प्रदीप धनखड़/झज्जर. आधुनिक जमाने में भले ही पारंपरिक मिट्टी के दीयों की जगह चीन की सस्ती और चमचमाती लाइटों ने ले ली हो, लेकिन भारत में दिवाली पर अभी भी कुछ शहरों में मिट्टी के दीयों की महक आती है. मुंबई में मिट्टी के दीयों का क्रेज अभी भी बरकरार है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मुंबई के लगभग 40 थोक विक्रेता पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से हरियाणा के झज्जर जिले से मिट्टी के दिए ऑर्डर देकर खरीद रहे हैं और इतना ही नहीं ये मांग कम नहीं बल्कि बढ़ती ही जाती है.
पहले मिट्टी के दीये बनाना संगठित उद्योग नहीं माना जाता था, लेकिन अब दीये बनाने के लिए कुम्हारों के कई परिवार संगठित होकर काम कर रहे हैं. हरियाणा के इन खास दीयों की मुंबई और पुणे के बाजारों में खूब मांग है. इन दीयों में इस्तेमाल की गई मिट्टी की गुणवत्ता काफी बेहतर होती है. मिट्टी के बर्तनों के साथ-साथ सरल दिया, पान दिया, गणेश दिया, गणेश थाली, नारियल कलश भी बनाए जाते हैं. झज्जर के चिराग दीये की बात ही कुछ और है. जिसमें नीचे से तेल डाला जाता है और यह ऊपर रोशनी देता है. ये दिए खास ऑर्डर पर ही बनाए जाते हैं.
कई महानगरों तक पहुंचाए जाते हैं ये खूबसूरत दीये
हरियाणा का झज्जर जिला ही नहीं बल्कि रोहतक जिले के कुम्हारों के भी लगभग 100 परिवार बड़े महानगरों की थोक आपूर्ति को पूरा करने के लिए साल भर दीये बनाते हैं. 2 करोड़ दीये बनाना बड़ी मेहनत का काम है और कोई एक परिवार इस काम को नहीं कर सकता. इसलिए अलग-अलग गांव के कुम्हारों के परिवार दीये बनाते हैं और ऑर्डर पूरा कर ये दीये झज्जर से गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई अन्य राज्यों तक पहुंचाए जाते हैं.
15 तरह के अलग-अलग डिजाइनों और रंगों के दीये
झज्जर के इन कुम्हारों ने इस बार करीब 15 तरह के अलग-अलग डिजाइनों और रंगों के दीये बनाए हैं जो लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं. झज्जर के दियों के साथ-साथ झज्जर की झझरी यानी सुराही की भी महानगरों में खूब मांग है. झज्जर के कुंभकारों ने आम लोगों से चाइनीज दीयों की बजाय स्वदेशी मिट्टी के बने दीये घरों को रोशन करने के लिए इस्तेमाल करने की मांग की है. ताकि कुम्हारों के घरों में भी खुशियां आ सकें
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FIRST PUBLISHED : October 27, 2023, 11:50 IST