‘मिशन-2023’ फतेह के लिए क्यों जरूरी है मध्यप्रदेश में आदिवासियों…

विपिन श्रीवास्तव

MP Assembly Election: मध्य प्रदेश में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जीत की तैयारियों में जुटी हुई हैं, एमपी का इस बार का चुनाव बेहद खास माना जा रहा है, हर बार की तरह इस बार भी मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी वोटर्स बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।

आदिवासी वोट बैंक का गणित

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 2 करोड़ हैं, जहां प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 100 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी वोटर्स हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। प्रदेश की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं। एमपी के 7 संभाग के 20 जिलों में 80 आदिवासी विकास खंड हैं। कुल 230 विधानसभा सीटों में से 80 सीटों पर आदिवासी निर्णायक वोटर माने जाते हैं। प्रदेश की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं।

वहीं एमपी की 230 विधानसभा सीटों में से ST के लिए 47 सीटें रिजर्व रखी गई हैं। 2013 के चुनाव में 47 सीट में से बीजेपी के पास 37 थीं। वहीं 2018 में 47 में से बीजेपी के पास 16 जबकि 31 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।

धार जिले का सियासी गणित

वहीं अगर मध्य प्रदेश के जिले धार की बात की जाए, जहां पर प्रियंका गांधी पहुंची, तो मालवा निमाड़ रीजन का सेंटर धार ही है। कुल 230 विधानसभा सीटों में से 66 सीटें मालवा निमाड़ रीजन में हैं। यहां पर कुल 66 सीट हैं, जहां 34 पर बीजेपी, 29 पर कांग्रेस और 3 पर अन्य का कब्जा है। मालवा निमाड़ की 66 सीटों में से आदिवासी बाहुल्य 22 सीटें हैं, राहुल गांधी ने एमपी में भारत जोड़ो यात्रा निमाड़ के बुरहानपुर से शुरू की और मालवा के आगर से होते गुजरी तो, अमित शाह ने भी अपनी पहली चुनावी सभा के लिए मालवा के इंदौर को चुना था। राजनीतिक दलों को यह बखूबी मालूम है कि एमपी की सत्ता में मालवा-निमाड़ की सबसे बड़ी भूमिका होती है।

2018 विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था, वहीं 22 में से 14 सीटें कांग्रेस ने जीती थी जबकि बीजेपी के खाते में महज 6 सीटें आयी थी जबकि 3 अन्य के खाते में हैं।

महाकौशल रीजन का गणित

महाकौशल रीजन में जबलपुर, कटनी, कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा, सिवनी, नरसिंहपुर, मंडला, डिंडौरी और बालाघाट जिले हैं। इस क्षेत्र में विधानसभा की 38 सीटें हैं। 2018 विधानसभा चुनाव में 24 सीटों पर कांग्रेस और 13 पर बीजेपी का कब्जा है जबकि एक सीट पर कांग्रेस से बागी होकर लड़े निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई है। 38 सीटों में से आदिवासियों के लिए आरक्षित 13 सीट हैं जिनमें से 11 पर कांग्रेस और सिर्फ 2 सीटों पर बीजेपी विधायक हैं।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *