गुलशन कश्यप/जमुई: हिंदू परंपराओं में सभी पूर्णिमा तिथि का महत्व होता है, लेकिन आश्विन माह की पूर्णिमा को बेहद खास माना जाता है, और इसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है और इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने से वह खीर अमृत में परिवर्तित हो जाता है, जिससे खीर का सेवन करने वालों पर लक्ष्मी की कृपा बरसती है.
ज्योतिषाचार्य मनोहर आचार्य बताते हैं कि इस दिन खुले आसमान के नीचे खीर बनाकर रखने से धन और धान्य की पूर्ति होगी, और चंद्रदोष से भी बचा जा सकता है. उन्होंने बताया कि 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है और संध्या काल 7:35 बजे से लेकर 11:00 बजे रात्रि तक चांद को अर्घ्य देने का सही समय है, इसी दौरान चांद को अर्घ्य देना चाहिए.
सफेद पुष्प और इन सामग्रियों से करें चांद की पूजा
पंडित मनोहर आचार्य ने बताया कि इस दिन चांद को अर्घ्य देने से चंद्रदोष मिटता है. उन्होंने बताया कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए सफेद पुष्प, दुग्ध की धारा, बेलपत्र, धूप, नैवेद्य आदि का इस्तेमाल करना चाहिए. अर्घ्य देने के बाद चांद के लिए एक दीप भी जलाना चाहिए. ऐसा करने के उपरांत खीर को खुले आसमान के नीचे रख दें और इसे पूरी रात चांद की रोशनी में ही रखने दें. सुबह इस खीर का सेवन करें और प्रसाद के रूप में इसे वितरित करें. चांद को अर्घ्य देने और इस खीर का सेवन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और यही कारण है कि इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सही माना जाता है.
भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन रचाया था महारास
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने महारास रचाया था. हजारों गोपियों के साथ मिलकर उन्होंने पूरी रात रासलीला की थी और अपने माया से उन्होंने 6 महीने लंबी रात और 6 महीने लंबा दिन बना दिया था. शरद पूर्णिमा के दिन हीं उन्होंने इसकी शुरुआत की थी, और द्वापर काल में भी शरद पूर्णिमा का इतना ही महत्व था जितना आज है.
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FIRST PUBLISHED : October 26, 2023, 12:05 IST