सच्चिदानंद/पटना : ‘उगते को पूजने वाला सारा संसार है, डूबते सूर्य हो आराध्य जहां पर वही अपना बिहार है… ‘ मगध क्षेत्र के इतिहास के जानकार अरविंद महाजन कहते हैं कि आदिकाल से मगध में सूर्य पूजन की पद्धति रही है. ऐसी मान्यता है कि छठ पहले पहल मगध से ही शुरू होकर पूरी दुनिया में फैला.
औरंगाबाद की सूर्य स्थली देव को सूर्य पूजन की लोक परंपरा का जन्मदाता माना जाता है. यह मंदिर अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे हुए है. रहस्य ऐसा जिसे सुन कर हर कोई चौंक जाएं. रहस्यों में मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में होना, आदित्य देव का त्रिदेव रुप में विराजमान होना, शिव पैरों पर बैठी हुई माता पार्वती और मुख्य द्वार पर भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति शामिल है. आइए जानते हैं इसके पीछे की क्या मान्यता है.
क्या है दरवाजा बदलने की कहानी
मंदिर में भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान हैं. भगवान सूर्य यहां उदय काल में ब्रह्मा, मध्याह्न में विष्णु व संध्या काल में महेश के रूप में दर्शन देते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है. कहा जाता है कि औरंगजेब अपनी शासनकाल में देश के मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचा था. जब वह सूर्य मंदिर को तोड़ने लगा, तो यहां के पुजारियों ने मना किया.
तब औरंगजेब ने कहा कि अगर सूर्यमंदिर में कुछ सत्यता है, तो रातभर का समय देता हूं अगर मंदिर का द्वार पूर्व से पश्चिम हो जाएगा, तो हम मंदिर को छोड़ देंगे. ऐसा ही हुआ, रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो गया. तब औरंगजेब मंदिर को नहीं तोड़ सका. आपको बता दें कि देव सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है. मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था.
मंदिर निर्माण की कहानी
मंदिर के निर्माण के बारे में मंदिर में लगे शिलालेख से ही पता चलता है. शिलालेख में लिखा है कि त्रेतायुग में राजा एल ने इसका निर्माण कराया था. वह कुष्ठ रोग से ग्रसित थे. एक दिन देव स्थित तालाब का जल ग्रहण किया तो राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ रोग ठीक हो गया. राजा उस तालाब में कूद गए जिस कारण उनके शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया. रात में राजा को सपना आया कि जिस तालाब में उन्होंने स्नान किया है उस तालाब में भगवान सूर्य की तीन स्वरूपी प्रतिमा दबी पड़ी है. राजा ने जब तालाब खुदवाया तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तीन प्रतिमाएं मिलीं.
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ऐसे हुई छठ पूजा की शुरूआत
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे. तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देव यूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी. प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र आदित्य भगवान हुए जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाया. तभी से यहां छठ मनाने की परंपरा शुरु हुई.
मंदिर की महिमा है अद्भुत
इसी स्थान से ताल्लुक रखने वाले चर्चित बॉलीवुड लेखक प्रभात बांधुल्य बताते हैं कि छठी मइया के आशीर्वाद से ही देव नगरी से मुम्बई तक का सफर तय हुआ. सूर्य नगरी देव से दस किलोमीटर की दूरी पर मेरा घर है. जब भी गृह जिला में मेरा रहना हुआ रविवार को सूर्य देव के सामने माथा टेकना जारी रहा. यह छठी मइया की ही कृपा है कि अपने लेखनी से लोगों के दिल मे जगह बना पा रहा हूं.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18/लोकल 18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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FIRST PUBLISHED : November 19, 2023, 12:53 IST