हाइलाइट्स
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ की मौत की सजा कायम रखी.
राजद्रोह के मामले में 2019 में एक विशेष अदालत ने मुशर्रफ को मौत की सजा दी थी.
लंबी बीमारी के बाद पिछले साल 5 फरवरी को दुबई में मुशर्रफ की मौत हो गई.
इस्लामाबाद. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को दिवंगत पूर्व सैनिक तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की राजद्रोह के मामले में 2019 में एक विशेष अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा. 1999 में कारगिल जंग (Kargil War) के सूत्रधार और पाकिस्तान के अंतिम सैन्य शासक मुशर्रफ की लंबी बीमारी के बाद पिछले साल 5 फरवरी को दुबई में मौत हो गई. मुशर्रफ का दुबई में इलाज चल रहा था. वह अपने देश में आपराधिक आरोपों से बचने के लिए 2016 से स्व-निर्वासन में संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे थे. मामले पर फैसला सुनाने वाली पीठ में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा की अध्यक्षता वाली चार सदस्यों की पीठ में जस्टिस मंसूर अली शाह, जस्टिस अमीनुद्दीन खान और जस्टिस अतहर मिनल्लाह शामिल थे.
17 दिसंबर, 2019 को पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के कार्यकाल के दौरान उनके नवंबर 2007 में आपातकाल लागू करने के “असंवैधानिक” फैसले को लागू करने के लिए उनके खिलाफ उच्च राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद एक विशेष अदालत ने पूर्व सैनिक शासक मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व शासक को दी गई मौत की सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुरक्षित फैसला सुनाया, जिसे पालन न करने पर अप्रभावी घोषित कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति की अपील को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि परवेज मुशर्रफ के उत्तराधिकारियों ने कई नोटिसों पर भी मामले का पालन नहीं किया.
परवेज मुशर्रफ के वकील सलमान सफदर ने कहा कि अदालत द्वारा अपील पर सुनवाई करने का फैसला करने के बाद उन्होंने मुशर्रफ के परिवार से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन परिवार ने कभी उन्हें जवाब नहीं दिया. अदालत ने लाहौर हाई कोर्ट के फैसले को भी अमान्य और शून्य घोषित कर दिया, जिसने विशेष अदालत द्वारा मौत की सजा को निलंबित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि एलएचसी का फैसला कानून के खिलाफ है. तौफीक आसिफ ने एलएचसी के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल आमिर रहमान ने कहा कि वह मुशर्रफ की अपील का विरोध करते हैं.
29 नवंबर, 2023 को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 12 अक्टूबर, 1999 को मुशर्रफ द्वारा लगाए गए मार्शल लॉ को वैध ठहराने वाले न्यायाधीशों सहित उन सभी को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति अतहर ने यह भी टिप्पणी की थी कि जिन न्यायाधीशों ने 1999 में मुशर्रफ द्वारा मार्शल लॉ लागू करने को वैध ठहराया था, उन पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि हमें अपने इतिहास से सीखना चाहिए और कहा कि भले ही किसी को संविधान को निरस्त करने के लिए दंडित नहीं किया गया हो, कम से कम किसी को यह कबूल करना चाहिए कि अतीत में जो किया गया वह गलत था.

मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि प्राथमिक पहलू गलत काम की मान्यता है और हर किसी को कम से कम यह स्वीकार करना चाहिए कि अतीत में गलत किया गया था. जस्टिस अतहर ने टिप्पणी की थी कि किसी को सच बोलना चाहिए और सच्चाई यह है कि जिन न्यायाधीशों ने मार्शल लॉ को मान्य किया था, उन पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए और निष्पक्ष सुनवाई होनी चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : January 10, 2024, 15:52 IST