भोजवंशियों की कहानी कहता है नवरत्न किला, आज भी बचे हुए हैं कुछ अवशेष

सावन कुमार/बक्सर : भोजपुर अपने दामन में कई इतिहास, साहित्य, संगीत, कला और अध्यात्म को समेटे हुए है. कई लोक कलाओं का उद्गम स्थल भोजपुर माना जाता है. जब शाहबाद बंटा नहीं था तब भोजपुर क्षेत्र काफी बड़ा था. आप आरा मुख्यालय की अगर बात करें तो उसका जिला भोजपुर ही हैं. अब भोजपुर गांव बक्सर जिला के अंतर्गत आता है.

ऐसी मान्यता है कि भोजपुर में कभी भोज वंश का राज्य हुआ करता था. इस वजह से इस क्षेत्र का नाम भोजपुर पड़ गया और यहां की बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी कहलाई. भोजपुर गांव बक्सर जिला में डुमरांव के पास है. आज भी यहां एक खंडहर मौजूद है, जिसे नवरत्न किला के नाम से जाना जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि कभी ये किला राजा भोज के वंश का हुआ करता था. आइये जानते हैं इस किले के बारे में.

भोज वंश के शासक ने नवरत्न किला का कराया था निर्माण
नवरत्न किला का निर्माण भोज वंश के रुद्र प्रताप नारायण सिंह ने सन 1633 में करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि अकबराबाद किला को बनाने वाले ने ही नवरत्न किले का निर्माण किया था. आज भी इस किले को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि काफी खूबसूरत रहा होगा. इसके कुछ अवशेष बचे हुए हैं जो बालूवाई ईंट के बने हुए प्रतीत होते हैं. इसके दरख्ते दरवाजों के पास की नक्काशी अद्भुत है.

कुछ अवशेष को देखने से लगता है ये किला हवादार रहा होगा और कई दरवाजे होंगे. साथ ही बचे हुए अवशेष का आकर कच्छ अर्थात कछुए की तरह है. इस किले के नीचे छोटे कच्छ के आकार का झरोखा भी देखने को मिल जाएगा.स्थानीय धनंजय पांडे ने बताया किइस गांव की एक मान्यता ये है कि अगर बाढ़ के दिनों में ये कच्छ डूब गया तो यहां से कई गांव बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं. बलिया तक का इलाका बाढ़ से ग्रस्त हो सकता है. यूं कहें तो ये कच्छ गांव का बाढ़ मीटर है.

नवरत्न महल में था 56 गलियां
धनंजय पांडे ने बताया कि नवरत्न किला बक्सर के काफी ऊपरी क्षेत्र में बना है. इस किला की जितनी ऊंचाई है उतनी ही गहराई भी है. इस किले में 52 गलियां और 56 बराज हुआ करता था. यहां की गलियों में हर शाम बाजारे लगती थी. यहां कोई भी व्यापारी अपना सामान बेचने के लिए आता उसका सारा सामान यहां बिक जाया करता था.

एक कहानी प्रचलित है कि एक बार एक व्यापारी दरिद्र को बेचने आया, उसे कोई खरीद नहीं रहा था. तब राजा ने उस दरिद्र को भी खरीद लिया. तभी से भोजपुर क्षेत्र में दिवाली के दूसरे दिन दरिद्र भगाने की परम्परा बन गई. आज भी दिवाली के दूसरे दिन यहां दरिद्र भगाया जाता है.लेकिन आज इसका अस्तित्व खतरे में है अगर सरकार इसपर ध्यान देती तो शायद ये किला पूरे शाहाबाद में देखने लायक होता और ये पर्यटक स्थल भी बन जाता.

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