महथिन माई जिन्होंने डोला प्रथा के खिलाफ लड़ी जंग, लोग मानते मां दुर्गा का अवतार, 3500 साल पुराना है इतिहास

गौरव सिंह/भोजपुर. बिहार के भोजपुर में महथिन माई मंदिर की कहानी बेहद ही चमत्कारिक है. बिहिया प्रखंड में मौजूद महथिन माई का गुणगान आज भी लोग करते नहीं थकते हैं. तकरीबन 3500 साल पुराना इस देवी का इतिहास है. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूर पर स्थित बिहिया में स्थापित है लोक आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध महथिन माई मंदिर. कोई यदि जीवन में गलत आचरण से धन प्राप्त करता है, धन और बल के बदौलत लोगों पर गलत तरीके से प्रभाव स्थापित करना चाहता है तो लोग एक ही बात कहते है कि यह महथिन माई की धरती है ,यहां न तो ऐसे लोगों की कभी चला है न चलेगा.

नवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है. मान्यता है कि सचे मन से मांगी गई मनोकामना शत प्रतिशत पूरी होती है.

महथिन माई का मंदिर सिद्ध शक्तिपीठों की तरह
शारदीय नवरात्रि में इस मंदिर की महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है. भक्तों को यकीन है कि यहां मां के दरबार में आने वाले खाली हाथ नहीं लौटते, उनकी मनौती अवश्य पूरी होती है. जुल्म और अत्याचार के खिलाफ जंग लड़ने वाली वीरांगना महथिन माई का मंदिर सिद्ध शक्तिपीठों की तरह ही है. इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है. ऐसी मान्यता है कि मां महथिन दुर्गा माता की अवतार हैं.

जब- जब बिहिया की धरती पर जुल्म और विपत्ति आएंगी, उसका नाश कर देंगी. यही कारण है कि मां महथिन के आर्शीवाद से बिहिया को शांति, सद्भाव और अमन चैन का क्षेत्र कहा जाता है. शारदीय नवरात्रि में माता रानी के दर्शन, पूजा-अर्चना करने और माथा टेकने के लिए महिला-पुरुष श्रद्धालुओं की भीड़ जुट रही है.

जानिए कौन हैं महथिन माई
इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है. लेकिन प्रचलित इतिहास के अनुसार 3500 वर्ष पूर्व एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहव वंश का राजा रणपाल हुआ करता था. जो अत्यंत दुराचारी था. उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था. महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था, पहली बहादुर महिला थी, जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी.

बताया जाता है कि राजा के सैनिकों और महथिन माई (रागमति ) के सहायकों के बीच जम कर युद्ध हुआ. इस दौरान महथिन माई खुद को घिरता देख सती हो गई. उनके श्राप से दुराचारी राजा रणपाल के साथ उसके वंश का इस क्षेत्र से विनाश हो गया. आज भी हैहव वंश के लोग पूरे शाहाबाद क्षेत्र में न के बराबर मिलते हैं.

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कालांतर में चबूतरा मंदिर का स्वरूप ले लिया
बहुत पहले इस जगह पर मिट्टी का चबूतरा था. बाद में ईंट का बना. जैसे जैसे लोगों की आस्था बढ़ती गयी कालांतर में चबूतरा मंदिर का स्वरूप ले लिया. लोगों के सहयोग से मंदिर परिसर में शंकर जी और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित हो गई है. इसके अलावा सरकारी स्तर पर धर्मशाला, शौचालय तथा स्थानीय रामको कम्पनी द्वारा शौचालय का निर्माण कराया गया है.

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वहीं मनौती पूरी होने पर एक श्रद्धालु ने भव्य यात्री शेड का निर्माण करा दिया. मंदिर गर्भगृह में महथिन माई का पिंड स्थापित है तथा उनके अगल बगल के दो ¨पडियों के बारे में कहा जाता है वो उनकी सहायिकाओं की प्रतीक है. श्रद्धालु उनकी भी पूजा करते हैं.

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