माघ मेले का आखिरी स्नान पर्व महाशिवरात्रि आज, संगम में उमड़ा आस्था का सैलाब

हाइलाइट्स

महाशिवरात्रि के मौके पर शुक्रवार को प्रयागराज के संगम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है
बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरसवती की त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं

प्रयागराज. माघ मेले का आखिरी स्नान पर्व महाशिवरात्रि के मौके पर शुक्रवार को प्रयागराज के संगम में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरसवती की त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं. महाशिवरात्रि के पर्व को लेकर मेला प्रशासन की तरफ से भी व्यापक इंतजाम किए गए हैं. स्नान घाटों पर डीप वाटर बैरिकेडिंग लगाई गई है और घाटों पर जल पुलिस और गोताखोर तैनात किए गए हैं.

मेले की सुरक्षा में पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती की गई है. मेले में ड्रोन कैमरे और सीसीटीवी कैमरे से भी निगरानी की जा रही है. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों के लिए पार्किंग बनाई गई है. संगम में स्नान के बाद शिवालयों में जलाभिषेक के लिए तीन प्रमुख शिवालयों में इंतजाम किए गए हैं. मनकामेश्वर मंदिर, नाग वासुकी मंदिर और सोमेश्वर महादेव मंदिर में भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. मनकामेश्वर सहित दूसरे शिवालियों में जलाभिषेक के लिए सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा है. महाशिवरात्रि के पर्व के साथ ही 15 जनवरी मकर संक्रांति से शुरू हुए माघ मेले का औपचारिक समापन भी हो जाएगा।

महाशिवरात्रि के पर्व पर इस बार प्रदोष का अद्भुत संयोग बन रहा है, जिसके चलते इसका महत्व कई गुना बढ़ गया है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालु संगम की त्रिवेणी में स्नान कर शिवालियों में जलाभिषेक करते हैं. प्रयागराज में यमुना नदी के तट पर स्थित मनकामेश्वर मंदिर में भी हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. प्राचीन और पौराणिक मनकामेश्वर महादेव मंदिर को ब्रहमलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की देखरेख में वर्तमान स्वरूप मिला है.

मंदिर के व्यवस्थापक स्वामी श्रीधरानंद ब्रह्मचारी के मुताबिक मान्यता है कि सतयुग में यहां पर शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ. भगवान शंकर कामदेव को भस्म करके यहां पर विराजमान हो गए. शिव पुराण, पद्म पुराण व स्कंद पुराण में इसका उल्लेख ‘कामेश्वर तीर्थ’ के रुप में मिलता है. त्रेता युग में भगवान राम वनवास जाते समय जब प्रयाग आए तो अक्षयवट के नीचे विश्राम करके इस शिवलिंग का जलाभिषेक किया था. कहा जाता है कि यहां सच्चे हृदय से आने वाले भक्तों की कामना स्वत: ही पूरी हो जाती है. मंदिर परिसर में ऋण मुक्तेश्वर महादेव भी विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि इसकी स्थापना त्रेतायुग में भगवान सूर्यदेव ने की. यहां सच्चे हृदय से 51 दिनों तक दर्शन-पूजन से पितृ, आर्थिक सहित हर तरह के ऋण से मुक्ति मिलती है. श्रीधरानंद ब्रह्मचारी के मुताबिक महाशिवरात्रि के पर्व पर भक्तों के लिए खास व्यवस्था रहती है. सुबह साढ़े तीन बजे अभिषेक और मंगला आरती के बाद के बाद दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. प्रशासन की ओर से भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल की तैनाती की जाती है. इसके अलावा सीसीटीवी कैमरा और बैरिकेडिंग का इंतजाम किया जाता है.

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