मजहब, जमीन और जंग की कहानी: येरुशलम यहूदी, ईसाई और मुस्लिमों के लिए क्यों है ये इतना खास, क्या है अल-अक्सा मस्जिद का इतिहास

एक मुल्क है जो 1948 में बना। एक देश है जिसके लिए अंग्रेजी के प्रॉमिशन लैंड जैसे एक पदबंध का इस्तेमाल किया गया। ये है यहूदियों का देश इजरायल, जिसका जिक्र करते ही हम हिंन्दुस्तानियों की दिलचस्पी बढ़ जाती है। इजरायल की मिलिट्री माइल्ड, इजरायल का पानी का प्रबंधन, इजरायल का अरब के साथ विवाद, इजरायल का फिलिस्तिनियों के साथ लड़ाई। इजरायल का भारत के साथ सैन्य सहयोग। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के कारनामे। फेहरिस्त बहुत ही लंबी है और इसको गिनाने में ही पूरा शो खत्म हो जाएगा। लेकिन आज का एमआरआई हम विश्व के सबसे जटिल मुद्दे पर करेंगे। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र का 1945 में जब गठन हुआ तो सबसे पहला मुद्दा उसे इजरायल- फिलिस्तीन के येरुशेलम विवाद का ही दिया गया और आज तक वे इसका समाधान नहीं ढूंढ़ पाए हैं। 35 एकड़ के एक टुकड़े को लेकर आपस में दो देश भिड़े हैं। इस पर दुनिया के तीन बड़े धर्म दावा करते हैं। आज आपको मजहब, जमीन और जंग की कहानी बताएंगे। सबसे पहले ताजा अपडेट से शुरू करते हैं कि आज हम इसका जिक्र क्यों कर रहे हैं। 

अल-अक्सा मस्जिद कैसे है एक अहम फैक्टर? 

इजरायल और गाजा समूह के बीच जंग छिड़ी हुई है। गाजा पट्टी के चरमपंथी संगठन हमास से इजरायल पर 9 अक्टूबर को 5 हजार रॉकेट दागे। जमीन, पानी और हवा के रास्ते देश की सीमा में घुसपैठ की। जवाब में इजरायली सेना ने गाजा के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। हमास के निशाना बनाया गया। दोनों तरफ अस्थिरता जारी है। रिहाशियी इलाकों में भी बमबारी की खबर है। हमास का कहना है कि वो अल अक्सा की गरिमा के लिए लड़ रहे हैं। दरअसल, यरूशलेम के पुराने शहर में स्थित अल-अक्सा मस्जिद, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में बहुत महत्व रखती है। इसका महत्व धार्मिक और भूराजनीतिक दोनों आयामों में निहित है। अल-अक्सा मस्जिद यरूशलेम के पुराने शहर के मध्य में एक पहाड़ी पर स्थित है जिसे यहूदी हर हा-बैत के नाम से जानते हैं, जिसे टेम्पल माउंट और अल-हरम अल-शरीफ या नोबल अभयारण्य के रूप में भी जाना जाता है। मुसलमानों के लिए, मक्का और मदीना के बाद मस्जिद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। अल-अक्सा प्लाजा दो पवित्र स्थानों का घर है: डोम ऑफ द रॉक और अल-अक्सा मस्जिद। मस्जिद का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में किया गया था। इस्लामी स्रोतों के अनुसार, यहीं से पैगंबर मुहम्मद एक रात के लिए स्वर्ग गए थे। ये शहर सिर्फ धार्मिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम है। प्राचीन फिलिस्तीन को 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने दो भागों में विभाजित कर दिया था। विभाजन के बाद 55 फीसदी हिस्सा यहूदियों को और 45 फीसदी हिस्सा फिलिस्तीनियों को मिला था। इसरायल राष्ट्र की स्थापना 1948 में हुई थी। तब इसराइली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था। 1967 में जब इजराइल ने 6 दिवसीय युद्ध जीता और पूर्वी यरुशलम, जहां यह स्थान स्थित है उस कब्ज़ा कर लिया, तब से इस स्थल को लेकर चिंता पैदा हो गई थी। यहूदी और मुस्लिम दोनों ही इस जगह को धार्मिक रूप से खास मानते हैं। यहूदी अल अक्सा मस्जिद की वेस्टर्न वॉल को अपने यहूदी मंदिर का आखिरी अवशेष मानते हैं। जबकि मुस्लिम समुदाय इस दीवार के अल बराक की दीवार होने का दावा करते हैं। 

येरुशेलम क्यों संघर्ष के केंद्र में है 

पैगंबर इब्राहीम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले तीनों ही धर्म येरुशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं। यही वजह है कि सदियों से मुसलमानों, यहूदियों और ईसाईयों के दिल में इस शहर का नाम बसता है। हिब्रू भाषा में येरुशलम और अरबी में अल कुद्स के नाम से इस शहर को जाना जाता है। ये दुनिया के सबसे प्राचीनतमम शहरों में से एक है। इस शहर को कई बार कब्जाया गया है, धवस्त किया गया और बसाया गया है। शहर के सेंटर प्वाइंट में एक प्राचीन शहर है जिसो ओल्ड सिटी कहा जाता है। संकरी गलियों और ऐतिहासिक वास्तुकला की भूलभूलैया इसके चार इलाकों ईसाई, इस्लामी, यहूदी औऱ अर्मेनियाई को परिभाषित करते है। इसके चारों ओर एक किलेनुमा सुरक्षा दीवार है। जिसके आसपास दुनिया का सबसे पवित्र स्थान स्थित है। 

यहूदी, ईसाई और मुस्लिमों के लिए क्यों है ये इतना अहम 

मुसलमानों के लिए मक्का मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र शहर येरुशलम है। इस्लाम में माना जाता है कि जब पैगंबर मोहम्मद को अल्ला ने बात करने के लिए बुलाया तो वे घोड़े पर बैठकर सऊदी अरब से येरुशलम आए। येरुशलम में एक पवित्र चट्टान से वो घोड़े समेत स्वर्ग गए और अल्लाह से बात करके वापस आए। उस चट्टान के ऊपर हरमल शरीफ बना हुआ है। हरमल शरीफ मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि मक्का की तरफ नमाज पढ़ते हैं तो सबसे पहले येरुशलम की तरफ मुख करके। जब पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम धर्म बनाया तो नमाज पढ़ने के लिए दिशा येरुशलम की तरफ होती थी। 

क्रिश्चिनर्स के लिए ये इतना महत्वपूर्ण क्यों इसके लिए थोड़ा सा बैथलेहम है। ये वो एरिया माना जाता है जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ। लेकिन उससे भी पवित्र येरुशलम इसलिए है क्योंकि यही वो जगह है जहां ईसा मसीह को क्रॉस पर चढ़ाया गया और फिर उन्हें दफनाया गया था। फिर जहां ईसा मसीह का दोबारा जिस चर्च में जन्म हुआ था वो येरुशलम में है। इसका नाम चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर है। ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है। ये जिस स्थान पर स्थित है वो ईसा मसीह की कहानी का केंद्र बिंदु है। इस चर्च का प्रबंधन ईसाई समुदाय के विभिन्न संप्रदायों, खासकर ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रियार्केट, रोमन कैथोलिक चर्च के फ्रांसिस्करन फ्रायर्स और अर्मेनियाई पैट्रियार्केट के अलावा इथियोपियाई, कॉप्टिक और सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च से जुड़े पादरी भी संभालते हैं। 

यहूदियों का मानना है कि यही से हमारा धर्म पैदा हुआ। यहूदी इलाक़डे में ही कोटेल या पश्चिनी दीवार है। ये वॉल ऑफ दा माउंट का बचा हिस्सा है। माना जाता है कि कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था। इस पवित्र स्थल के भीतर ही द होली ऑफ द होलीज या यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान था। यहूदियों का विश्वास है कि यही वो स्थान है जहां से विश्व का निर्माण हुआ और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी। कई यहूदियों का मानना है कि वास्तव में डोम ऑफ रॉक की होली ऑफ द होलीज है। आज पश्चिमी दीवार वो सबसे नजदीक स्थाह है जहां से होली ऑफ द होलीज की अराधना कर सकते हैं। दीवार जिसपर यहूदी पूजा करते हैं, उसके ऊपर हरमल शरीफ है। उसके बगल में अल अक्सा मस्जिद भी है। संयुक्त राष्ट्र को लगा कि दो पवित्र जगह एक के ऊपर एक है तो हम इसका विभाजन कैसे करे। फिर येरुशलम को अंतरराष्ट्रीय शहर का दर्जा दे दिया गया। 

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