मडुआ की खेती कर किसान हो रहे मालामाल, सरकार भी कर रही मदद

नीरज कुमार/बेगूसराय. नए जमाने में पुराने और कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलें धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. विलुप्त हो रहे फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी किसानों को लगातार प्रेरित कर रहे हैं. वहीं, मृदा व कृषि विभाग की टीम भी किसानों को जागरूक करने के उद्देश्य से नए-नए शोध कर रही है. भारत सरकार की पहल के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2024 को इंटरनेशनल इयर ऑफ म‍िलेट्स घोष‍ित क‍िया हुआ है. इसके साथ ही मोटे अनाजों की लोकप्र‍ियता दुन‍ियाभर में होने लगी है. वहीं, सरकार क‍िसानों को मोटे अनाज में मडुआ की खेती को भी बढ़ावा दे रही है. मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए जितना लाभदायक है, खेती भी उतनी ही सहज है. बेगूसराय के किस अनीश कुमार पिछले दो साल से मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं.

बेगूसराय जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर सुदूर देहात में किसान अनीश कुमार पिछले दो साल से मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. अनीश पेशे से कृषि सलाहकार भी हैं. उन्होंने बताया कि 35 कट्ठे में मडुआ की खेती कर रहे हैं. इसका बीज बोने में 13 हजार 620 रुपये खर्च आया है. यह फसल 95 दिन में तैयार हो जाती है. हाल के दिनों में मोटे अनाज की डिमांड भी अधिक बढ़ी है. इस वजह से फसल की अच्छी कीमत भी मिली है. उन्होंने बताया कि इस बार 22 क्विंटल का उत्पादन हुआ है और उत्पादित मडुआ को 80 से 150 रुपए प्रति किलो तक बेचा है. इस बार डिमांड इतना अधिक रहा कि इसकी पूर्ति नहीं कर पाए.

किसान केवीके से ले सकते हैं सलाह
कृषि वेज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया कि मोटे अनाज के बारे में कम लोगों को ही सही जानकारी है. कुछ लोगों का मानना है कि चावल और गेहूं भी मोटे अनाजों की लिस्ट में शामिल है, लेकिन ऐसा नहीं है. ज्वार, बाजरा, रागी, मडुआ, कंगनी, कोदो, कुटकी, चना मुख्य मोटे अनाज हैं जो अपने पोषक गुणों और सीमित व्यवस्थाओं में अधिक पैदावार देने के लिए जाना जाता है. किसान मोटे अनाज की खेती करना चाहे तो कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर या जिला कृषि कार्यालय से राय ले सकते हैं.

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