सत्यम कुमार/भागलपुर : एक समय मोटा अनाज गरीबों का भोजन कहा जाता था. लेकिन अब यह सुपर फूड के रूप में उभरा है और अभिजात वर्ग के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहा है. बाजरा को मोटे तौर पर दो श्रेणियों ‘बड़ा मिल्लेट्स’ (ज्वार, बाजरा, रागी) और ‘छोटा मिल्लेट्स’ (कुटकी, कोदो, सावा, कंगनीध्काकुन और चीना) में वर्गीकृत किया गया है. इन सुपर फसलों की बहुमुखी प्रतिभा को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया.
हालांकि, खराब आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, कम मूल्य सृजन, बाजार नेटवर्किंग की कमी और तकनीकी बाधा के कारण पोषक-अनाज का बाजार अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं है. इस दिशा में काम करने के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘न्यूट्री सीरियल्स’ पर आयोजित कर रही है.
क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के संस्थान के 250 प्रतिभागी होंगे शामिल
यह संगोष्ठी बामेती, बिहार सरकार, सबएग्रिस, नाबार्ड,पटना के सहयोग से आयोजित की जा रही है. सेमिनार में बिहार सरकार के नीति निर्माताओं, स्टार्ट-अप, प्रगतिशील किसानों, वैज्ञानिकों और शोध छात्रों के साथ-साथ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के संस्थान के 250 से अधिक प्रतिभागी शामिल होंगे. यह दो दिवसीय कार्यशाला किसानों, वैज्ञानिकों, कृषि उद्यमियों, ग्रामीण युवाओं और छात्रों को संवेदनशील बनाने और बिहार और पड़ोसी राज्यों में पोषक अनाज के मूल्य संवर्धन में बल मिलेगा.
कहते हैं कुलपति
वहीं इसको लेकर कुलपति दुनियाराम से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि पहले के लोग मोटे अनाज खाकर ही इतने दिनों तक जीवित रहते थे. मोटे अनाज में भरपूर पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. इसलिए अब बिहार में फिर से मोटे अनाज की खेती पर जोर दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि किसानों को किस तरीके से इसका मार्केटिंग कर पाए, इसपर भी हमलोग काम कर रहे हैं. ताकि किसान मोटे अनाज की खेती कर पाए. एक बार फिर से पुराने खेती को करवाने की पहल की जा रही है.
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FIRST PUBLISHED : November 28, 2023, 21:23 IST