भोजपत्र से पहाड़ की महिलाओं को मिली नई पहचान, बनाया स्वरोजगार का जरिया

सोनिया मिश्रा/ चमोली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वाहन, उत्साहवर्धन के बाद चमोली जिले की महिलाओं ने भोजपत्र को स्वरोजगार का जरिया बनाने का काम शुरू कर दिया है. जिसके लिए जिला प्रशासन भी उन्हें सहयोग कर रहा है.प्रशासन की मुहिम से नीति घाटी के द्रोणागिरी, कागा, तोलमा में भोजपत्र के जंगल विकसित किए जाने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं और इसके साथ साथ विभिन्न गांवों के आसपास की भूमि में भोजपत्र के पौधे रोपे गए हैं.

इस बार महिलाओं ने बद्रीनाथ धाम में यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को स्टॉल लगाकर सोवेनियर के रूप में भोजपत्र से बने सामान बेचना शुरू किया. जिसके बाद प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात में महिलाओं के इस पहल की खूब सराहना की. उसके बाद तो मानों इस व्यापार को पंख ही लग गए और डिमांड बढ़ने लगी. बाजार की डिमांड को पूरा करने के लिए ग्रामीणों ने नीति, मलारी घाटी के उच्च हिमालयी गांवों में खाली जमीन पर भोजपत्र का जंगल विकसित करने के मंशा प्रशासन के सामने जाहिर की. जिसके बाद प्रशासन ने भी इस प्रोजेक्ट को दूरगामी अवसर मानते हुए इसे बढ़ाने का निर्णय लिया और खंड विकास कार्यालय में पहले चरण में भोजपत्र के जंगल विकसित करने के लिए टोलमा, द्रोणागिरी, कागा में 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में पौध तैयार करने के लिए नर्सरी लगाई और एक नर्सरी में 1 हजार से अधिक बीज डाले.

भोजपत्र है बेहद दुर्लभ!
भोजपत्र का वैज्ञानिक नाम बेतूला यूटिलिस, (Betula utilis) और अंग्रेजी नाम हिमालय बिर्च (Himalayan Birch) है जो भोजपत्र उच्च हिमालयी क्षेत्र में समुद्र तल से 4500 मीटर की ऊंचाई पर होता है. सामान्यतया यह प्रायः लकड़ी की छाल होती है. जो लिखावट के काम आती है इसकी खासियत यह है कि इस पर लिखा गया लाखों वर्षों तक सुरक्षित रहता है. साथ ही पुराण, प्राचीन अभिलेख भी इसी भोजपत्र पर लिखे जाते थे. इसलिए इसे दुर्लभ माना जाता है.

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