मकर संक्रांति पर इस खतरनाक जीव की पूजा करते हैं बंगाली समाज के लोग, जानें वजह

शक्ति सिंह/कोटा : आज के दिन पूरे देश में मकर सक्रांति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. अलग-अलग परंपराओं के रंग से सजे इस त्यौहार को देश में अलग-अलग रीति-रिवाजों से भी मनाया जाता है. ऐसा ही एक उदाहरण हमारे देश के राजस्थान के कोटा में भी देखने को मिलता है. अगर बात की जाए पूरे राजस्थान की तो कोटा शहर ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां पर बंगाली समाज के लोग मगरमच्छ की पूजा करते हैं. और वो भी विधि विधान से अपनी परंपरा का निर्वाह करते हैं. समाज के लोगों का मानना है कि मगरमच्छ एकमात्र ऐसा जीव है जो पानी और धरती दोनों पर समान रूप से रह सकता है, इसलिए उसकी पूजा की जाती है.

समाज के साथ जुड़ी हुई है यह धारणा
बंगाली समाज के युवक विजय बाला ने बताया कि इससे जुड़ी हुई एक धारणा यह भी है कि एक व्यक्ति घर परिवार से दूर रहकर तांत्रिक के पास तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने गया था. जब वह मकर सक्रांति पर घर लौटा तो उसके परिवार ने उससे पूछा उसने क्या सीखा, इस पर वो अपनी पत्नी को नदी के तट पर ले गया और वहां पर एक लोटा जल भरकर उसमें मंत्र बोलकर पत्नी को पकड़ा दिया और बोला कि मैं मगरमच्छ का रूप भी धारण कर सकता हूं.

आधा पानी मेरे ऊपर डाल देना तब मगरमच्छ का रूप धारण कर लूंगा और फिर बाद में दोबारा आधा पानी मगरमच्छ पर डाल देना तो इंसान का रूप धारण कर लूंगा. जब उस इंसान का मगरमच्छ का रूप धारण किया तो उसकी पत्नी मगरमच्छ देखकर डर गई और उसके हाथ से पानी का लोटा भी छूट गया. इसके बाद वह मगरमच्छ पानी के अंदर चला गया. उसकी पत्नी घबरा कर घर पहुंच कर उसने अपनी माता को यह बात बताई नदी किनारे उसकी मां पहुंची तो उसने अपने बेटे को बुलाया तो मगरमच्छ के रूप में वह आया. उसने कहा कि हर साल मकर संक्रांति के दिन भक्तों को दर्शन देने जरूर आऊंगा.

मिट्टी का मगरमच्छ बनाकर बंगाली समाज के लोग करते हैं पूजा
इसके बाद से ही बंगाली समाज के लोग मकर सक्रांति पर 23 फीट लंबे मिट्टी के मगरमच्छ की पूजा करते हैं. इस दिन बंगाली समाज के लोग मकर सक्रांति पर 23 फीट लंबे मिट्टी के मगरमच्छ की पूजा कर समाज और परिवार की खुशहाली की कामना करते है. साथ ही सामूहिक रूप से भोजन भी करते है.

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