यहां है विश्व का एकमात्र एकलव्य मंदिर, इसी जगह गुरु द्रोण ने मांगा था अंगूठा

हिमांशू/गुरुग्राम. गुरु द्रोण की धरती कहे जाने वाले गुरुग्राम में एक मंदिर ऐसा भी है, जो निषादराज एकलव्य के नाम से विख्यात है. लगभग 6 हज़ार साल पुराने इस मंदिर का पुनर्निर्माण का कार्य पिछले 14 महीने से जारी है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये जगह पहले खांडवप्रस्थ के नाम से मशहूर थी, जिसकी पहचान अब खांडसा गांव के रूप में की जाती है. इसी जगह एकलव्य गुरु द्रोण की प्रतिमा बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास किया करते थे.

बाद में जब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य की धनुर्विद्या को देखा तो वे हैरान रह गये और चूंकि उन्होंने पांडु पुत्र अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का वचन दिया था, इसलिए एकलव्य को अपना अंगूठा दक्षिणा के रूप में देने को कहा. इसी मंदिर में एकलव्य ने गुरु द्रोण को अपना अंगूठा दे दिया. खांडसा गांव में एकलव्य तीर्थ समिति नाम से मशहूर इस मंदिर में एकलव्य अकैडमी नाम से स्पोर्ट्स एक्टिविटीज भी की जाती हैंं. यहां के स्थानीय लोगों की मानें तो यहां करीब 200 बच्चे कुश्ती के गुर सीखने आते हैं, लेकिन बावजूद इसके हरियाणा सरकार या फिर जिला प्रशासन की ओर से इस अमुल्य धरोहर की अनदेखी की जा रही है.

धीमी गति से चल रहा निर्माण कार्य 
एकलव्य तीर्थ समिति के सदस्य मुकुल चौहान की मानें तो इनकी समिति के लोग हरियाणा के गवर्नर से भी मिल चुके हैं, लेकिन वहां भी सिर्फ आश्वासन के सिवा कोई भी आर्थिक मदद नहीं मिली. मुकुल चौहान की मानें तो लगभग 30 लाख रुपये की लागत अभी तक इस मंदिर के निर्माण कार्य में आ चुकी है. इस मंदिर में साल में दो बार मेला भी लगता है, जिसमें भारी संख्या में भील जनजाति के लोग भी अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. स्थानीय लोगों ने एक ट्रस्ट बना इस मंदिर का पुनः उद्धार करने की पहल जरूर की है, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते निर्माण कार्य बहुत धीमी गति से चल रहा है.

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