यहां 500 वर्ष पुराने वृक्ष के नीचे स्तिथ है करीब 1000 साल पुरानी यह प्रतिमा

भरत तिवारी/जबलपुर : वैसे तो जबलपुर शहर अपनी प्राचीनता के लिए पूरे देश में जाना जाता है. आज हम जबलपुर संस्कारधानी के एक ऐसे ही प्राचीन मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं, जहां पर स्थापित मां पाताल भैरवी की प्रतिमा करीब 1000 वर्ष पुरानी बताई जाती है कहते हैं कि  इस प्रतिमा की स्थापना 11वि से 13वीं शताब्दी के बीच चोल साम्राज्य काल के दौरान की गई थी.

जबलपुर की इस जगह पर करीब 500 वर्ष पुराने वृक्ष पर स्तिथ मां पाताल भैरवी की करीब 1000 हजार वर्ष पुरानी यह प्राचीन प्रतिमा, जहां कहते है आज भी नाग देव वासुकी मां की और भोलेनाथ की आराधना करने आते है.

कोन है मां पाताल भैरवी
पुराणों और ग्रंथों के मुताबिक माता काली रौद्र रूप में जमीन के भीतर निवास करती है, इसीलिए इन्हें पाताल भैरवी कहा जाता है, जिनके दर्शन के लिए दूर दूर से लोग उनके मंदिर में पहुंचते है.पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई, और तब काल भैरवी ने अंधकासुर का संहार किया. मां भैरवी के कई रूपों में से एक है मां पाताल भैरवी का यह रूप भी है.

इस वृक्ष की जड़ों में दिखती है कई देवी देवताओं की आकृति
हम बात कर रहे है जबलपुर के गौरीघाट रोड पर स्तिथ मां पाताल भैरवी की इस प्राचीन मंदिर की और यह मंदिर जिस वृक्ष की नीचे स्थापित है उसकी आयु करीब 500 वर्ष बताई जाती है और इसके बारे में मंदिर के पुजारी धर्मेंद्र दुबे ने कहा कि इस पेड़ की जड़ों में आज भी कई देवी देवताओं की आकृति उभर का दिखाई देती है.मंदिर के आस पास कुछ वृक्षों में देवताओं की आकृति दिखाई देती है उनमें से एक वृक्ष में नाग देवता वासुकी की आकृति साफ साफ दिखाई देती है, जिसके बारे में कहां जाता है की आज भी नाग देवता वासुकी यहां पर आकर भोलेनाथ और मां भैरवी की आराधना करते है. पुजारी जी ने अपनी बात में उस मार्ग का भी जिक्र किया जहां से कहते है की नाग देवता वासुकी मंदिर के अंदर प्रवेश करते है. पुजारी ने हमे बताया कि मंदिर की स्थापना 11 वी से 13वी शताब्दी के बीच किया गई थी लेकिन मां पाताल भैरवी की आध्यात्मिक दृष्टि से आज तक कोई असल उमर का पता नही लगा पाया है और इसकी स्थापना किसके द्वारा की गई है वो नाम भी आजतक अंजान है, गोंडवाना काल के दौरान रानी दुर्गावती भी यहां आकर मां पाताल भैरवी की आराधना किया करती थी.

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