मौसम की तरह बदलता है यहां की मूर्तियों का रंग, दिलचस्प है इसका इतिहास

आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. भारत मंदिरों का देश है. यहां हर एक किलोमीटर पर आपको एक मंदिर और उससे जुड़ी मान्यताओं के दर्शन हो जाएंगे. खास बात यह है कि हर एक मंदिर का अपना खुद का इतिहास और महत्व है. ऐसे में किसी एक मंदिर की तुलना दूसरे से करना, किसी भी सूरत में सार्थक नहीं होगा. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां स्थित देवताओं की प्रतिमा साधारण पत्थर से नहीं, बल्कि शुद्ध मूंगे से बनी है.

खास बात यह है कि मूंगे से बनी यह मूर्तियां 18 वीं शताब्दी में बनाई गई थीं, जिनके रंग में मौसम के अनुसार बदलाव भी देखने को मिलता है. आज हम आपको बिहार में स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर और वहां स्थित अद्भुत प्रतिमाओं की पूरी जानकारी देंगे.

मूंगे की चट्टान को तराश कर तैयार की गई मूर्ति

पश्चिम चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया के राज देवड़ी रोड में एक ऐसा मंदिर है, जिसमें स्थित देवताओं की प्रतिमाएं शुद्ध मूंगे की हैं. दरअसल, यह मंदिर बेतिया के जोड़ा शिवालय में भगवान गणेश और महाबली हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध है. इसकी स्थापना सन 1856 में बेतिया के राजा हरेंद्र किशोर ने की थी. एक भवन में जहां भगवान गणेश की मूर्ति है, तो वहीं दूसरी तरफ ठीक उसके सामने वाले भवन में हनुमान जी की मूर्ति है. गौर करने वाली बात यह है कि यह दोनों मूर्तियां मूंगे की चट्टान को तराश कर बनाई गई हैं. जिसमें कहीं भी कोई जोड़ नहीं है. हनुमान मंदिर के पुजारी हृदय नारायण झा हैं, तो वहीं गणेश मंदिर के पुजारी दिलीप कुमार झा हैं.

नेपाल ले जाने के क्रम में बेतिया राजा हरेंद्र किशोर ने रोका

मंदिर के पुजारी दिलीप और हृदय ने बताया कि यह मूर्तियां 18 वीं शताब्दी में चम्पारण से होते हुए नेपाल को ले जाई जा रही थीं. लेकिन रास्ते में बेतिया के राजा हरेंद्र किशोर ने इसे देखा लिया. उन्होंने इसकी मुंहमांगी कीमत का प्रस्ताव रख दिया. हालांकि, मूर्ति को नेपाल ले जा रहे लोगों ने उसे देने से इंकार कर दिया.

ऐसे में राजा ने मूर्तियों को सोने चांदी में तौल कर खरीदा और उनके लिए अपने राजदरबार के आसपास ही दो मंदिर प्रांगण बनाए. जिसे आज जोड़ा शिवालय या फिर इस रोड़ में स्थित महावीर-गणेश मंदिर के नाम से जानते हैं. बकौल दिलीप यह भगवान गणेश का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्रद्धालु उनकी पूजा दक्षिण दिशा की तरफ घूमकर करते हैं. हालांकि यह सही नहीं है, लेकिन बजरंगबली की मूर्ति सामने होने की वजह से नकारात्मकता खत्म हो जाती है.

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