मिजोरम में जोरामथंगा में फिर से जीतने के भरोसे के पीछे मणिपुर संकट?

Mizoram Assembly Election 2023: जब भी मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा (Zoramthanga) अपनी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के लिए नुक्कड़ सभाएं करते हैं, तो वे पड़ोसी राज्य मणिपुर में जातीय अशांति का जिक्र जरूर करते हैं. 79 साल के जोरामथंगा राज्य की राजधानी आइजोल के बाहरी इलाके सिहफिर गांव में बैठकें करते रहे हैं. यह क्षेत्र उनके आइजोल पूर्व-1 निर्वाचन क्षेत्र के तहत आता है.

जोरामथंगा तीन बार के मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने न केवल मणिपुर से हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित चिन-कुकी जनजातियों को आश्रय दिया है, बल्कि मणिपुर में अपने समकक्ष एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ भी रुख अपनाया है.

हालांकि एमएनएफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का सहयोगी है, लेकिन जोरामथंगा ने म्यांमार के चिन-कुकी जनजातियों के कम से कम 40,000 शरणार्थियों  को रिश्तेदारी और पारिवारिक संबंधों का हवाला देते हुए खुले तौर पर आश्रय दिया है. 

MNF केवल केंद्र में एनडीए का सदस्य

जोरामथंगा ने एनडीटीवी से कहा, “हम चुनाव में बीजेपी के साथ भागीदार नहीं हैं. हम केवल केंद्र में एनडीए के सदस्य हैं, राज्य में नहीं. भारत सरकार ने मुझसे म्यांमार और बांग्लादेश शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए कहा था, लेकिन हम उन्हें आश्रय दे रहे हैं.” उन्होंने बताया, “वर्षों से भारत ने मानवीय सेवाएं दी हैं. मणिपुर मुद्दे पर हमारा रुख इस चुनाव में एक बड़ा, बड़ा प्लस पॉइंट है.”

एमएनएफ ने 2018 विधानसभा चुनाव में 40 में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. जोरामथंगा की पार्टी ने उन्हें “चिन-कुकी-ज़ो जनजातियों के संरक्षक” के रूप में पेश किया है, हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वियों और बीजेपी जैसी अन्य पार्टियों ने उन पर भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोजगारी, मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक नहीं लगाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर की खराब स्थिति का आरोप लगाया है.

मिजोरम कांग्रेस प्रमुख लालसावता ने एनडीटीवी से कहा, “मिज़ो लोग एमएनएफ को पसंद नहीं करते क्योंकि वे अभी भी बीजेपी के साथ हैं. लेकिन मणिपुर संकट ने हमें दिखाया है कि बीजेपी क्या है.”

मिजोरम में चतुष्कोणीय चुनावी लड़ाई

जोरामथंगा को कई चुनावों का अनुभव हैं. उन्होंने कुछ चुनाव जीते, कुछ हारे. इस बार उन्हें मैदान में कई दलों से कड़ी चतुष्कोणीय चुनावी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि मुख्यमंत्री को आशा है कि मणिपुर मुद्दे से उनकी पार्टी को मदद मिलेगी. पार्टी की स्थापना लालडेंगा ने की थी. उन्होंने 1986 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने तक एक संप्रभु मिज़ो राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए भारत के खिलाफ दो दशक लंबा गुरिल्ला युद्ध चलाया था.

जोरामथंगा ने कहा, “बहुस्तरीय लड़ाई मेरे लिए नई बात नहीं है. हम आराम से सरकार बना लेंगे. बीजेपी ने लंबे समय तक हमारे खिलाफ लड़ाई लड़ी है, इसलिए बीजेपी का हमारे खिलाफ अकेले लड़ना कोई नई बात नहीं है. हम एनडीए के संस्थापक सदस्य हैं, लेकिन हमारा समर्थन मुद्दा-आधारित है. जो भी पार्टी मणिपुर में मैतेई लोगों का समर्थन करती नजर आएगी, वह मिजोरम चुनाव में आत्मघाती होगी.”  

जोरामथंगा एक समय उस मिजो विद्रोही समूह के कैडर में थे जिसने 1966 में भारत से स्वतंत्रता की घोषणा की थी.

बीजेपी की मैतेई समुदाय से करीबी पर नाराजगी

जोरामथंगा ने पड़ोसी राज्य में सत्तासीन बीजेपी की ओर इशारा करते हुए कहा, “जेडपीएम (जोरम पीपुल्स लेफ्ट) में कई छोटे समुदाय एक जैसे मिलते हैं. वे एक संगठित पार्टी नहीं हैं. वे सत्ता में आने के लिए हर तरह की कोशिश करेंगे, लेकिन लोग नाराज हैं क्योंकि जेडपीएम एक ऐसी पार्टी के करीब है, जो मणिपुर में मैतेई लोगों की तरफ है.”

जोरामथंगा ने एनडीटीवी से कहा, “इस बार सत्ता में आने पर मैं शराबबंदी बरकरार रखूंगा. हम आत्मविश्वास के साथ अपने दम पर सरकार बनाएंगे.”

जेडपीएम प्रमुख लालदुहोमा ने कहा कि लोग एमएनएफ से थक चुके हैं. लालदुहोमा ने एनडीटीवी को बताया, “मिजोरम लंबे समय से एमएनएफ के अधीन रहा है और लोग वास्तव में अपने शासन के तरीके में बदलाव चाहते हैं. वे भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं.”

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