मखाना के बाद अब मिथिला के इस बड़े पहचान को मिलेगा GI टैग, जानें क्या है तैयारी 

रिपोर्ट- अभिनव कुमार
दरभंगा. पग-पग पोखर माछ माखन ये मिथिला की पहचान है. यह पहचान अब ग्लोबल हो चली है. मखाने को GI टैग मिल चुका है. अब बारी है मछली की. मिथिला की रोहू मछली को बहुत जल्द ही GI टैग मिल सकता है. इसका वैज्ञानिक नाम-Labeo rohita है. ये ताजे मीठे पानी में पायी जाती है और नाव के आकार की होती है.

रोहू मछली को जीआई टैग दिलाने के लिए इलाके के अलग अलग तालाबों से सैंपल लिया जा रहा है. उम्मीद है जीआई टैग मिलने के बाद इसकी पैदावार में वृद्धि होगी. इसका उत्पादन कर रहे किसानों को भी अच्छा खासा मुनाफा होगा. इसका व्यापार बढ़ेगा और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान बनेगी.

रोहू मछली में क्या है खास
मछली प्रेमी बताते हैं मिथिला की रोहू मछली का स्वाद लाजवाब होता है. ये बेहद पौष्टिक भी होती है. अपने स्वाद और गुणवत्ता की वजह से इसकी डिमांड काफी है. यही वजह है कि इस क्षेत्र में रोहू मछली का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है. जीआई टैग मिलने के बाद इसका मार्केट और बढ़ जाएगा.

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मिथिला की रोहू-दूसरी जगह से बेहतर क्यों
मत्स्य विभाग का प्रयास इसे व्यापक पहचान दिलाने का है. बिहार के दो इंस्टिट्यूट्स को रोहू के सैंपल कलेक्शन की जिम्मेदारी दी गई है. इसमें से एक मत्स्यकी महाविद्यालय किशनगंज और दूसरा मत्स्यकी महाविद्यालय ढोली मुजफ्फरपुर है. इन दोनों इंस्टिट्यूट के पदाधिकारी दरभंगा जिले के विभिन्न तालाबों से सैंपल लेकर उस पर शोध करेंगे. दूसरे जगह की रोहू की तुलना में मिथिला क्षेत्र की रोहू मछलीपर शोध किया जाएगा.

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