‘मेरे सामने ही 2 भाइयों को मारी गयी थी गोली’,बताते हुए रोने लगते हैं ओपी शर्मा

पटना. राम मंदिर का उद्घाटन में अब महज 5 दिनों का समय बचा है. 22 जनवरी यानि सोमवार को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. ऐसे में राम मंदिर उद्घाटन से पहले देशभर से कार सेवकों की अलग-अलग इमोशनल कहानियां भी सामने आ रही है. दरअसल राम मंदिर के लिए कई शहरों से कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर राम मंदिर आंदोलन के लिए अपना योगदान दिया था. इसी कड़ी में पटना के धनरूआ के रहने वाले ओपी शर्मा भी शामिल हैं, जो 1990 में और 1992 में कार सेवा के लिए अयोध्या पहुंचे थे.

ओपी शर्मा बताते हैं कि उनके सामने ही अयोध्या में 2 लोगों को गोली मार दी गई थी. इसी कहानी को बताते हुए ओपी शर्मा भावुक हो जाते हैं. फिलहाल पटना के बेउर इलाके में रह रहे ओपी शर्मा न्यूज़ 18 के साथ राम मंदिर आंदोलन को लेकर अपनी यादों को साझा करते हुए रोने लगते हैं. हालांकि ओपी शर्मा को इस बात का मलाल भी है कि उन इस ऐतिहासिक दिन के लिए निमंत्रन नहीं मिल पाया है. हालांकि ओपी शर्मा को खुशी है कि आज उनके सामने अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है.

पढ़ें राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी ओपी शर्मा की कहानी उनकी जुबानी- मैं दिल्ली में 1985 से लगातार 2010 तक दिल्ली में रहा हूं. मैं बहुत सौभाग्यशाली था कि मैं भी राममंदिर के निर्माण में सहयोग कर रहा था और 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन चरम सीमा पर था. मैं उन दिनों एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत था और 1991 में मैं YMCA से मैनेजमेंट कर रहा था. YMCA आज भी जंतर-मंतर, जय सिंह रोड़ पर दिल्ली में अवस्थित है. मुझे नौकरी में या कहें पढ़ाई में ध्यान कम ही लगता था. मैं समय निकाल कर चन्दा इकट्ठा करना और लोगों को राम मंदिर आंदोलन के बारे में बतलाता था.

मैं क‌ई बार कम्पनी के मालिक से भी बहसबाजी हो जाती थी. कम्पनी के मालिक सिर्फ राजनीतिक एजेंडा करार देते थे और मैं भारत के समप्रभुता की बात करता था .लेकिन कम्पनी ने कभी भी हमारा सैलरी कभी भी नहीं काटा. मैं आज की तरह ही उन दिनों अपने धुन में लगा रहता था. उन दिनों दिल्ली के भाजपा में दो प्रमुख हस्ती थे. एक का नाम श्री मदनलाल खुराना था और एक का नाम विजय कुमार मल्होत्रा था और मैं विजय कुमार मल्होत्रा के नेतृत्व में काम करता था और राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहा था.उन दिनों ही आडवाणी जी रथयात्रा पर निकले थे और मैं भी उन दिनों सिंधु बोर्डर दिल्ली में काफी लोगों के साथ आडवाणी जी का स्वागत कर रहे थे. उन दिनों आडवाणी जी के रथयात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था और देश राम मंदिर निर्माण के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

उन दिनों ही बिहार में लालू प्रसाद यादव जी मुख्यमंत्री थे और उत्तरप्रदेश में मुलायम यादव मुख्यमंत्री था. लालू प्रसाद यादव और मुलायम राम मंदिर आंदोलन के प्रबल विरोधी था और मुलायम ने तो घोषित कर दिया था कि अयोध्या में एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता है और देश के लाखों लोगों ने इसको चुनौती के रूप में ले रखा था. आडवाणी जी भी अयोध्या पहुंचने के लिए कृत संकल्पित थें और नारा दिया था मंदिर वहीं बनाएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे जहां भगवान श्री राम का जन्म हुआ था. आडवाणी जी को उन दिनों लोगों का अपार जनसमूह का समर्थन था और पूरे देश के लोगों के ज़ेहन में आडवाणी जी बिराजमान हो गये थे और पूरे देश वासियों के चहेते नेता बन कर उभरे थे.

मैं अब बात कर रहा हूं तारीख 28 अक्टूबर 1990 का. मैं भी विजय कुमार मल्होत्रा जी के साथ अयोध्या पहुंच गया था. विजय कुमार मल्होत्रा जी के साथ दिल्ली के हजारों लोगों का जत्था रवाना हुआ था जिसमें मैं अर्थात ओम प्रकाश शर्मा (ओ०पी० शर्मा) भी मौजूद था. उन दिनों हमारी जवानी थी और राम मंदिर के प्रति उत्साह आसमान पर था और कुछ कर गुजारने की तमन्ना थी. खैर , 28 अक्टूबर 1990 को रात में वक्त काफिले को निशाना बनाया गया और काफी लोगों को गुंडों द्वारा पीटा गया था और हमें भी चार या पांच लाठी लगा था और अंततः पूरी जत्था को सहारनपुर में बंद कर दिया गया था और ये बात अब बहुत पुरानी हो गई है. मैं उन दिनों भी सहारनपुर से किसी तरह से भागकर अयोध्या पहुंचने में सफल हो गया लेकिन मन में काफी भय व्याप्त था कि पता नहीं क्या क्या होने वाला है.

परेशानी उनको ज्यादा थी जो भगवा वस्त्र पहने हुए थे लेकिन मैं तो शर्ट और पैंट में था और देखने में भोला भाला लग रहा था लेकिन हमारे अंदर चिनगारी धधक रही थी. वस्त्र धारियों को टारगेट किया जा रहा था और हमें भी क‌ई जगहों पर दो तीन लाठी से मारा गया था लेकिन संतोष था कि मैं भी राम मंदिर निर्माण के लिए प्रयासरत हूं और यदि मर भी गए तो मोक्ष निश्चित है. 30 अक्टूबर 1990 को भी अयोध्या में एक पूल पर जाने के दरम्यान गुंडों द्वारा गोलियां चलवाई थी और उसमें भी काफी लोग हताहत हुए थे. पुल के दोनों ओर गुंडों द्वारा गोलियां चलवाई गई और अफरातफरी का माहौल बना दिया गया. काफी लोगों ने पुल के उपर से ही नदी में छलांग लगा दी और राम भक्त मारें गये. मैं इन सारी घटनाओं को देखकर हतास और भयभीत हो गया था. अब मैं किसी तरह से अयोध्या से भागने के लिए प्रयासरत था.

उस दिन अयोध्या का माहौल काफी विषाक्त हो गया था और आज भी हमें सिहरन सी हो रही है. मैं पूरी तरह से भयभीत था और भागने का भी कोई रास्ता नहीं था और मैं भुख और पानी के बिना बिलबिला रहा था क्योंकि मौत सामने खड़ी थी. मैं पागलों के तरह कभी इधर तो कभी उधर भटक रहा था. यहां तक कि कोई वहां के स्थानीय लोग भी सहयोग के लिए तैयार नहीं थे. हमें लाचारी में रूकने के सिवाय कोई उपाय नहीं था। जगह जगह पर मुल्ला मुलायम के प्राइवेट गुंडों के द्वारा गुंडा गर्दी किया जा रहा था.

अचानक 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में पुनः जनसैलाब उमड़ पड़ा और लोगों ने ढांचे के तरफ बढ़ने शुरू कर दिया और गुंडे भाग खड़े हुए और बहुत से लोग बैरिकेडिंग के पास भी पहुंच गए और गोलियों की आवाज आनी शुरू हो गई और दो लोगों को गोलियों से भून डाला गया था जो कि कोलकाता का रहने वाले थे और ये दोनों भाई गुप्ता परिवार से ताल्लुक रखते थे. अयोध्या में हमारे हिसाब से काफी लोग गोलियों से मारें गये थे और हमारी स्थिति थी कि मैं न जिंदा था और न ही मुर्दा था. आज यह लिखते समय पुरानी बातों को याद कर मैं रो रहा हूं.

जय श्री राम।
जय श्री कृष्ण।

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FIRST PUBLISHED : January 17, 2024, 14:42 IST

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