यहां मिलेंगी इतिहास की प्राचीन वस्तुओं से लेकर मूर्तियों की 3D रेप्लिका, जल्द खुलेगी सोविनियर शॉप

कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल. पुरातात्विक एवं प्राचीन वस्तुओं को उत्तराखंड का गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय का इतिहास एवं पुरातत्व विभाग संग्रहित करने के साथ इनका प्रतिरूप भी तैयार कर रहा है. विभाग द्वारा यहां 3D प्रिंटिंग मशीन लगाई गई है, जिससे खुदाई या आर्कियोलॉजिकल साइट पर मिलने वाली वस्तुओं को स्कैनिंग कर उनकी हूबहू नकल तैयार की जा रही है. इससे अब छात्र इन पुरातन वस्तुओं को देखने के साथ इन पर स्टडी भी कर सकते हैं. यूनिवर्सिटी द्वारा यहां तैयार किए गए प्रोटोटाइप अभी तक राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत कई अन्य हस्तियों को उपहार स्वरूप दिए जा चुके हैं. 3D प्रिंटिंग द्वारा तैयार किए गए प्राचीन सभ्यता के अवशेषों को अब लोग करीब से जान रहे हैं.

इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नागेन्द्र रावत बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट को शुरू करने का उद्देश्य यह है कि यहां के हेरिटेज को आम लोगों के साथ शेयर किया जा सके. 2017-19 तक वर्जीनिया विश्वविद्यालय अमेरिका के सहयोग से पुरातन वस्तुओं का 3D निर्माण किया जाता था. वह बताते हैं कि इतिहास एवं पुरातत्व विभाग द्वारा आर्कियोलॉजिकल साइट पर जाकर या उन्हें जो प्राचीन वस्तुएं खोज के दौरान मिलती थीं, उसे स्कैन किया जाता था. इसके बाद रेप्लिका बनाने के लिए अमेरिका भेजा जाता था, लेकिन 3D प्रिंटिंग मशीन और लेजर उपलब्ध होने के बाद अब विभाग में ही इनका निर्माण किया जा रहा है.

रिसर्च में भी मददगार

उन्होंने आगे कहा कि इसका एक बड़ा फायदा यह है कि जो प्राचीन वस्तुएं या मूर्तियां विभाग को विभिन्न पुरातन साइट से मिली हैं, उनकी डमी तैयार की जाती है. जिसका प्रयोग शोध कार्यों से लेकर उपहार या फिर मोमेंटो के तौर पर किया जा सकता है. वहीं वास्तविक वस्तु म्यूजियम में सुरक्षित रहती है.

यूनिवर्सिटी सोविनियर शॉप में मिलेंगी रेप्लिका

डॉ रावत जानकारी देते हुए बताते हैं कि अभी तक जितनी भी रेप्लिका तैयार की गई हैं, वह आम आदमी की पहुंच से दूर थीं, लेकिन चौरास परिसर में यूनिवर्सिटी सोविनियर शॉप नाम से एक आउटलेट स्थापित किया गया है, जो आने वाले कुछ माह में पूर्ण रूप से संचालित किया जाएगा. यहां पौराणिक वस्तुओं की रेप्लिका समेत अन्य 3D वस्तुओं को आम छात्रों व लोगों के लिए रखा जाएगा, जिससे कि लोगों तक इनकी उपलब्धता हो सके और इससे यूनिवर्सिटी की भी आमदनी हो सके.

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