मराठा समुदाय को नौकरियों व शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई।
वकील जयश्री पाटिल और अन्य की जनहित याचिका में कहा गया है कि सरकार और विपक्ष ने गंदी राजनीति के लिए यह निर्णय लिया है।
याचिका में इस कदम को संविधान की मूल संरचना का विनाश करार दिया गया है।
याचिका में दावा किया गया है कि निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया के नियमों का पालन किए बिना राज्य सरकार और विपक्ष ने संयुक्त रूप से यह निर्णय लिया और यह बिना किसी असाधारण परिस्थिति के आरक्षण को 50 प्रतिशत से आगे ले जाने का राजनीति से प्रेरित निर्णय है।
याचिका में दावा किया गया कि हर कोई आरक्षण का समर्थन कर रहा है, लेकिन 38 प्रतिशत गैर आरक्षित वर्ग के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखा रहा।
महाराष्ट्र विधानमंडल ने 20 फरवरी को सर्वसम्मति से महाराष्ट्र राज्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024 को मंजूरी दी थी, जिसमें शिक्षा व सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान विधानसभा में यह विधेयक पेश किया था।
जयश्री पाटिल की याचिका में उच्च न्यायालय से कानून को रद्द करने का आग्रह किया गया है, क्योंकि इससे आरक्षण की सीमा 72 प्रतिशत हो जाएगी।
याचिका में कहा गया है कि आरक्षण का बहुसंख्यकवादी बनना संविधान की मूल संरचना का विनाश है।
याचिका में उच्च न्यायालय से महाराष्ट्र सरकार के फैसले को असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया गया है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों पर विचार किए बिना, आरक्षण पर लगी 50 प्रतिशत की सीमा लांघी गई है।
याचिका पर आने वाले दिनों में सुनवाई होने की उम्मीद है।
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