ओम प्रकाश निरंजन / कोडरमा.वर्षों से सामाजिक परंपरा के नाम पर चली आ रही कुप्रथाओं को जागरूकता के बाद लोग धीरे-धीरे समाज से खत्म कर रहे हैं. ऐसा ही एक निर्णय सिख समाज कोडरमा ने लिया है. गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा के पूर्व सचिव यशपाल सिंह गोल्डन ने बताया कि सिख समाज हमेशा से समाज में समानता का संदेश देते आया है.
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति व सभ्यता में हिंदू और सिख धर्म में किसी की मृत्यु के बाद सामाजिक भोज कराने का रिवाज है, लेकिन इस परंपरा का निर्वहन करने में एक ओर जहां समय की बर्बादी होती है तो दूसरी ओर फिजूल खर्च. इस दौरान उच्च वर्ग तो ठीक, लेकिन मध्यम या निम्न आय वालों के लिए मौत के बाद भोज व्यवस्था के लिए धन जुटाना आसान नहीं होता है. परंपरा निभाने के लिए कई बार जमीन-जायदाद गिरवी रखने या फिर उधार लेने तक की नौबत आ जाती है. सिख समाज में भी अंतिम अरदास में मृत्यु भाेज की परंपरा चली आ रही थी.
खुशी में भोज और दुख में शोक मनाना चाहिए
यशपाल सिंह गोल्डन ने कहा कि मृत्यु भोज पर पाबंदी से फिजूलखर्ची खत्म होगी और सामाजिक एक रूपता को भी बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने आगे कहा कि सिख समाज में अंतिम अरदास के दौरान मृत्यु भोज पर रोक लगाने का प्रस्ताव उन्होंने समाज के समक्ष रखा. जिसका सभी ने समर्थन करते हुए इसे लागू करने पर सहमति जताई. समाज के लोगों का मानना है कि सभी को खुशी में भोज और दुख में शोक मनाना चाहिए. मृत्यु भोज एक गंभीर सामाजिक बुराई है. परिवार के सदस्य के खोने का दुख और इस पर भारी-भरकम खर्च का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए मृत्यु भोज से सभी को परहेज करना चाहिए.
मौत के बाद मृत्यु भोज के मेन्यू कार्ड पर होती थी चर्चा
यशपाल ने बताया कि किसी की मौत के बाद एक तरफ जहां उसका पार्थिव शरीर पड़ा होता है. वहीं दूसरी तरफ लोग मृत्यु भोज के मेन्यू पर चर्चा शुरू कर देते हैं. उन्होंने कहा कि जिस परिवार परिवार के सदस्य की मौत होती है उसे पर पहले से ही दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है और ऊपर से सामाजिक दिखावे के लिए फिजूल खर्ची कहीं से भी उचित नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : November 30, 2023, 17:12 IST