अरशद खान/देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड को ऐसे ही देवो की भूमि नहीं कहा जाता है, यहां पर कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं, जो कभी-कभी विज्ञान को भी हैरानी में डाल देते हैं. देहरादून के तपोवन में स्थित एक ऐसी ही ऐतिहासिक धरोहर है, जिसके साक्ष्य और रहस्य महाभारत काल से जुड़े हैं. यह ऐतिहासिक स्थल भगवान शिव का है और इसे रुद्रेश्वर महादेव मंदिर के रूप में जाना जाता है. सावन के महीने में यहां श्रद्धालु गंगाजल और दूध-दही से शिव का अभिषेक करते हैं.
मंदिर परिसर में चार रुद्राक्ष के पेड़ हैं, जिनमें से एक रुद्राक्ष के पेड़ को नेपाल से लाकर यहां लगाया गया था. घने जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर के परिसर के आसपास हाथी, मोर, बंदर और कई तरह के वन्यजीव भी देखने को मिलते हैं. लोकल 18 से बातचीत करते 100 साल उम्र की धर्म गिरी माई बताती हैं कि देहरादून से गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली और शिक्षा-दीक्षा का इतिहास जुड़ा है. रुद्रेश्वर महादेव मंदिर का नाम भी गुरु द्रोणाचार्य के नाम से जुड़ा है, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है.
यहां स्थापित हैं 11 शिवलिंग
दावा है कि यहां गुरु द्रोणाचार्य ने पांडव और कौरवों को शास्त्रार्थ की शिक्षा दी थी. उन्होंने यहां 11 शिवलिंग स्थापित किए थे, जो उत्तराखंड के अन्य किसी मंदिर में नहीं है. रुद्रेश्वर महादेव में सच्ची श्रद्धा से शिव का चिंतन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. यहां साक्षात शिव का वास है और कई भक्तों को इसकी अनुभूति भी होती है.
महादेव के अनेकों नाम
शिव पापियों को आध्यात्मिक, आदि दैविक और आदि भौतिक शूल से मुक्त करते हैं, इसलिए उन्हें त्रिशूलधारी कहते हैं. शिव प्रलयकाल के देवता हैं, इसलिए उन्हें श्मशानवासी कहते हैं. वह संसार के विषों को पीने वाले हैं, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहते हैं. पाणिनी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने तांडव से 14 नाद और 14 सूत्र प्रदान किए. जिससे पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की, जो व्याकरण की श्रेष्ठतम रचना है.
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FIRST PUBLISHED : September 12, 2023, 11:09 IST