मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने पार्टी की चुनावी हार के बाद एमएनएफ अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया

आइजोल:

 
मिजोरम के निवर्तमान मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के हाथों अपमानजनक हार के बाद मंगलवार को मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

एमएनएफ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री तावंलुइया को भेजे गए अपने इस्तीफे में अस्सी वर्षीय आदिवासी नेता ने कहा कि वह पार्टी के प्रमुख के रूप में चुनावी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हैं।

उन्होंने त्‍यागपत्र में लिखा, एमएनएफ विधानसभा चुनाव जीतने में विफल रही। मैं पार्टी अध्यक्ष के रूप में इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं। यह मानते हुए कि एमएनएफ प्रमुख के रूप में यह मेरा दायित्व है, मैं अध्यक्ष पद से इस्तीफा देता हूं और आपसे अनुरोध करता हूं कि इसे स्वीकार करें। ।

सोमवार को नतीजे घोषित होने के तुरंत बाद जोरमथांगा ने राज्यपाल हरि बाबू कामभमपत से मुलाकात की और मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा उन्‍हें सौंप दिया।

ज़ोरमथांगा अपनी आइजॉल पूर्व-1 सीट हार गए, जहां जेडपीएम उम्मीदवार लालथनसांगा ने 2,101 वोटों के अंतर से जीत हासिल की।

तावंलुइया भी अपनी तुइचांग सीट जेडपीएम के डब्लू. चुआनावमा से 909 वोटों के अंतर से हार गए।

उग्रवादी संगठन से राजनीतिक दल बनी एमएनएफ को 7 नवंबर के चुनाव में केवल 10 सीटें और 35.10 प्रतिशत वोट मिले, जिसके नतीजे सोमवार को घोषित किए गए। सत्तारूढ़ दल ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 26 सीटें और 37.70 प्रतिशत वोट हासिल किए।

2018 में गठित जेडपीएम ने ईसाई बहुल राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा में 27 सीटें और 37.86 प्रतिशत वोट हासिल किए।

एमएनएफ मिज़ो राष्ट्रीय अकाल मोर्चा (एमएनएफएफ) से उभरा, एक मंच जिसने मिज़ो लोगों के निवास वाले क्षेत्रों में 1959 के अकाल के दौरान केंद्र की निष्क्रियता का विरोध किया था। करिश्माई नेता लालडेंगा के नेतृत्व में मोर्चे ने 1966 में उग्रवादी विद्रोह किया और कई वर्षों तक भूमिगत गतिविधियां चलाईं। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तहत मिजो शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद मिजोरम में सामान्य स्थिति लौट आई।

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