महिला आरक्षण बनाम ओबीसीः भाजपा और कांग्रेस में से किसका सफल होगा दांव?

महिला आरक्षण बिल की सुगबुगाहट के साथ ही कांग्रेस ने ओबीसी राग आलापना शुरू कर दिया था। लोकसभा में विपक्षी दलों की पहली स्पीकर के तौर पर बोलते हुए कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण को अपने पति और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का सपना बताने के साथ-साथ भारत सरकार से जाति जनगणना करा कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी अर्थात अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं को भी आरक्षण देकर आगे बढ़ाने की मांग की। हालांकि कोटे के अंदर कोटे की नीति के तहत सरकार ने अपने महिला आरक्षण बिल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पहले से आरक्षित सीटों में से 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव शामिल कर रखा है लेकिन ओबीसी समुदाय की महिलाओं को आरक्षण देने पर सरकार का तर्क बिल्कुल साफ है कि अभी संविधान में सामान्य वर्ग के साथ-साथ सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है इसलिए इससे अलग हटकर कोई व्यवस्था फिलहाल नहीं की जा सकती है।

राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में उठाए गए ओबीसी गणना और आरक्षण के मुद्दें का राज्यसभा में जवाब देते हुए जेपी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस के जितने सांसद हैं, उससे ज्यादा तो लोकसभा में उनके ओबीसी सांसद हैं। नड्डा ने कहा कि भारत को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा ने दिया। भाजपा के 85 लोकसभा सांसद ओबीसी समाज से हैं। भाजपा के 27 फीसदी विधायक और 40 फीसदी एमएलसी भी ओबीसी समाज से ही आते हैं।

दरअसल, सच्चाई यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल महिला मतदाताओं के साथ-साथ ओबीसी वोटरों का महत्व बखूबी समझते हैं। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि आमतौर पर महिला वोटर जातियों की सीमा से परे जाकर अन्य मुद्दों पर वोट करते हैं यानी महिला वोटर ईवीएम का बटन दबाते समय पुरुष वोटरों की तरह सिर्फ जाति के बारे में ही नहीं सोचते हैं। इसलिए भाजपा ने महिला वोटरों को लेकर एक बड़ा दांव खेल दिया है। भाजपा को यह लगता है कि ओबीसी समुदाय को उन्होंने अब तक बहुत कुछ दिया है और आने वाले दिनों में भी उनके पास देने को बहुत कुछ है। भाजपा को यह भी लग रहा है कि अगर महिला आरक्षण बिल पास करवाने का दांव सही से चल गया तो देश के चुनावी इतिहास में भाजपा न केवल अपना रिकार्ड तोड़ सकती है बल्कि 1984 के राजीव गांधी के रिकार्ड को भी पार कर सकती है। इसलिए भाजपा आने वाले दिनों में जोर-शोर से महिला आरक्षण बिल को लेकर देश की मतदाताओं के पास जाने के लिए बड़ा अभियान चलाने जा रही है।

दूसरी तरफ, नरेंद्र मोदी को 2024 में किसी भी कीमत पर हराने के लिए बेताब कांग्रेस महिला वोटरों के साथ-साथ ओबीसी वोटरों पर भी दांव खेलने का प्रयास कर रही है। हालांकि यह लड़ाई कांग्रेस से ज्यादा उसके आरजेडी और सपा जैसे सहयोगी दलों की ज्यादा लग रही है। देश के महिला वोटरों और प्रभावशाली ओबीसी तबको को छोड़ कर ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अन्य जातियों में भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव को देखते हुए कांग्रेस के रणनीतिकारों का यह लग रहा है कि इसमें सेंध लगाए बिना मोदी को हराना नामुकिन है इसलिए कांग्रेस ने एक साथ कई स्तरों पर अभियान छेड़ दिया है। राहुल गांधी और कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे लगातार यह कह रहे हैं कि सत्ता में आते ही वह तत्काल प्रभाव से महिला आरक्षण को लागू कर देंगे और साथ ही जाति जनगणना करवा कर ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण का रास्ता भी खोलेंगे। 

जाहिर है कि एक तरफ भाजपा है जिसे महिला आरक्षण के अपने दांव पर पूरा भरोसा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस है जो महिला वोटरों को लुभाने के साथ ही जाति जनगणना की मांग के जरिए ओबीसी वोटरों पर ज्यादा फोकस कर रही है। ऐसे में फिलहाल तो भाजपा और कांग्रेस की यह चुनावी जंग महिला आरक्षण बनाम ओबीसी के दांव में ही बदलती हुई ज्यादा नजर आ रही है।

-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

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