मुसलमानों पर अत्याचार करने वाले चीन की चाल को कब समझेंगे इस्लामिक देश ?

कोरोना काल के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खराब हुई अपनी छवि को सुधारने और अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए चीन पिछले कुछ समय से इस्लामिक देशों का सहारा लेने लगा है। हाल ही में चीन ने इजरायल और हमास की लड़ाई के मुद्दे पर अपने देश में अरब और मुस्लिम देशों के साथ एक बैठक बुलाई जिसमें चीन ने अपने आप को मुसलमानों का सबसे बड़ा हमदर्द साबित करने की कोशिश करते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से गाजा में इजरायल और हमास के बीच चल रही लड़ाई को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने का आह्वान किया। 

चीन में हुई इस बैठक में सऊदी अरब, जॉर्डन, मिस्र, इंडोनेशिया और फिलिस्तीन के साथ-साथ दुनिया के 57 इस्लामिक देशों के संगठन- इस्लामिक सहयोग संगठन के नेता भी शामिल हुए। यह दावा किया गया कि चीन ने यह बैठक मिडिल ईस्ट में स्थाई शांति कायम करने के लिए बुलाई थी। चीन में हुई इस बैठक से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह भी संदेश देने का प्रयास किया गया कि चीन मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा है और वह इजरायल-हमास की लड़ाई के बीच फिलिस्तीन के साथ खड़ा हुआ है मतलब आतंकी संगठन हमास के साथ खड़ा हुआ है।

चीन में दो दिनों तक चली इस बैठक के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बयान दिया कि मुस्लिम देशों का अच्छा दोस्त और भाई होने के नाते चीन ने हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन किया है। चीन फिलिस्तीन लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा करना चाहता है। चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश फिलिस्तीन लोगों के वैध राष्ट्रीय अधिकारों और हितों को बहाल करने के उचित मांग का दृढ़ता से समर्थन करता है और नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाले कृत्यों की निंदा करता है।

विडंबना देखिए कि चीन के इतिहास की समझ रखने वाले दुनिया के इस्लामिक देश भी चीन के इस भंवरजाल में फंसते हुए नजर आ रहे हैं या शायद अपने-अपने स्वार्थों के कारण जानबूझकर चीन के झूठ और षड्यंत्र का समर्थन कर रहे हैं।

जो चीन अपने शिनजियांग प्रान्त में मुसलमानों पर ऐसे-ऐसे भयावह अत्याचार कर रहा है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है, जो चीन अपने देश में मस्जिदों को तोड़ रहा है या बंद कर रहा है, जो चीन अपने देश में रहने वाले दो करोड़ मुसलमानों को हर तरीके से प्रताड़ित कर रहा है, जिस चीन ने अपने देश के अंदर मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को तहस-नहस करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है वहीं चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को मुसलमानों और मुस्लिम देशों का सच्चा दोस्त, भाई और हमदर्द साबित करने की कोशिश कर रहा है और सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि उसी चीन की धरती पर जाकर इन इस्लामिक देशों के मंत्रियों के मुंह से चीन के मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर आवाज तक नहीं निकलती। 

दुनिया के इस्लामिक देश यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि चीन किस तरह से मिडिल ईस्ट में अमेरिका के सामरिक प्रभाव और भारत के नैतिक प्रभाव को कमजोर करने के लिए सिर्फ और सिर्फ उनका इस्तेमाल कर रहा है। चीन का मकसद मुसलमानों का हित नहीं बल्कि अपने व्यापारिक हितों को साधना भर है। 

चीन की मंशा का अंदाजा इस बात से बखूबी लगाया जा सकता है कि चीन ने दुनिया के इस्लामी देशों के साथ जो बैठक इजरायल और हमास की लड़ाई का समाधान निकालने के लिए बुलाई थी उस बैठक के बीच चीन ने सऊदी अरब के साथ एक अहम व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किया और वह समझौता था करंसी स्वैप का। चीन ने सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने और सहज बनाने के लिए सऊदी अरब के सऊदी सेंट्रल बैंक और चीन के पीपल्स बैंक ऑफ चाइना के बीच 3 साल के करेंसी स्वैप एग्रीमेंट पर सहमति जताई और दोनों बैंकों ने आने वाले तीन सालों में अधिकतम 50 अरब युआन तक का व्यापार करंसी स्वैप एग्रीमेंट के तहत करने का फैसला किया। समझौते में इस बात का उल्लेख किया गया है कि चीन और सऊदी अरब इस समझौते को आपसी सहयोग से आगे बढ़ा भी सकते हैं। चीन की इस चाल को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में अमेरिकी मुद्रा डॉलर के प्रभुत्व को कमजोर करने के अभियान का हिस्सा माना जा रहा है और इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि इस्लामिक देशों की बैठक को लेकर चीन सार्वजनिक तौर पर भले ही जो भी बयानबाजी करें लेकिन अगर वास्तव में दुनिया के ये इस्लामिक  देश अगर सही मायनों में मुसलमानों का भला चाहते हैं तो उन्हें चीन की इस चाल में फंसने की बजाय फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास सहित दुनिया के अलग-अलग इलाकों में आतंकवाद फैला रहे तमाम आतंकी संगठनों पर अपनी तरफ से नकेल कस कर उनके फंडिंग के रास्तों को बंद करना चाहिए और इसके बाद भारत जैसे देशों का साथ और समर्थन लेकर इजरायल फिलिस्तीन विवाद का स्थाई समाधान ढूंढने के लिए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि चीन का मकसद शांति स्थापित करना तो कतई नहीं हो सकता। अपने देश में मुसलमानों पर अकल्पनीय अत्याचार और संयुक्त राष्ट्र में आतंकवादियों का साथ देने वाला चीन शांति की जितनी भी बातें करें हकीकत तो यही है कि शांति और अमन से चीन का कभी भी कोई नाता नहीं रहा है।

-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

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