उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति पर आखिरकार केंद्र ने ध्यान दिया है और इस बारे में ‘शीघ्र ही’ अधिसूचित किया जाएगा। तीन महीने से अधिक समय पहले उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने इस पद के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल के नाम की अनुशंसा की थी।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष प्रस्तुत एक नोट में केंद्र ने कहा कि उच्च न्यायालय के 14 न्यायाधीशों के तबादले से संबंधित फाइलों को मंजूरी दे दी गई है जबकि 12 न्यायाधीशों से संबंधित फाइल प्रक्रियाधीन है।
शीर्ष अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें से एक में आरोप लगाया गया है कि न्यायाधीशों के तबादले और नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार विलंब कर रही है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने पांच जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल को मणिपुर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की अनुशंसा की थी।
पीठ ने कहा, ‘‘एक संवेदनशील राज्य के उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति पर आखिरकार उनका ध्यान गया और अब वे इसे कर रहे हैं।’’
पीठ इस मामले पर अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को करेगी।
पीठ ने कहा कि नियुक्ति और तबादलों के लिए लगभग 70 नाम, जो नवंबर 2022 से केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के पास लंबित थे और कॉलेजियम को नहीं भेजे गए थे, अचानक शीर्ष अदालत कॉलेजियम के सामने आ गए हैं जो उन पर प्रक्रिया शुरू करेगी।
पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम अब उच्च न्यायालयों द्वारा की गई अनुशंसाओं पर सलाहकार न्यायाधीशों के विचार जानेगा और प्रक्रिया यथा शीघ्र पूरी की जाएगी।
पीठ ने कहा, “कल से हम नामों पर आगे की प्रक्रिया शुरू कर देंगे क्योंकि हम अचानक एक ही दिन में 70 नामों पर प्रक्रिया पूरी नहीं कर सकते क्योंकि परामर्शदाता न्यायाधीशों की राय ली जाती है… हम इसे अक्टूबर की छुट्टियों से पहले खत्म करने की कोशिश करेंगे यदि हम सभी नामों पर काम कर सकें तो।’’
सोमवार की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार को उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित बड़ी संख्या में नामों पर कोई आपत्ति नहीं है। पीठ ने कहा कि मंत्रालय द्वारा उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम को नाम भेजने में अनुमान से अधिक समय लगा और पूछा कि चीजों को आगे बढ़ाने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता क्यों पड़ती है।
उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अनुशंसा करने के बाद यह सूची केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेजी जाती है, जो इसे शीर्ष अदालत को भेजता है। इसके बाद शीर्ष अदालत कानून मंत्रालय को अपनी अंतिम अनुशंसा भेजने से पहले उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों के बारे में संबंधित उच्च न्यायालयों से पदोन्नत किए गए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श लेता है।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘ मैं बहुत स्पष्ट हूं, अगली तारीख पर मैं इसे पूरा करना चाहता हूं। मैं बहुत बहुत विनम्र हूं, मुझे विनम्र रहने दीजिए।’’
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के कॉलेजियम ने कुछ नामों की अनुशंसा की थी, लेकिन न तो नियुक्तियां की गईं और न ही नामों को पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम के पास वापस भेजा गया। पीठ ने कहा, एक और श्रेणी है जिसमें शीर्ष अदालत कॉलेजियम की ओर से उन नामों की दोबारा अनुशंसा की है जो उसे लौटाये गये थे।
पीठ ने कहा, ‘‘पिछले हफ्ते तक 80 अनुशंसाएं लंबित थीं जब 10 नामों को मंजूरी दी गई थी। अब भी यह आंकड़ा 70 है। इनमें से 26 संस्तुतियां न्यायाधीशों के तबादले से संबंधित हैं।’’
शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति में ‘देरी’ पर निराशा व्यक्त की थी और अटॉर्नी जनरल से इस मुद्दे को हल करने के लिए अपने अच्छे कार्यालयों का उपयोग करने के लिए कहा था।
इस पर अटॉर्नी जनरल ने केंद्र सरकार से निर्देश लेने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा था।
शीर्ष अदालत जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है उनमें से एक को ‘अधिवक्ता संघ बेंगलुरु’ ने दायर किया है और इसमें केंद्रीय कानून मंत्रालय के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की मांग की गई है क्योंकि इसने कथित रूप से उस समय सीमा का पालन नहीं किया जिसका निर्धारण वर्ष 2021 के अदालत के फैसले में किया गया है।
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