हाइलाइट्स
20 हजार से अधिक बॉडी का पोस्टमार्टम कर चुकी हैं मंजू मलिक.
एक साधारण महिला जो असाधारण कार्य करने के बाद बनीं मिसाल.
समस्तीपुर. बिहार के समस्तीपुर की रहने वाली मंजू समस्तीपुर के सदर अस्पताल में पोस्टमार्टम सहायिका के रूप में कार्यरत हैं. हर दिन इनका काम जिले के अलग-अलग जगह से आने वाले शवों का पोस्टमार्टम करना है. अब आप सोच रहे हैं कि यह तो उनका काम है, फिर कैसे वह सबसे अलग है. तो सबसे पहले हम आपको बता दें कि मंजू का यह पुश्तैनी काम है और पिछले दशकों से इस काम को उनके परिवार के सदस्य ही करते आ रहा है. मंजू भी इस श्रृंखला की एक कड़ी हैं.
मंजू की परिवार में सबसे पहले इस काम की शुरुआत करने वाली महिला थी फुलजारो देवी. यह उस वक्त की बात है जब समस्तीपुर जिला के रूप में अस्तित्व में नहीं था और दरभंगा जिला के अंतर्गत आता था. फुलजारो देवी के बाद इस काम को बंगाली मलिक, फिर मंजू के ससुर रामजी मलिक, उसके बाद मंजू के पति रमेश मलिक और जब रमेश मलिक बीमार हुए तो उसके बाद से लगातार इस काम को मंजू खुद करते आ रहीं हैं. आज मंजू के पति रमेश मलिक इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन पोस्टमार्टम के दौरान जो घटना हुई वह घटना आपको सोच ने को मजबूर कर देगी. आपका हृदय को द्रवित कर देगी.
पुश्त दर पुश्त काम करती आ रही मंजू मलिक
मंजू बताती हैं कि वह पहली बार पोस्टमार्टम करने के लिए उस स्थिति में आई थीं जब उसकी सास मां और पति काफी बीमार थे. वह पोस्टमार्टम करने के लिए नहीं जा सकते थे, ऐसे में उनके सास के द्वारा पहली बार कहा गया कि वह पोस्टमार्टम के काम को करके आए और वहीं से मंजू के द्वारा पोस्टमार्टम करने का सिलसिला शुरू हो गया. आज वह एक रिकॉर्ड की तरह बन गया है. करीब 20 हजार से अधिक शवों का अब तक मंजू के द्वारा पोस्टमार्टम किया गया है.
मंजू मलि ने उठाया साहसिक कदम
किसी महिला के पति का अगर मौत हो जाए तो उसके लिए उसे पर स्थिति को सहन उसमें अपने को संभालना एक बड़ी चुनौती होती है. लेकिन, ऐसी विषम परिस्थिति में भी मंजू के द्वारा बड़ा ही साहसिक कदम उठाया गया जो कोई-कोई महिला ही हिम्मत कर पाती. मंजू बताती हैं कि वर्ष 2001 के 24 दिसंबर का वह दिन आज भी उसे याद है, जब उसके पति रमेश मलिक की मौत हो गई. घर के दरवाजे पर उसके पति का शव पड़ा था. पति के चले जाने का गम में वह विलाप कर रहीं थीं और इसी बीच अस्पताल से घर पर संवाद पहुंचा कि एक शव अस्पताल में पहुंचा है, जिसका पोस्टमार्टम करना है.
प्रथम कर्तव्य के बाद पति का दाह संस्कार
अब ऐसी स्थिति में निर्णय लेना बहुत कठिन होता है, लेकिन मंजू उस वक्त अपने आप को संभालते हुए, समस्तीपुर सदर अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस पहुंचीं और पहले पोस्टमार्टम के कार्य को किया. फिर वापस घर जाकर पति के शव को तमाम चीजों की व्यवस्था कर दाह संस्कार के लिए भेजा. यही घटना मंजू जैसी एक साधारण महिला को असाधारण बनती है. यही वजह है कि आज मंजू समाज के लिए मिसाल के तौर पर उदाहरण भी जा रही है.
मेहनताना को लेकर मंजू के मन में क्षोभ
पोस्टमार्टम जैसे काम को करने वाली मंजू को सरकार के द्वारा कितना मेहनत आना दिया जाता है, यह जानकर आप हैरान हो जाएंगे. मंजू बताती हैं कि पहले 110 रुपये पोस्टमार्टम के उसे मिलते थे. वर्ष 2021 से इसे बढ़ाकर इसे 380 रुपये कर दिए गए. चाहे एक शव पोस्टमार्टम के लिए आए या उस से अधिक मेहताना 380 रुपये ही मिलेंगे. किसी दिन कहीं से कोई पोस्टमार्टम का काम नहीं आए उसे उस दिन मेहनताना नहीं मिलता. लेकिन मंजू हर रोज प्रार्थना करती है की पोस्टमार्टम न पहंचे तो वह भी नहीं.
मंजू समाज की महिलाओं को लेकर कहती हैं कि वह अपने काम को पूरे दिल से करें और ईमानदारी से करें. कभी किसी काम या किसी सेवा डरे नहीं. सच्चाई और ईमानदारी के साथ अपने काम को करती रहें. अगर ईमानदारी से काम करेंगे तो आपको अपने आप शक्ति मिलेगी. समस्तीपुर की इस मातृशक्ति मंजू देवी के हिम्मत और उनके जज्बे से हमें सीख लेनी चाहिए.
.
Tags: Samastipur news
FIRST PUBLISHED : March 8, 2024, 10:18 IST