महात्मा गांधी एवं दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन

आज गांधी जयंती है, गांधी ने साधन शुचिता को ध्यान में रख साध्य को प्राप्त करने पर विशेष बल दिया। ऐसे में हम दीनदयाल को याद करते हैं सार्वजनिक जीवन में आचरण की शुचिता को महत्ता दी, तो आइए हम आपको गांधी एवं दीनदयाल के दर्शन के विषय़ में कुछ रोचक बातें बताते हैं। 

गांधी जहां ‘स्वराज’ एवं ‘स्वदेशी’ का समर्थन करते हैं वहीं दीनदयाल ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन की बात करते हैं। गांधी ने अपने विचारों द्वारा लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने सत्य एवं अहिंसा द्वारा लोगों को सदभाव एवं भाईचारे की सीख दी। उनकी विचारधारा सदियों तक याद की जाएगी। वहीं दीनदयाल को उनके अंत्योदय के लिए जाना जाता है। इस महापुरुष ने समाज के वंचित तबकों को मुख्य धारा में शामिल करने का प्रयास किया। यद्यपि गांधी एवं दीनदयाल में समानताएं थीं तथापि की उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक उद्देश्य समान नहीं थे। एक ओर गांधी सार्वजनिक जीवन में व्यस्त रहते तो दूसरी दीनदयाल एकांत जीवन में रहकर काम करना पसंद करते थे। 

हमारे देश की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों को जिन दो महापुरुषों ने बहुत अधिक प्रभावित किया उनमें महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का प्रमुख है। दोनों महापुरुषों ने अपने सार्वजनिक जीवन में शुचिता, नीतिमत्ता और प्रमाणिकता के उच्च आदर्श स्थापित किए। जहां एक ओर दीनदयाल उपाध्याय के छोटे जीवन-काल ने जिन मापदंडों को स्थापित किया उनसे लोग चकित थे वहीं महात्मा गांधी का सत्याग्रही जीवन एक संदेश है। महात्मा गांधी एवं दीनदयाल उपाध्याय ने विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग मुकाम कायम किए लेकिन मौलिक रूप से वह जमीन से जुड़े हुए थे। दोनों साध्य के स्थान पर साधन को महत्व देते थे इसलिए उन्होंने आध्यात्मिकता के द्वारा भौतिक एवं पारमार्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति का लक्ष्य बनाया।

गांधी की आध्यात्मिकता तथा दीनदयाल के एकात्म मानवतावाद ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोग कर पर्यावरणीय प्रवृति को भी बनाए रखा।  गांधी और दीनदयाल कई मुद्दों पर समान विचार रखते थे ग्राम स्वराज, संयुक्त परिवार, मातृभाषा में शिक्षा देना और शक्ति का विकेंद्रीकरण, रामराज, समाज का एकीकरण और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद। दोनों ने धर्म आधारित राजनीति की आवश्यकता पर जोर दिया। दोनों रामराज्य चाहते थे, जिसका आशय राम का राज्य नहीं बल्कि आदर्श शासन व्यवस्था थी। धर्मविहीन राजनीति अमर्यादित हो जाती है। दोनों ने सार्वजनिक जीवन में शामिल लोगो के चरित्र और शुचिता पर जोर दिया। 

गांधी दीनदयाल ‘स्वदेशी’ ‘स्वावलंबन’ पर जोर देते हैं। गांधी दीनदयाल, अंत्योदय और सर्वोदय पर बल देते हैं। गांधी एवं दीनदयाल दोनों ने अपने जीवन काल में पूंजीवाद तथा इसकी प्रतिक्रिया में जन्मे समाजवाद या साम्यवाद का संघर्ष देखा था। गांधी एवं दीनदयाल मानते थे कि आर्थिक समानता के लिए पूंजीवाद को हतोत्साहिस करना होगा। वहीं साम्यवाद के मार्ग पर चलने से बंधुता समाप्त होगी और समता के स्थायित्व में भी कमी आएगी। 

गांधी आत्मनिर्भरता या आर्थिक स्वायत्ता को राजनीतिक स्वाधीनता की कुंजी मानते थे। उनके अनुसार भारत में अधिकाधिक उत्पान और अधिक लोगों द्वारा उत्पादन। गांधी का मानना था कि किसी अन्य पर आश्रित होकर हम आत्मनिर्भर नहीं हो सकते हैं। दीनदयाल ने हर हाथ को काम का व्यवहारिक मंत्र दिया। इससे समाज के सभी वर्ग को काम मिलेगा, बेरोजगारी खत्म होगी और देश आत्मनिर्भर बनेगा। उन्होंने विदेशी को स्वदेशानुकूल और स्वदेशी को युगानुकूल बनने की सलाह दी। 

दोनों महापुरुष प्राकृतिक संसाधनों को विशेष महत्व देते हैं। उनके अनुसार देश में प्राकृतिक संसाधनों क विवेकपूर्ण दोहन होना चाहिए। गांधी कहते हैं कि प्रकृति के पास सबकुछ है लेकिन मनुष्य के लालच की पूर्ति के लिए बहुत कम है। दीनदयाल इस मुद्दे पर लोगों को चेतावनी देते हैं कि प्रकृति के विनाश से हुआ विकास सबका विनाश कर सकता है। गांधी एवं दीनदयाल दोनों में समाज में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से वंचित एवं उपेक्षित तबकों की समानता पर समान विचार रखते हैं। जहां गांधी ‘अंतिम जन’ की बात करते हैं वहीं दीनदयाल ‘अंत्योदय’ का मंत्र देते हैं। गांधी एवं दीनदयाल सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों के आचरण की शुचिता पर विशेष बल देते हैं।

– प्रज्ञा पाण्डेय

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