मालवा-निमाड़ अंचल, किसे हासिल होगा विक्रमादित्य सिंहासन?

हाइलाइट्स

22 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक
किसानों के मसले भी अहम
जयस की भी अनदेखी नहीं की जा सकती

मध्य प्रदेश का मालवा-निमाड़ अंचल विधान सभा सीटों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा इलाका है. यहां कुल 66 सीटें हैं. उज्जैन और इंदौर जैसे इलाके इसी अंचल में आते हैं. यहां के मतदाताओं का स्वभाव अपने तौर का निराला है. लेकिन माना जाता है कि प्रदेश में सरकार उसी दल की बन पाती है, जिसे इस अंचल के मतदाताओं का विश्वास और वोट मिलते हैं. विंध्य और सतपुड़ा  से घिरे निमाड़ को नर्मदा का सींचती है तो पठारी इलाके मालवा को चंबल और माही का पानी भी मिलता है. इस तरह से यहां संपन्न खेतिहर किसान हैं तो आदिवासियों की संख्या भी पर्याप्त है. लिहाजा सभी राजनीतिक दलों की मजबूरी है कि वे यहां किसानों-आदिवासियों की बात करें. मालवा में ही उज्जैन और इंदौर भी आता है. उज्जैन ही वो क्षेत्र है जो इतिहास में अवंतिका नगरी के नाम से दर्ज है. यहीं विक्रमादित्य का शासन था और यहीं संदीपनी का आश्रम है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी संदीपनी ऋषि से पढ़ने के लिए श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा के साथ आए थे. इंदौर उज्जैन से लगा जिला है जिसे मिनी बांबे भी कहा जाता है.

2018 चुनाव के नतीजे
ये तो मध्य प्रदेश के इस महत्वपूर्ण अंचल की पहचान हुई और यहां के मतदाता भी इन्हीं पहचानों के मुताबिक ही व्यवहार करते हैं. इस लिहाज से भी ये 66 सीटें सभी राजनीतिक दलों के लिए काफी कठिन मानी जाती है. अगर पिछले चुनाव के परिणाम देखे जाएं तो 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां की 66 सीटों में कांग्रेस को 35, बीजेपी को 28, और अन्य को एक तीन सीटें हासिल हुई थी. कमलनाथ सरकार गिरने के बाद 2020 में इस क्षेत्र की कुल 7 सीटों पर उपचुनाव हुए थे. उसमें छह सीटें बीजेपी को मिली थी और कांग्रेस को एक ही सीट से संतोष करना पड़ा. इस उपचुनाव के बाद कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हुआ और बीजेपी को एक सीट पर बढ़त मिली.

किसान आंदोलन
2018 के चुनाव में इस क्षेत्र में जब कांग्रेस ने बढ़त बनानी शुरू की तभी कांग्रेस नेताओं के हौसले भी बढ़े. क्योंकि आम तौर पर इस इलाके के मतदाताओं पर बीजेपी का असर ठीक ठाक रहा. हालांकि बीजेपी का तिलस्म टूटने की बड़ी वजह भी इसी इलाके से पैदा हुई थी. चुनाव से पहले किसानों ने मंदसौर में आंदोलन किया और पुलिस ने फायरिंग की. यहां 5 किसानों की मृत्यु हुई और शिवराज सरकार की स्थिति बिगड़ने लगी. कांग्रेस आला-कमान ने भी इस घटना को मुद्दा बनाया किसानों से तमाम वायदे किए. बहुत से जानकार दावा करते हैं 2018 में एमपी में कांग्रेस को कुर्सी मिलने के पीछे तमाम कारणों की चर्चा की जाएगी तो किसान आंदोलन और किसानों पर गोली चलाए जाने को प्रमुखता से गिनते हैं.

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… और कमलनाथ सरकार गिर गई
यहां इसका जिक्र करना भी जरूरी लगता है कि किसानों के मसले को ही मुद्दा बना कर उस वक्त कांग्रेस नेता के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ का विरोध शुरु किया था. इसका नतीजा ये हुआ कि कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री की मिल गई.

आदिवासियों का मुद्दा
इस क्षेत्र में आदिवासियों के सीधे असर वाली 22 सीटें है. बीजेपी को ये बात बहुत अच्छी तरह से समझ आ चुकी है. 2003 में पहली बार बीजेपी को यहां उन सीटों पर भी आदिवासियों के बीच पकड़ बनाने पर थोक के भाव यहां सफलता मिली. उस चुनाव में बीजेपी ने 51 सीटे जीतने में सफलता पाई. इनमें कई ऐसी सीटें भी थी, जिन पर पारंपरिक रूप से कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था.

इसे ही समझते हुए बीजेपी ने मध्य प्रदेश में लगातार आदिवासियों के हितों की बात की है. आदिवासियों को रिझाने वाली कई परियोजनाएं भी शुरु की है. वैसे कांग्रेस भी पीछे नहीं रही. राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में अपनी पदयात्रा की शुरुआत इसी इलाके से की. कांग्रेस ने इसी क्षेत्र के बुहरानपुर से जीतने वाली जमुना देवी को दो बार उपमुख्यमंत्री की कुर्सी भी सौंपी. इस क्षेत्र से दिग्गज कांग्रेस नेताओं में शिवभान सिंह सोलंकी और कांतिलाल भूरिया का भी राज्य की राजनीति में खासी अहमियत रही. जबकि बीजेपी की ओर से दिलीप सिंह जुदेव यहां आदिवासियों की बातें करके अपनी पकड़ कायम रखते थे. उनके बाद कहा जाय तो निर्मला भूरिया, नागर सिंह चौहान और रंजना बघेल जैसे आदिवासियों के नेता बीजेपी में हैं. शिवराज सिंह कैबिनेट में प्रेम सिंह पटेल और विजय शाह इस क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं. इसके अलावा बीजेपी में कैलाश विजयवर्गीय जैसा नेता भी इसी क्षेत्र से है और इस बार वे खुद चुनाव भी लड़ रहे हैं. हालांकि उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय को अभी तक पार्टी ने टिकट नहीं दिया है.

जयस का आधार
आदिवासियों की पार्टी होने का दावा करने वाले जयश को कांग्रेस ने अपनी ओर जोड़ने की कोशिश की. जय आदिवासी युवा शक्ति नाम की इस पार्टी ने कांग्रेस से 20 सीटें अपने लिए मांग ली. हालांकि कांग्रेस ने पार्टी को सिर्फ तीन सीटें दी. अब जयस में दो धड़े दिखने लगे हैं. एक धड़ा राष्ट्रीय संरक्षक डॉक्टर हीरा अलावा का है जिसने कांग्रेस से तीन सीटों पर समझौता कर ही लिया है. उन्होंने और सीटें मांगने वालों को ये कह कर संतुष्ट करने का प्रयास किया है कि जिन्हें अभी टिकट नहीं मिल पाया है उन्हें अलग अलग निगमों में एडजस्ट किया जाएगा. जबकि जिन्हें टिकट नहीं मिला है, उन्होंने अलग से चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर रखी है. बहरहाल, निर्णायक आदिवासी मतदाताओं वाली इन 22 सीटों के साथ ही मालवा का पठार और विंध्य सतपुड़ा से घिरे इस इलाके की अनदेखी कर पाना किसी राजनीतिक दल के बस की बात नहीं है.

Tags: BJP, Congeress, MP Assembly Elections

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