महिलाएं ही अधिकतर क्यों करती हैं छठ पूजा, यह महापर्व इतना खास क्यों? जानें

सच्चिदानंद/पटना. लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरूआत 17 नवंबर से हो जाएगी, जिसमें नहाय-खाय के साथ ही चार दिवसीय छठ पूजा का आयोजन होगा. इस पूजा में 18 नवंबर को खरना, 19 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्यदान, और 20 नवंबर को प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद पारण होगा. इस मौके पर पटना के मशहूर ज्योतिषविद् डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि पहले यह पर्व ज्यादातर महिलाओं द्वारा मनाया जाता था, लेकिन अब पुरुष भी इसमें भाग लेने लगे हैं. इस महत्वपूर्ण पर्व को आजकल पति-पत्नी दोनों मिलकर मनाने की परंपरा है.

ज्यादातर महिलाएं ही क्यों करती हैं छठ पूजा
डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार, महिलाओं को देवी का रूप माना गया है. इन महिलाओं ने अपने जीवन में अनेक कष्ट सहकर भी संतान, सुहाग, और परिवार की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहा है. हर परिस्थिति को झेलने की शक्ति महिलाओं के अंदर है, और वे खुद मां दुर्गा के समान हैं. छठ पर्व शुद्धता, पवित्रता, और नियमों के कठोर पालन का एक अद्वितीय उत्साह भरा त्योहार है, जो इसे पुरुषों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण बनाता है. इस त्योहार में महिलाएं अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाए रखती हैं और उन्हें समर्थन करती हैं. इसके साथ ही, छठ पूजा महिलाओं और पुरुषों के बीच समरसता और सामूहिकता को बढ़ावा देता है.

आजकल, पुरुष भी इस पर्व में अपनी भागीदारी बढ़ा रहे हैं और इस त्योहार की शुद्धता और पवित्रता को बनाए रखने का सक्षम हो रहे हैं. छठ पूजा एक सामाजिक समरसता और आपसी समझ का प्रतीक है, जो सभी वर्गों के लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर इसे एक अनूठा अनुभव बनाता है.

क्यों है यह पर्व खास
डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार, छठ पूजा एक सामाजिक समरसता और समृद्धि का प्रतीक है. इस पर्व को हर जाति और हर वर्ग के लोग एक सामान नियम से करते हैं और पूजा-पाठ में इस्तेमाल होने वाली चीजें भी हर वर्ग के लिए एक जैसी होती हैं. सूर्य, जो सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं, इस पर्व को एक सामाजिक समरसता के परिचय के रूप में स्वीकार किया जाता है. छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जो हर जाति के लोगों को जोड़ता है और घाट पर सभी एक साथ बैठकर पूजा पाठ करते हैं. इसमें किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होता है और सभी एक बराबर होते हैं. यह पर्व हर एक दूरी को मिटाने वाला है और लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर समृद्धि और समरसता की भावना को बढ़ावा देता है.

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