यहां है दुनया का पहला शिवलिंग,स्वंय भगवान शिव और मां पार्वती ने की थी स्थापना!

दीपक पाण्डेय/खरगोन.12 ज्योतिर्लिंग सहित देश के कोने-कोने में करोड़ो शिवालय है. अनेकों मंदिर ऐसे है जिनकी महिमा सबसे निराली है. ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के खरगोन मुख्यालय से करीब 50 Km दूर मां नर्मदा के पावन तट पर विद्वान पंडित मंडन मिश्र की पवित्र नगरी मंडलेश्वर में है. किंवदंती है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग विश्व का प्रथम शिवलिंग है, जिसकी स्थापना स्वयं भगवान शंकर और माता पार्वती ने की है.

वर्तमान में यह मंदिर श्री गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रख्यात होकर शासन द्वारा साल 2010 से पवित्र स्थल घोषित है. आदि गुरु शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ के दौरान इसी मंदिर की गुफा में शंकराचार्य का स्थूल शरीर छह महीने तक सुरक्षित रखा था. नर्मदा पुराण, दिग्विजय शंकर ग्रंथ, रेवा खंड, भागवत गीता सहित अन्य ग्रंथों एवं पुस्तकों में मंदिर का वर्णन मिलता है. नर्मदा परिक्रमा मार्ग में मंदिर स्थापित होने से बड़ी संख्या में भक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने आते है.

शिवलिंग स्थापन जुड़ी किवदंती
मंदिर के पुजारी परमानंद केवट ने कहा कि अनादि काल में यह क्षेत्र दारुकावन था. एक कथा के अनुसार शिव-पार्वती भ्रमण करते हुए दारुकावन आएं. यहां ब्राह्मण ऋषि तपस्या कर रहे थे. पार्वती ने शिव से उनकी तपस्या भंग करने की जिद्द की है. ईच्छा पूरी करने भोलेनाथ बाल रूप में नग्न होकर नृत्य करने लगे. यह देखे वन में मौजूद ऋषियों की सुंदर पत्नियां प्रभावित होने लगी. ऋषियों को आभास हुआ तो खोली. बालक को नग्न होकर नृत्य करते देख अच्छा नहीं लगा और लिंग यहीं गिरने का श्राप दिया.

ऐसे हुई पहले शिवलिंग की स्थापना
ऋषियों के श्राप से लिंग गिर गया. यह देख ब्रह्मा, विष्णु प्रकट हुए. ऋषियों को बताया कि यह भोलेनाथ है. तब ऋषियों ने श्राप से मुक्त होने और लिंग वापस पाने का उपाय बताया. नर्मदा से एक पत्थर लेकर यहां स्थापित करें और इसी में विराजित हो जाएं. महिलाएं जब पूजा करेंगी तो लिंग प्राप्त हो जाएगा. बताए अनुसार शिव-पार्वती ने यहां नर्मदा के पत्थर की स्थापना की, जो बाद में शिवलिंग कहलाया.

रात में आती है घंटियों और आरती की आवाजें
महिलाओं ने पहली बार यहां शिवलिंग की पूजा की. मंदिर में नंदी नहीं है. पार्वती की जगह नर्मदा की मूर्ति है. जो दूसरे शिवालयों में नहीं है. कुंड है जिसमे हमेशा नर्मदा का जल भरा रहता है. इसी जल से अभिषेक होता है. रात के समय लोगों को यहां किसी के होने का आभास होता है. सुबह 4 बजे घंटियों और आरती की आवाज सुनाई पड़ती है.

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