डेकोरेटिव आइटम, मूर्तियां आदि बनाई जाती है। महोगनी की लकड़ियां जल्दी खराब नहीं होती है, इसलिए इसकी डिमांड काफी हाई होती है। बाजार में इसकी लकड़ियों की कीमत 2000 रुपये प्रति घन फुट तक होती है। इसे लगाने में बहुत मेहनत नहीं करनी होती है। खाद-पानी का थोड़ा ध्यान रखना होता है। जड़ों में दीमक न लगे, इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना पड़ता है। इसे लगाने में बहुत पानी की जरूरत नहीं होती है। बस इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि जड़ों में पानी न लगे। इसकी खेती से किसान मोटी कमाई कर सकते हैं।