मृत्युभोज के खिलाफ 27 सालों से समाज को जागरूक कर रहा है यह शख्स

धीरज कुमार/मधेपुरा : हिन्दू समाज के सोलह संस्कारों में एक मृत्युभोज को भी माना जाता है. धर्मग्रंथों के अनुसार कालांतर से मृत्युभोज में तेरहवीं से पहले या बाद में ब्राह्मण भोज या यूं कहें कि अधिकतम 13 ब्राह्मणों को भोज कराकर यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था, लेकिन कालांतर से चली आ रही इस परंपरा को निभाने में कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं. पर कई लोग अब इस परंपरा को अलविदा कह दूसरों को जागरूक कर रहें हैं.ऐसे में मधेपुरा के आजाद नगर वार्ड नंबर 20 के रहने वाले समाजसेवी व साहित्यकार डॉ. भूपेंद्र यादव मधेपुरी ने यह बीड़ा उठाया.

समाज के विरोध करने के बावजूद अपने माता-पिता भाई-भौजाई की मृत्यु के उपरांत मृत्युभोज ना करके गरीबों में कंबल और समाज के जरूरतमंद दिव्यांग व गरीबों की मदद करने की शुरुआत आज से 27 साल पहले अपने पिता के निधन के वक्त किया. तबसे लेकर आज लगातार हर वर्ष ठंड में गरीबों को बांटते हैं. 100 कंबल और समाज में औरों को भी प्रेरित कर रहे हैं.

राजा राम मोहन राय से मिली थी प्रेरणा
साहित्यकार व पेशे से प्रोफेसर डॉ. भूपेंद्र यादव मधेपुरी बताते हैं कि उन्होंने साहित्य पढ़ने के दरम्यान राजा राम मोहन राय को खूब पढ़ा और उनके जीवन में काफी बदलाव आया और तभी मन में यह प्रण लिया कि समाज में मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को खत्म करना है. जिसकी शुरुआत मैंने अपने घर से किया और 1997 में अपने पिता की मृत्यु के बाद भोज नहीं किया. बदले में 100 गरीबों को कंबल बांटे. दिव्यांग और विधवा महिलाओं को अन्न व कपड़े और आगे अपनी माता और भाई-भौजाई की मृत्युभोज भी न करके गरीबों में कंबल बांटने की परंपरा शुरू की जो 27 साल से लगातार कर रहा है.

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समाज के लोगों ने किया था बहिष्कार
लोकल-18 बिहार से बात करते हुए डॉ.भूपेंद्र यादव मधेपुरी बताते हैं कि कि उनके माता पिता जब जीवित थे, तो वो अपनी माता-पिता को कहते थे, आप दोनों के जिंदा रहते खूब सेवा करेंगे. लेकिन मरने के बाद मृत्युभोज नहीं करेंगे. ऐसा ही किया और पिता की मृत्युभोज के बदले 100 गरीबों को कंबल बांटा और विकलांगों को अन्न गरीब बच्चों को स्कूल ड्रेस व किताब बांटा जो तबसे लेकर अबतक लगातार करते आ रहें हैं.

आगे वह कहते हैं कि जब हमने अपने पिता के श्राद्ध का मृत्यु भोज ना करने की बात कही, तो समाज के लोगों ने हमारा बहिष्कार कर दिया. लेकिन अब धीरे-धीरे उन लोगों को भी समझ आ रहा है. वह कहते हैं कि हमने अपने बच्चों से अपने मृत्यु उपरांत मृत्यु भोज के बदले गरीबों के लिए सामुदायिक भवन बनवा देना.

हर साल बांटते हैं 100 कंबल
मृत्युभोज को बहिष्कृत कर डॉ. भूपेंद्र यादव मधेपुरी हर साल ठंड में मकर संक्रांति के अवसर पर गरीबों में 100 कंबल बांटते हैं. गरीब बच्चों को स्कूल बैग व ड्रेस देते हैं. समाज में औरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं. कहते हैं कि किसी भी परंपरा को तोड़ने में समय लगता है. मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को खत्म होने में अभी बहुत वक्त लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे समाज में बदलाव आयेगा और लोग इस कुप्रथा को खत्म करेंगे.

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