मनीष कुमार/कटिहार. मेरी आवाज ही पहचान है, अगर याद रहे… कई साल पहले स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाया गया यह गीत कटिहार जिले के दुर्गापुर की रहने वाली मानसी कुमारी पर सटीक बैठता है. मानसी दोनों आंख से दिव्यांग है. लेकिन उसकी पहचान उसकी सुरीली आवाज है. दोनों आंख से दिव्यांग होने के बावजूद मानसी ने हिम्मत नहीं हारी. अपनी आवाज से कटिहार ही नहीं पूरे बिहार में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. मानसी जब अपनी सुरीली आवाज में गुलजार साहब द्वारा लिखे गए किनारा फिल्म के इस गीत को गाती है, तो लोग यही बोल बैठते हैं कि मानसी की पहचान भी एक दिन उसकी सुरीली आवाज ही बनेगी.
मानसी के पिता मनोज शर्मा सैलून में काम करते हैं और मानसी कुमारी को संगीत सिखाते हैं. मानसी कहती है कि उसे कभी भी इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि वह दोनों आंखों से दिव्यांग है. वह कहती है कि वह इस सोच के साथ आगे बढ़ रही है कि जो इंसान दोनों आंख होने के बावजूद जिस काम को नहीं कर सकता है, वह खुद उस काम को कर सकती है. वह अब तक जिला के साथ-साथ पटना और दिल्ली तक के कार्यक्रमों में गायकी में सम्मानित हो चुकी है. आगे वह संगीत शिक्षिका बनकर दिव्यांगों को संगीत की शिक्षा देना चाहती है.
पिता बढ़ाते हैं बेटी का हौसला
मनोज शर्मा कहते हैं कि उन्होंने अपनी पुत्री मानसी का हर कदम पर हौसला बढ़ाया है. वह कहते हैं कि उनकी पुत्री का सपना है कि वह आगे चलकर संगीत की शिक्षिका बने और दिव्यांगों को मुफ्त में संगीत की शिक्षा देकर उन्हें आगे बढ़ाए. कटिहार में सामाजिक संगठन से जुड़े पम्मी चौधरी कहते हैं कि ईश्वर जब आपके लिए एक दरवाजा बंद करता है, तो कई दरवाजा खोल भी देता है. इसी का उदाहरण दुर्गापुर की रहने वाली मानसी कुमारी है. उम्मीद है कि जल्द ही मानसी को उसका मुकाम मिलेगा.
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FIRST PUBLISHED : January 10, 2024, 19:29 IST