माता-पिता का त्याग हुआ सफल…बेटे की पढ़ाई को जमीन रखी गिरवी, अब इसरो में चयन

गौरव सिंह/भोजपुर : बड़ी सफलता के पीछे पॉजिटिव अप्रोच के साथ आपको बढ़ना होता है. इसके बाद मंजिल कितनी भी बड़ी क्यूं न हो आप सफल हो ही जाते हैं. ऐसी ही सफलता बिहार के इस लाल ने पाई है. 9वीं क्लास में स्पेस का वीडियो देख इसरो में जाने का सपना सजाया, इसके पीछे मेहनत की, अब इसरो में टेक्निकल एस्टिटेंट के पद पर चयन हुआ है.

बेहद ही गरीब परिवार से आने वाले बरगही गांव के तपेश्वर कुमार की कहानी काफी प्रेरणादायक है. परिवार ने जमीन गिरवी रख अपने बेटा को पढ़ाया, अब उनका बेटे ने न सिर्फ परिवार, बल्कि पूरे जिला का नाम देश के पटल पर रौशन किया है.

बेहद गरीबी हालात से लड़ते हुए बेटे को पढ़ाया
बिहार के आरा में एक किसान के बेटे ने अपनी कड़ी मेहनत और 12 घंटे की पढ़ाई के बदौलत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(ISRO) में जगह बनाया है. जहां छोटे से गांव के निम्न मध्यम परिवार से निकल कर तपेश्वर कुमार ने कंप्टीशन की तैयारी कर पहली बार में ही सफलता हासिल कर इसरो में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर ज्वाइन किया है.

तपेश्वर कुमार मूलरूप से उदवंतनगर प्रखंड के बरगही गांव निवासी और पेशे से किसान श्याम बिहारी कुशवाहा के 21 वर्षीय पुत्र हैं. इनकी मां चंद्रवती देवी गृहणी है. तपेश्वर कुमार की मां चंद्रावती देवी और पिता श्याम बिहारी कुशवाहा बेहद गरीबी हालात से लड़ते हुए बेटे को पढ़ाया.

ऐसा रहा इनका सफर
इसरो में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर बहाल तपेश्वर कुमार की प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से हुई. इसके बाद 2018 में बिहिया के हाई स्कूल से मैट्रिक पास कर 2021 तक पटना न्यू गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज में डिप्लोमा की पढ़ाई की. साल 2018-21 बैच में मैकेनिकल इंजीनियरिंग से डिप्लोमा किया. फिर इसरो के लिए TCS की परीक्षा में शामिल होकर वो पहली दफा में ही टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर चयनित हुए. तपेश्वर के (ISRO) में सलेक्शन होने के बाद से परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है.

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10 कट्टा जमीन को गिरवी रख बेटे को पढ़ाया

लोकल 18 से बात करते हुए तपेश्वर कुमार बताया कि 9वीं की पढ़ाई के दौरान उन्हें स्कूल के एक शिक्षक ने मोबाइल में यूट्यूब के माध्यम से अपोलो मिशन के कुछ वीडियो दिखाया था. इसके बाद से ही उनकी रुचि अंतरिक्ष विज्ञान में हो गई. स्पेस साइंस की पढ़ाई में दिलचस्पी दिखाते हुए यह मुकाम पाया.

तपेश्वर कुमार ने बताया कि स्पेस साइंस की पढ़ाई को लेकर उनका चयन एक कोचिंग संस्थान में हुआ था. लेकिन फीस ज्यादा होने की वजह से वो ऑफलाइन पढ़ाई ना कर फ्री ऑनलाइन पढ़ाई का सहारा लिया. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो काफी चिंतित भी थे. उनके माता-पिता द्वारा पढ़ाई जारी रखने को लेकर जमीन गिरवी रखी थी. गांव के 10 कट्टा जमीन को गिरवी रख कर 40 हजार रुपया मिला था. जिससे एक साल तक तपेश्वर की पढ़ाई हुई.

आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में देंगे योगदान
20 सितंबर को कोलकाता में लिखित पहली परीक्षा हुई. उसके बाद दिसम्बर को तामिलनाडु के नागरकॉल में लैब में स्किल टेस्ट हुआ और 22 दिसंबर को फाइनल रिजल्ट आया और उनका सलेक्शन इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी (ISRO) में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर चयन हुआ. अब तपेश्वर जनवरी के अंत तक आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में योगदान देने वाले हैं.

चाचा का भी रहा योगदान
तपेश्वर कुमार के कहा कि सफलता के पीछे उनके मां-बाप का हाथ तो है ही लेकिन उनके चाचा और चाची का भी भरपूर सहयोग है. तपेश्वर कुमार के चाचा नंद जी महतो के ऊपर ही पैसे जुगाड़ करने की जिम्मेदारी थी. वहीं खेती कर हर माह 7 से 8 हजार रुपया पटना में तैयारी के लिए भेजते थे. बाद में पैसे नहीं हो पाए तो चाचा के द्वारा ही जमीन को गिरवी रखी गई. फिर 40 हजार रुपया एकत्रित कर वो तपेश्वर को एक साल तक खर्च देते रहें. उन्होंने बताया कि जो खेत गिरवी रखे थे उसको तपेश्वर वापस लेगा.

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