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सबसे पहले ये तस्वीर देखिए, पिछले साल जून के महीने में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री को कुछ इन हालातों में गिरफ्तार किया गया था।
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इमरान की गिरफ्तारी के 9 महीने बाद पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव हुए। इस वक्त पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में थे। उन्हें चुनाव से 5 दिन पहले 3 अलग-अलग मामलों में 31 साल की सजा सुना दी गई थी। खान से पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने उनका इलेक्शन सिंबल बैट भी छीन लिया था।
उनकी पार्टी के प्रचार करने पर भी बैन लगा था। सेना ने खान को लोगों की याद से मिटाने के लिए सब पैंतरे आजमाए। इसके बावजूद जब 8 फरवरी को चुनाव हुए, तो इमरान के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा वोट मिले। इन नतीजों ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। पाकिस्तान के चुनाव आयोग नतीजे देने में देरी कर रहा है।
क्रिकेट खेलने वाला लड़का राजनीति में इतना पॉपुलर कैसे हुआ कि जेल से चुनाव जीतने लगा। खान सियासत में कैसे आए और कैसे आर्मी के चेहते से उसके सबसे बड़े दुश्मन बन गए। इस स्टोरी में उनकी पूरी कहानी…
पाकिस्तान के नतीजों पर नजर
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सबसे पहले जानिए इमरान की जीत की 2 वजहें…
1. इमरान खान को सहानुभूति वोट मिला- जियो न्यूज के मुताबिक इमरान खान को चुनाव से पहले लगातार एक के बाद एक सजा सुनाई गई। यहां तक की उनकी शादी को भी गैर-कानूनी ठहरा दिया गया। इससे पाकिस्तान की अवाम में उनके लिए सहानुभूति पैदा हुई।
जेल जाने के बाद एक सर्वे में सामने आया था कि लोग उन्हीं की पार्टी को ज्यादा पसंद करते हैं। खान ने जेल जाने के बाद लगातार किसी न किसी तरह से लोगों से संपर्क रखा। वो जेल से अपने मैसेज भिजवाने में कामयाब रहे। उन्होंने लोगों के मन में ये बात पक्की कर दी थी कि सेना और अमेरिका की दखलंदाजी से उनकी सरकार गिरी। इससे लोगों में खान को लेकर सहानुभूति बनती चली गई, जो अब नतीजों में दिखाई दी।
2. नवाज की घटती लोकप्रियता- नवाज शरीफ 4 साल बाद चुनाव से महज 4 महीने पहले ही पाकिस्तान लौटे। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक लौटने के बाद भी उन्होंने कुछ खास रैलियां नहीं की। वो लोगों के बीच नहीं गए।
नवाज की गैर मौजूदगी के वक्त इमरान भ्रष्टाचार को लेकर उनकी छवि खराब करने में कामयाब रहे। ये एक अहम वजह रही कि इमरान के जेल में होने और नवाज के आजाद होने के बावजूद लोगों ने PTI के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवारों को ज्यादा चुना।
इमरान ने मुशर्रफ के लिए फांसी की मांग की, फिर फरार हुए
इमरान खान के करियर में 2 घटनाएं ऐसी थीं जो उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट मानी जाती हैं। पहला- 1992 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की जीत और दूसरा- 1996 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) पार्टी का गठन।
इमरान क्रिकेट की दुनिया में पाकिस्तान के पहले ऑलराउंडर रहे। 1987 में उन्होंने पाकिस्तान को भारत में पहली टेस्ट सीरीज जिताई थी। उस वक्त पाकिस्तान के तानाशाह जिया-उल-हक ने खान को पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML) में शामिल होने का न्योता दिया था। हालांकि, इमरान ने ये ऑफर ठुकरा दिया।
फिर 1996 में पहली बार इमरान ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) बनाई। सिर्फ 7 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन तब उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। हालांकि, धीरे-धीरे इमरान का राजनीतिक अनुभव और पार्टी कैडर दोनों बढ़ते गए। 1999 में कारगिल युद्ध में करारी हार के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्तापलट कर दिया।
उस वक्त इमरान ने इस तख्तापलट का खुलकर समर्थन किया, लेकिन 2002 तक वो मुशर्रफ के विरोधी बन गए। इसी साल इमरान की पार्टी एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन उसे 272 में से महज 1 सीट ही मिल पाई।
3 नवंबर 2007 को राष्ट्रपति मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगा दी। तब इमरान ने मुशर्रफ को फांसी की सजा देने की मांग की। इसके बाद उन्हें नजरबंद कर दिया गया, लेकिन वो फरार हो गए। बाद में उन्हें गाजी खान जेल में बंद कर दिया गया। हालांकि, 21 नवंबर को बाकी राजनीतिक कैदियों के साथ इमरान को भी रिहाई मिल गई।
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पाकिस्तान के तानाशाह जिया-उल-हक ने खान को उनकी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था।
सेना को खुश करके प्रधानमंत्री बने थे इमरान
पाकिस्तान की पत्रकार अतिका रहमान के मुताबिक “पाकिस्तान को वहां की जनता नहीं बल्कि जनरल चलाते हैं। सेना के कुछ अधिकारी पाकिस्तान के चुनावों में हेरफेर करते हैं। ये सरकार बनाते और बिगाड़ते हैं। ये पाकिस्तान की परमाणु और विदेश नीति को भी तय करते हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को सत्ता में टिके रहने के लिए एक काम जरूर करना पड़ता है, वो है सेना को खुश रखना। इमरान भले ही अब सेना पर उनके तख्तापलट का आरोप लगाते हों, लेकिन वो खुद भी इस टास्क को हिस्सा बनकर ही प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे थे।
बात साल 2018 की है, जब पाकिस्तान की मिलिट्री वहां की दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी का विकल्प ढूंढ रही थी। ऐसा विकल्प जो वंशवाद से परे हो। दरअसल, PPP पर भुट्टो परिवार और PML पार्टी पर शरीफ परिवार का कब्जा है।
इसकी वजह से सेना इन्हें ठीक से कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। देश की सत्ता के लिए सेना किसी मशहूर शख्स को लाना चाहती थी। फिर सेना को खान में वो व्यक्ति नजर आता है, जो दोनों पार्टियों को सत्ता से बाहर करने के उनके सपने को पूरा कर सकता था।
अपने करियर के पीक पर रहते हुए खान में वो सारी खूबियां थीं। वो क्रिकेट के लिए पागलपन रखने वाले देश को 1992 में वर्ल्ड कप जिता चुके थे, ऑक्सफोर्ड से पढ़े थे और दुनिया भर में उनकी पहचान थी। इमरान खान लाहौर में अस्पताल और यूनिवर्सिटीज को फंडिंग कर रहे थे। 1996 में उन्होंने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नाम से अपनी एक पार्टी बनाई थी। इससे साबित हो गया था कि खान को राजनीति में दिलचस्पी है।
पाकिस्तान के लिए विजन और इस्लाम को लेकर उनके विचारों ने सेना की नजरों में खान की छवि को और मजबूत कर दिया। खान उर्दू और अंग्रेजी में भाषण देते हुए लोगों को पाकिस्तान को महान बनाने का सपना दिखाते थे। पाकिस्तान के पॉलिटिकल कमेंटेटर सिरिल अलमेडा के मुताबिक लगातार 20 साल तक सेना ने पाकिस्तान के लोगों के मन में दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ नफरत भरी।
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सेना को जूनियर पार्टनर बनाकर रखना चाहते थे इमरान
पाकिस्तान के लोगों के बीच अपनी पकड़ होने का दावा करते हुए इमरान ने हमेशा इस बात से इनकार किया कि उन्हें सत्ता में लाने के पीछे सेना थी। 2018 में सत्ता में आने के बाद वो पाकिस्तान के बड़े मसलों में खुद की चलाने लगे थे। पाकिस्तान के पत्रकार सिरिल अलमेडा बताते हैं कि पहली बार सत्ता में आने के बावजूद इमरान प्रधानमंत्री के तौर पर कुछ ज्यादा ही सहज होने लगे थे।
सेना के साथ तीन साल काम करने के बाद वो चाहते थे कि मिलिट्री जूनियर पार्टनर बनकर ही रहे। इमरान के कई फैसलों में आर्मी को साइडलाइन करने की कोशिशें दिखीं। 2019 में इमरान ने पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने से बचने की बहुत कोशिश की, हालांकि इसमें सफल नहीं हुए।
इसी तरह इमरान ने बाजवा के चहेते माने जाने वाले जनरल नदीम अंजुम को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के मुखिया पद पर नियुक्ति देने में टालमटोल की और जानबूझकर इसे लटकाने की कोशिश की। इमरान ने ISI प्रमुख फैज हमीद को कोर कमांडर बनाकर पेशावर भेज दिया, जिससे बाजवा के रिटायर होते ही वह उनकी जगह सेना प्रमुख बन सकें।
वहीं इमरान खान देश को संभालने के मुद्दे पर भी फेल होते नजर आए। जब खान सत्ता में आए तो पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी समस्या लगातार घटते फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व की थी। इस दौरान खान ने IMF से लोन लेने के आइडिया को सिरे से खारिज कर दिया।
उन्होंने IMF से लोन लेने की तुलना गुलामी से की। उन्होंने कहा कि वो मर जाएंगे, लेकिन IMF से लोन नहीं लेंगे। हालांकि इसके 9 महीने बाद ही उन्हें IMF से लोन की पहली किश्त मिली। इमरान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान की जीडीपी साल 2018 में 315 अरब डॉलर थी, जो 2022 में गिरकर 264 अरब डॉलर रह गई।
महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। फरवरी 2022 में थोक महंगाई 12.2% और होलसेल महंगाई 23.6% तक पहुंच गई थी। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इमरान खान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार और बढ़ा। वह सबसे भ्रष्ट 180 देशों की सूची में 2021 में 140वां स्थान पर पहुंच गया। इसमें 180वां स्थान दुनिया में सबसे भ्रष्ट देश का होता है। पाक की रैंकिंग 2018 में 117, 2019 में 120 और 2020 में 124 थी।
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तस्वीर उन तोहफों की हैं, जो इमरान को बतौर PM बने थे। खान ने इन्हें गैरकानूनी तरीके से बेच दिया था।
घमंडी हैं इमरान खान?
नवंबर 2022 का एक दिन, शाम के वक्त पाकिस्तान की पत्रकार अतिका रहमान पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के लाहौर वाले घर में बैठी थीं। अतिका 3 नवंबर को रैली में हुए हमले के बाद इमरान खान का इंटरव्यू कर रही थीं। खान उनसे मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘जब एक के बाद एक गोलियां मेरे सिर पर से गुजरीं, तो सबसे पहले यही ख्याल आया कि क्या मुझे कहीं और भी चोट लगी है?’
बातचीत के दौरान खान एक शख्स को कमरे में बुलाते हैं और उसे कॉफी लाने के लिए भेज देते हैं। कुछ देर बाद एक ट्रे में उनके लिए कॉफी आती है, जिसे खान, अतिका के सवालों का जवाब देते हुए पीते हैं…करीब 4 महीने बाद अतिका द प्रॉस्पेक्ट नाम की मैगजीन के एक आर्टिकल में लिखती हैं, ‘एक ऐसे देश में जहां गरीब से गरीब व्यक्ति अपने घर आए मेहमान को चाय-पानी की पेशकश करता है, खान ने एक बार भी मुझसे कॉफी के लिए नहीं पूछा।’
साल 2018 में जब खान पाकिस्तान की सत्ता में आए तो उनके साथ क्रिकेट खेल चुके भारत के अंशुमान गायकवाड़ ने कहा था कि इमरान खान में घमंड है। उन्हें पता है कि वो दूसरे लोगों से अलग हैं। पाकिस्तान की टीम में वो दूसरे खिलाड़ियों से अलग ही नजर आते थे।
द स्टेटसमैन में पाकिस्तानी डिप्लोमैट मलीहा लोधी 2022 में इमरान खान की सरकार गिरने के पीछे उनके घमंड को असली वजह बताती हैं। वो लिखती हैं कि जब इमरान सत्ता में आए तो उनके पास सेना का पूरा समर्थन था, जनता में उनकी छवि अच्छी थी, सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य पंजाब में उनकी पार्टी के पास ताकत थी। इसके बाद भी वो अपने काम में फेल हो गए।
मलीहा लिखती हैं कि 2018 के चुनाव में इमरान की पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। उन्होंने गठबंधन से सरकार बनाई थी। गठबंधन की सरकार चलाने के लिए विनम्र होने और समझौता करने की जरूरत होती है। इमरान ने ऐसा बिल्कुल नहीं किया।
ऐसा ही पाकिस्तान के पत्रकार मुर्तजा अली शाह का भी मानना है। अंग्रेजी वेबसाइट द इंडिपेंडेंट में मुर्तजा, इमरान की सत्ता जाने के पीछे दो वजहों को जिम्मेदार ठहराते हैं। घमंड और नाकाबिलियत। मुर्तजा लिखते हैं कि सत्ता में आने के बाद इमरान ने सबसे पहले अपने आलोचकों को जेल में भरना शुरू कर दिया। कई पत्रकारों का काम बंद करा दिया। साफ है कि इमरान को आलोचना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं।
राजनीति में ही नहीं, पर्सनल लाइफ में भी घमंड की वजह से फेल हुए हैं इमरान
बतौर प्लेयर इमरान की इमेज प्लेबॉय की रही। 1995 में 43 साल की उम्र में उन्होंने 21 साल की जेमिमा गोल्डस्मिथ से शादी की, लेकिन यह शादी लंबे वक्त तक नहीं चल पाई और 2004 में तलाक हो गया। इसके बाद इमरान ने 2014 में पत्रकार रेहम खान से शादी की, यह शादी भी सिर्फ 1 साल ही चली।
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तीन शादियां करने वाले इमरान ने कहा- मैं शादी नहीं करना चाहता था
बुशरा बीबी इमरान की तीसरी पत्नी हैं, जो पाकिस्तान के पंजाब इलाके के काफी रूढ़िवादी परिवार से हैं। बुशरा पाकिस्तान में सूफी संत के तौर पर काफी मशहूर हैं, जिसके चलते उन्हें पीरनी भी कहा जाता है। ये टाइटल संतों को दिया जाता है। 48 साल की बुशरा के बारे में कहा जाता है कि वो बुरे सायों से परेशान लोगों को अपनी दुआओं से ठीक करती हैं।
अपने ड्रॉइंग रूम में बैठे हुए इमरान से पत्रकार अतिका ने बुशरा बीबी के बारे में पूछा था? इस सवाल को इमरान ने पहले इग्नोर कर दिया। अतिका ने दोबारा इमरान से उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में सवाल किया। इस पर इमरान ने शर्माते हुए कहा, ‘अब मैं एक शादीशुदा इंसान हूं… इससे ज्यादा मैं क्या कह सकता हूं।’
आसान शब्दों में कहूं तो मैं पहले कभी किसी का जीवन साथी बनने में यकीन नहीं करता था, पर अब मुझे लगता है कि मेरा जीवन साथी है। मैं शादी नहीं करना चाहता था क्योंकि मुझे लगता था कि वो फेल हो जाएगी। उस समय जब कोई मेरे सामने जीवन साथी होने की बात करता तो मैं सोचता था कि क्या मेरे पास भी कोई ऐसा इंसान होगा? क्या मैं भी इतना खुशकिस्मत बन पाऊंगा?
इमरान प्यार पर बात करते हुए अतिका को नेल्सन मंडेला से मिलने का किस्सा सुनाते हैं। वो कहते हैं, एक बार मुझे और मेरी पहली पत्नी जेमिमा को नेल्सन मंडेला ने फंड इकट्ठा करने के लिए एक ट्रेन की जर्नी पर बुलाया था। वहां मैंने मंडेला को अपनी पत्नी के साथ बैठे हुए देखा। उन दोनों के बीच की केमिस्ट्री बेहतरीन थी। तब मैंने सोचा था कि क्या मेरा भी कोई सोलमेट होगा? पर अब मैं कह सकता हूं कि हां मेरा भी कोई सोलमेट है।