महाशिवरात्रि पर कैसे करें आरती? तेल या फिर घी के दीपक से? जानें मंत्र, विधि और नियम

हाइलाइट्स

सबसे पहला नियम है कि आप शिव जी की आरती के समय शंख का उपयोग न करें.
आरती या पूजा के समय अपने सिर को किसी कपड़े से ढककर रखें. उसे खुला न छोड़ें.
आरती के समय ओम जय शिव ओंकारा गाएं और अंत में कर्पूरगौरं मंत्र पढ़ें.

महाशिवरात्रि के दिन हर शिव भक्त विधिपूर्वक भगवान भोलेनाथ की पूजा करता है. पूजा का समापन आरती से होती है. कहा जाता है कि पूजा में जो कमियां होती हैं, उनकी पूर्ति आरती से होती है. आरती के समापन के लिए भी शिव जी का मंत्र है. अब आपके मन में सवाल होगा कि महाशिवरात्रि पर शिव जी की आरती घी के दीपक से करें या तेल के दीपक से? ​कौन से दीपक से शिव जी आरती करना शुभ रहेगा?

​शिव आरती घी के दीपक से करें या तेल के?

तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि भगवान शिव भोले हैं, इसलिए उनको भोलेनाथ कहा जाता है. वे आसानी से प्रसन्न होने वाले देव है. मान्यता है कि आप सच्चे मन से उनको एक लोटा जल ही अर्पित कर दें तो वे प्रसन्न हो जाते हैं. वे अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर देते हैं. महाशिवारात्रि के दिन आप पूजा के बाद शिव जी की आरती घी या फिर सरसों का तेल या कपूर, जो उपलब्ध है, उससे कर लें. सरसों का तेल सबके लिए सुलभ है तो आप उसका उपयोग कर सकते हैं. कुछ नहीं है तो कपूर से कर लें.

शिव आरती के नियम

1. शिव जी की आरती के लिए कुछ नियम हैं, जिनका पालन जरूरी है. सबसे पहला नियम है कि आप आरती के समय शंख का उपयोग न करें.

2. शिव आरती के दौरान घंटी और घड़ियाल बजा सकते हैं. शिव पूजा में शंख वर्जित है.

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3. भगवान भोलेनाथ की आरती करते समय खड़े हो जाएं. दीप या कपूर जला लें. आरती का दीप या थाल दाएं हाथ में ले लें. बाएं हाथ से घंटी बजा सकते हैं.

4. आरती या पूजा के समय अपने सिर को किसी कपड़े से ढककर रखें. उसे खुला न छोड़ें.

5. आरती के समय ओम जय शिव ओंकारा गाएं और अंत में कर्पूरगौरं करुणावतारं मंत्र पढ़ें. समापन के बाद शिव जी को प्रणाम करके मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद लें.

6. आरती का दीप पूरे घर में लेकर घुमा देना चाहिए. इससे नकारात्मकता दूर हो जाएगी.

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महाशिवरात्रि पर शिव जी की आरती

ओम जय शिव ओंकारा, ओम जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव…

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव…

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव…

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ओम जय शिव…

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव…

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव…

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव…

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव…

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ओम जय शिव…

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आरती समापन मंत्र

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।

Tags: Dharma Aastha, Lord Shiva, Mahashivratri, Shivratri

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